इंसानों में बढ़ रही ‘एंटीबायोटिक प्रतिरोधकता’ खतरे का अलार्म


slowdown in indian pharmaceutical market is lowest in last seven quarters

 

एंटीबायोटिक्स के लिए इंसानों के शरीर में प्रतिरोध क्षमता विकसित होने को लेकर चिकित्सा जगत काफी समय से चिंता जताता रहा है. अब भारत में इसको लेकर हुई एक स्टडी से साफ हुआ है कि तीन में से दो लोगों के शरीर में इन दवाओं के लिए प्रतिरोधकता विकसित हो चुकी है.

इंडियन काउंसिल ऑफ रिसर्च (आईसीएमआर) की ओर से पेश की गई इस शोध रिपोर्ट में भारतीय लोगों में एंटीबायोटिक्स के लिए प्रतिरोध क्षमता विकसित होने की बात कही गई है.

ये स्टडी ऐसे 207 लोगों पर की गई है, जिन्होंने कम से कम पिछले एक महीने से कोई एंटीबायोटिक नहीं लिया था, और उन्हें कोई पुरानी बीमारी भी नहीं थी.

इस स्टडी से पता चला कि 207 में से 139 लोगों में दो या अधिक तरह की एंटीबायोटिक दवाओं के लिए प्रतिरोधकता विकसित हो चुकी है. जिसके चलते इन पर इन दवाओं का कोई असर नहीं होता.

इनमें से सबसे ज्यादा करीब 60 लोगों में सेफालोस्फोरिन्स नाम की एंटीबायोटिक के लिए प्रतिरोधकता पाई गई. दूसरे नंबर पर फ्लूरोक्वाइनोलोन्स रही. 41.5 फीसदी लोगों पर इसका असर खत्म हो चुका था.

सबसे ज्यादा चिंताजनक बात ये है कि ऊपर बताई गई ये दोनों श्रेणी की दवाएं सबसे ज्यादा प्रयोग में लाई जाती हैं. डॉक्टर पल्लब रे चंडीगढ़ पीजीआई में प्रोफेसर हैं. इन्हीं की देखरेख में ये स्टडी की गई है. उन्होंने बताया कि इस रिपोर्ट को चेतावनी के तौर पर लेना चाहिए.

डॉक्टर रे ने कहा, “हमारी स्टडी से साफ हुआ है कि एंटीबायोटिक का गलत प्रयोग करने की वजह से कैसे स्वस्थ आंत एंटबायोटिक-प्रतिरोध की पनाह बन गई है. इस समय तक सिर्फ कम प्रभाव वाली दवाओं के लिए प्रतिरोध क्षमता विकसित हुई है, लेकिन जिस तरह से दवाओं का गलत इस्तेमाल हो रहा है, ये शरीर उच्च क्षमता की दवाओं के लिए भी प्रतिरोध विकसित कर लेगा.”

इस बारे में बात करते हुए डॉक्टर एसके सरिन कहते हैं कि स्वस्थ लोगों में जिस तरह से एंटीबायोटिक के लिए प्रतिरोध पाया गया है, वो चिंता का विषय है. इसका साफ मतलब है कि भविष्य में संक्रमण का इलाज मुश्किल होने वाला है.

विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा इन दवाओं के गलत इस्तेमाल के चलते हो रहा है. कुछ साधारण समस्याएं जैसे जुकाम आदि में एंटीबायोटिक का जमकर इस्तेमाल हो रहा है, जो इस समस्या की प्रमुख वजह है.

इसके अलावा इंसानों में एंटीबायोटिक के लिए प्रतिरोध विकसित होने के अन्य कारण भी हैं. जैसे पालतू जानवरों में इसका बेधड़क इस्तेमाल, और पोल्टरी फार्मों में मांस के लिए पाले जा रहे जानवरों में इसका प्रयोग. एंटीबायोटिक को ठीक से डिस्पोज ना करने के चलते ये खाद्य श्रंखला में भी शामिल हो रही है.

डॉक्टर सेन कहते हैं, “हमारे शरीर में जैसे कोशिकाएं हैं उसी तरह से बहुत सारे बैक्टीरिया भी मौजूद हैं. ये हमारे शरीर को जिंदा रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. उदाहरण के लिए खाने का पाचन करने में और प्रतिरोध क्षमता विकसित करने में. एंटीबायोटिक बैक्टीरिया ये काम खुद नहीं कर सकते हैं. और अगर ये बैक्टीरिया आमतौर पर इस्तेमाल की जा रही दवाओं के लिए प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेंगे तो साधारण संक्रमण का इलाज भी नहीं हो सकेगा.”

इससे पहले साल 2015 में एम्स (AIIMS) ऐसी ही स्टडी करवा चुका है. जहां यमुना और दिल्ली की अलग-अलग जगहों पर बोरवेल के पानी में इन दवाओं की अधिकता की जांच की गई थी. उस स्टडी में पानी में इनकी अधिक मात्रा पाई गई थी.

डॉक्टर सेन इसके उपाय पर बात करते हुए कहते हैं, “हमें इसके लिए बहुआयामी योजना पर काम करना होगा. इसके तहत हमें इंसानों और जानवरों में इसके गलत प्रयोग को रोकना होगा. इसके अलावा इसके उचित निपटान की व्यवस्था करनी होगी.”


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