फॉरेन करेंसी बॉन्ड देश विरोधी, फिर से विचार की जरूरत: स्वदेशी जागरण मंच


India should not issue foreign currency bonds, says RSS' economic wing SJM

 

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से संबंधित स्वदेशी जागरण मंच ने नरेंद्र मोदी सरकार की फॉरेन करेंसी बॉन्ड बेच कर रुपये कमाने की योजना को देश-विरोधी करार दिया है. मंच ने सरकार से योजना पर एक बार फिर विचार करने की मांग की है.

मंच के मुताबिक ये देश-विरोधी कदम है क्योंकि लंबे समय में अर्थव्यवस्था पर इसका बुरा प्रभाव होगा. साथ ही इसे एक ऐसा कदम करार दिया जिससे अमीर देश और उसके वित्तीय संस्थान भारत की नीतियों को प्रभावित करे पाएंगे.

आरएसएस के स्वदेशी जागरण मंच (एसजेएम) के सह-संयोजक अश्विनी महाजन ने घोषणा करते हुए कहा कि हम ऐसा नहीं होने देंगे. स्वदेशी जागरण मंच आरएसएस का इकॉनोमिक विंग है. महाजन ने कहा, “हमें यकीन है कि सरकार बॉन्ड पर लिया गया अपना फैसला वापस लेगी.”

उन्होंने अर्जेंटीना और तुर्की का उदाहरण देते हुए कहा, “हमें उन देशों के अनुभवों से सीख लेनी चाहिए जिन्होंने आंतरराष्ट्रीय बाजार से लोन लेकर अपने सरकारी घाटे को पूरा किया.” महाजन ने कहा कि विदेशों से उधार लेने का मतलब है कि भारतीय मुद्रा के मूल्यों में और तेजी से गिरावट होगी. इससे विदेशी सरकारें टैरिफ में छूट की मांग करेंगी.

हालांकि, इस मामले में वित्त मंत्रालय के प्रवक्ता ने कुछ भी कहने से मना कर दिया.

लंदन में बिजनेस समिट में बात करते हुए ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टेरिजा मे ने उम्मीद जताई कि भारतीय सरकार ब्रिटेन की राजधानी को अपने पहले अंतरराष्ट्रीय सॉवरेन बॉन्ड जारी करने के लिए चुनेगी.

फिलहाल सरकार की ओर से बॉन्ड कहां जारी किए जाएंगे इस संबंध में जानकारी नहीं दी गई है.

वित्त मंत्रालय के आला अधिकारी सुभाष चंद्र गर्ग ने पिछले हफ्ते भारतीय उद्योगपतियों से कहा था कि विदेशों से कर्ज लेने का मकसद भारतीय कंपनियों के वास्तविक ब्याज दर को कम करना है. इससे अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ेगी. उन्होंने कहा, “हमें विदेशी निवेश और बचत का स्वागत करना चाहिए क्योंकि हमें ऐसा ही करने की जरुरत है.”

गर्ग ने कहा कि घरेलू कर्ज पर ज्यादा निर्भर नहीं रहा जा सकता है. सरकार ने 80 फीसदी बचत को अर्थव्यवस्था में डाल दिया है. इससे छोटे निजी कंपनियों को देने के लिए बहुत कम बचा है. नतीजतन, वे उद्योग बैंकों से लिए ऋण पर 12-13 फीसदी तक इंटरेस्ट दर चुकाने के लिए मजबूर हैं.

पिछले साल फरवरी में पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सरकारी कर्ज के संबंध में लिखा था, “ज्यादातर कर्ज घरेलू हैं. इससे मुद्रा में गिरावट की संभावना कम हो जाती है.”

इस प्रस्ताव की आलोचना आरएसएस के अलावा केंद्रीय बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी की है. उन्होंने पिछले हफ्ते अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया में लिखा था, “भारत को अल्पकालिक निवेशकों से चिंतित होने की जरूरत है.”

एसजेएम ने पिछले कई सालों में सरकार को अपना फैसला बदलने पर मजबूर किया है. इसमें व्यापारिक मुद्दों पर संरक्षणवादी कदम लेने से लेकर जेनेटिकली मोडिफाइड क्रॉप्स के खिलाफ लिया गया फैसला शामिल है.

फरवरी में एसजेएम सरकार पर दबाव बनाने में कामयाब रहा था. जिसके बाद सरकार ने नए इ-कॉमर्स रेगुलेशन की शुरुआत की थी. इससे दो अमरिकी कंपनियां अमेजन और वॉलमार्ट निराश हुई थीं. इन कंपनियों ने कहा था कि सरकार का यह कदम भेदभावपूर्ण है और सरकार ने घरेलू खुदरा व्यापारियों को फायदा पहुंचाया है.

माना जा रहा है कि इस बार सरकार नहीं झूकेगी.

आर्थिक मामलों के लिए बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अगरवाल ने कहा, “आलोचकों द्वारा कुछ रिस्क बताए जाने के बाद भी इस वक्त सॉवरेन बॉन्ड सबसे सही विकल्प है. क्योंकि सरकार बड़े पैमाने पर निवेश करने की योजना बना रही है.” उन्होंने कहा, “सरकार का इरादा वास्तविक ब्याज दर को नीचे रखना है. जिससे वाजिब दर पर घरेलू बाजार से फंड जुटाना मुश्किल हो गया है.

उन्होंने चेताया कि सरकार को इस वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3.3 फीसदी तक ही रखना होगा. साथ ही यह सुनिश्चित करना होगा कि विदेशों से लिए कर्ज से घाटा ना बढ़े.

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत विदेशों से 3.2 फीसदी के वर्तमान बाजार दर पर अमरिकी डॉलर कर्ज लेने में कामयाब होगा. उनका मानना है कि यह दर बढ़ भी सकती है.

विदेशों से कर्ज लेना सरकार की देनदारियों को उजागर करता है. मुद्रा के लगतार कमजोर-मजबूत होने से घरेलू ब्याज दर प्रभावित होती है.


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