नए प्रोजेक्टों में भारतीय कंपनियों का निवेश 11.3 खरब रुपये तक घटा


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सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकॉनमी के डेटा के अनुसार नए प्रोजेक्टों को लेकर भारतीय कंपनियों का निवेश घटा है. यह 2014-15 के 21.04 खरब रुपये के मुकाबले 2018-19 में 11.30 खरब रुपये रहा.

आने वाले कुछ महीनों में नए प्रोजेक्टों में निवेश इस बात पर निर्भर करेगा कि कितनी जल्दी खपत में बढ़ोतरी होती है और निजी क्षेत्र आधारभूत ढांचे में निवेश बढ़ाता है.

रेटिंग फर्म केयर रेटिंग्स ने अपने एक बयान में कहा, “पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर में भारी कमी की वजह से इस वित्त वर्ष में नए प्रोजेक्टों में बढ़ोतरी होने की संभावना बहुत कम है.”

एजेंसी ने 1,405 कंपनियों के अपने अध्ययन में कहा कि 2018-19 में नए प्रोजेक्टों में हुए 4.84 खरब रुपये के निवेश में केवल दो कंपनियों का हिस्सा 17.3 प्रतिशत रहा. जबकि शीर्ष की दस कंपनियों का हिस्सा 53 प्रतिशत रहा. शीर्ष की पचास कंपनियों ने कुल 84 प्रतिशत का निवेश किया.

कुल पूंजी निर्माण दर इस बात का निर्धारण करती है कि एक वित्त वर्ष में जीडीपी का कितना प्रतिशत हिस्सा निवेश के लिए प्रयुक्त हुआ. वित्त वर्ष 2016-17 से लेकर 2018-19 में इसमें वृद्धि हुई है. वित्त वर्ष 2016-17 में यह दर 28.2 प्रतिशत थी, वहीं 2018-19 में यह 29.2 प्रतिशत रही. लेकिन 2012 से लगातार पांच साल तक इसमें कमी आई है. वित्त वर्ष 2011-12 में यह 34.3 प्रतिशत थी.

कॉरपोरेट सेक्टर में नए निवेश को कंपनियों के ‘ग्रॉस फिक्स्ड असेट्स’ में आए परिवर्तन के आधार पर मापा जाता है. वित्त वर्ष 2018-19 में 1,405 कंपनियों का ‘ग्रॉस फिक्स्ड असेट्स’ 4.75 खरब रुपये था.

इस निवेश का 20 प्रतिशत हिस्सा ऊर्जा (ज्यादातर नवीनीकरण) क्षेत्र में किया गया. इसके बाद इसका 10 प्रतिशत हिस्सा लोहा और स्टील, रिफायनरियों और धातु उद्योग में खर्च किया गया. शीर्ष पांच क्षेत्रों में कॉरपोरेट निवेश का कुल 58 फीसद हिस्सा खर्च हुआ.

इस आधार पर रेटिंग फर्म केयर रेटिंग ने कहा, “सेक्टरों के तौर पर देखें तो निवेश बहुत अधिक संकेंद्रित है. कुछ सेक्टरों में निवेश किया गया, बाकियों को पीछे छोड़ दिया गया.”

जहां अधिकतर निवेश पूंजी उन्मुख सुविधाओं अथवा आधारभूत ढांचे में हुआ, वहीं कोई भी नया निवेश उपभोक्ता वस्तुओं के क्षेत्र में नहीं हुआ.

रेटिंग फर्म के अनुसार अधिशेष पूंजी में कमी की वजह से निवेश में कमी आई है. वहीं आरबीआई का डेटा बताता है कि उपभोक्ता मांग में कमी की वजह से कॉरोपोरेट सेक्टर नया निवेश करने से हिचका है. इसके साथ ही गैर-बैंकिक वित्तीय कंपनियों की समस्या ने भी इस क्षेत्र को मिलने वाले फंड को कमजोर किया है.


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