कैसी है सामाजिक-आर्थिक पैमानों पर देश के निर्वाचन क्षेत्रों की सेहत?


india slides to 102nd place in global hunger index

 

हार्वर्ड विश्वविद्यालय के साथ मिलकर इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक ग्रोथ और टाटा ट्रस्ट, नई दिल्ली के शोधकर्ताओं ने 100 से ज्यादा सामाजिक-आर्थिक पैमानों पर भारत की 543 लोकसभा सीटों का हाल जानने की कोशिश की है. उनके मुताबिक, जनता के मुद्दों को आधार बनाकर किया गया ये अध्ययन उन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्र में सांसद चुनने में मदद करेगा.

मातृत्व सुरक्षा, बच्चों और वयस्कों में पोषण का स्तर, साक्षरता, गरीबी और विभिन्न घरेलू पैमानों पर किए गए अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि देश में अब भी कई निर्वाचन क्षेत्र बेहद पिछड़े हुए हैं.

शोधकर्ताओं ने सूची जारी करते हुए बताया कि गरीबी के मामले में मध्य प्रदेश की सतना लोकसभा सीट सबसे पिछड़ी हुई है. यहां 80 फीसदी जनसंख्या गरीबी की चपेट में है.

गरीबी का स्तर पुडुचेरी (3.4 फीसदी), अत्तिंगल और तिरुवनंतपुरम (3.9 फीसदी) में सबसे कम पाया गया है.

वहीं मातृत्व सुरक्षा और बच्चों में पोषण के स्तर को बेहतर बनाने के लिए जरूरी होता है कि महिला को प्रसवपूर्व अच्छी देख-रेख मिले.

लेकिन शोधकर्ताओं ने पाया कि बिहार में पाटलिपुत्र और बंगाल में हुगली दो ऐसे क्षेत्र हैं, जहां एक भी महिला को प्रसवपूर्व देख-रेख नहीं मिली. जबकि उत्तर और पूर्वी भारत में कई ऐसे निर्वाचन क्षेत्र हैं जहां केवल तीन फीसदी महिलाओं को प्रसवपूर्व देख-रेख मिल सकी.

नाबालिग विवाह के मामले में केरल की एर्नाकुलम सीट की स्थिति काफी बेहतर है. आंकड़ों के मुताबिक, इस लोकसभा क्षेत्र में 21 से 24 आयु वर्ग के बीच एक भी महिला की शादी 18 साल से पहले नहीं हुई.

लेकिन देश में अब भी ऐसे कई निर्वाचन क्षेत्र हैं, जहां 50 फीसदी से ज्यादा महिलाओं की शादी 18 साल की कानूनी उम्र से पहले हो गई. इसमें सुपौल और बेगूसराय (बिहार), गोंडा और कोडरमा (झारखंड), बीड (महाराष्ट्र), भीलवाड़ा (राजस्थान) और बंगाल के मिदनापुर, मुर्शिदाबाद, मालदा उत्तर, मालदा दक्षिण, बलरामपुर, झारग्राम, बीरभूम, जंगीपुरा और घटल लोकसभा क्षेत्र शामिल हैं.

शोध में शामिल हार्वर्ड विश्वविद्यालय के जनसंख्या स्वास्थ्य और भूगोल के प्रोफेसर एसवी सुब्रमण्यम ने कहा, “हमारा लक्ष्य है कि भारत के राजनीतिक विमर्श में जनता के मुद्दों को महत्त्व दिया जाए, जिनसे वो सीधे तौर पर जुड़े हैं.”

उन्होंने कहा, “हम उम्मीद करते हैं कि ये आंकड़े सही सांसद का चुनाव करने में लोगों की मदद करेंगे. वहीं नीति निर्माताओं को भी इनसे अपने लोकसभा क्षेत्र में रणनीति बनाने में मदद मिलेगी.” सुब्रमण्यम के मुताबिक, इस तरह के अध्ययन को सांसद शुरूआती आंकड़ों के रूप में लेते हुए आगे की रणनीति बना सकते हैं.

उन्होंने कहा, “हमारा लक्ष्य किसी भी क्षेत्र को आगे दिखाना या उसे पिछड़ा बताना नहीं है. हमारा लक्ष्य है कि हम क्षेत्रों में विकास के विभिन्न पैमानों पर विश्वसनीय आंकड़े उपलब्ध कराएं.”


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