वैश्विक रुझान के उलट भारतीय कंपनियों का शोध और विकास में लगातार घट रहा है निवेश


indian companies to cutting their expenditure on research and development

  इंडिया एजुकेशन

बीते छह सालों में भारतीय कंपनियों का शोध और विकास (रिसर्च एंड डेवलपमेंट) पर होने वाला खर्च लगातार घटता रहा है. बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक पिछले छह सालों के दौरान ये निम्नतम स्तर पर पहुंच चुका है.

एसएंडपी बीएसई-500 ने 98 भारतीय कंपनियों के आंकड़ों का विश्लेषण किया है. ये विश्लेषण ऐसी कंपनियों के लिए किया गया है, जिनके आंकड़े बीते दस सालों के दौरान लगातार उपलब्ध रहे हैं.

इस विश्लेषण के मुताबिक भारतीय कंपनियों का शोध और विकास पर होने वाला खर्च शुद्ध बिक्री के 0.54 फीसदी पर आ चुका है. साल 2012-13 के बाद ये सबसे निचला स्तर है.

आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2019 के दौरान शोध और विकास पर होने वाले खर्च में 2.7 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई. वित्त वर्ष 2011 के बाद से अब तक की ये सबसे बड़ी गिरावट है.

खबरों के मुताबिक दवा कंपनियों द्वारा शोध में होने वाले खर्च में बड़ी कटौती के चलते इस पर सबसे ज्यादा असर पड़ा है.

निवेश की जानकारी और क्रेडिट रेटिंग एजेंसी (आईसीआरए) के विश्लेषक गौरव जैन कहते हैं कि वित्त वर्ष 2019 में टॉरेन्ट फार्मास्यूटिकल, कैडिला हेल्थ केयर, ल्यूपिन, सन फार्मस्यूटिकल और डॉक्टर रेड्डी फार्मास्यूटिकल जैसी कंपनियों ने दो फीसदी की गिरावट दर्ज की है.

वित्त वर्ष 2019 के दौरान इन कंपनियों ने अपनी संचालन लागत का 7.8 फीसदी शोध एवं विकास पर खर्च किया है. इससे पहले वित्त वर्ष 2018 में इन कंपनियों ने इस मद में 8.8 फीसदी खर्च के आंकड़े दिए थे.

गौरव जैन कहते हैं कि 2018 के दौरान भी इस खर्च में चार फीसदी की कमी दर्ज की गई थी.

2017 की चौथी तिमाही में अमेरिका में लागत का दबाव बढ़ने लगा था. इसके बाद जो कंपनियां अमेरिका में व्यापार कर रही हैं उनके मुनाफे में कमी आने लगी थी.
इस वजह से कंपनियों ने शोध और विकास जैसी जरूरतों पर होने वाले खर्च को कम कर दिया और मुनाफे के साधन खोजने लगीं.

आईसीआरए के मुताबिक वित्त वर्ष 2020 में इस मद में होने वाला खर्च 7.5 से 8 फीसदी के बीच रह सकता है. जबकि किसी कंपनी विशेष के लिए ये खर्च कम या ज्यादा भी हो सकता है.

भारत की सबसे बड़ी दवा कंपनी सन फर्मा वित्त वर्ष 2020 के दौरान शोध और विकास पर होने वाले खर्च में बढ़ोतरी कर सकती है. कंपनी के मुताबिक, “वित्त वर्ष 2020 में हम उम्मीद कर रहे हैं कि हमारे राजस्व में इजाफा होगा. इस दौरान हम अपनी शुद्ध बिक्री का 8-9 फीसदी शोध और विकास पर खर्च करेंगे.”

साल 2019 में कंपनी का खर्च 6.9 फीसदी रहा था. जो बीते वित्त वर्ष में 8.6 फीसदी से कम था.

अमेरिकी जेनेरिक दवाओं पर लागत का दबाव फिलहाल जारी है. भारतीय कंपनियों ने इससे बचाव के लिए कदम उठाने शुरू कर दिए हैं. इसके लिए भारतीय दवा कंपनियां अपने कम लाभ वाले उत्पादों को हटा रही हैं. इसके अलावा कंपनियां घरेलू व्यापार पर भी जोर दे रही हैं.

सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि भारतीय कंपनियों ने शोध और विकास में होने वाले खर्च को उस समय कम किया है, जब पूरी दुनिया में इस मद में होने वाले खर्च में वृद्धि हो रही है.

साल 2018 में वैश्विक रूप से इस मद में होने वाले खर्च में 11 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई. ग्लोबल-100 स्टडी के मुताबिक इस समय वैश्विक स्तर पर शोध और विकास में होने वाला खर्च 4.5 फीसदी के साथ अपने अधिकतम स्तर पर है.

शोध और विकास में सबसे ज्यादा खर्च चीन और यूरोप में हो रहा है. चीन में इस मद में होने वाले खर्च में 34 फीसदी से अधिक बढ़ोतरी हुई है वहीं यूरोप में भी 14 फीसदी की वृद्धि दर की गई है.

स्वतंत्र बाजार विश्लेषक आनंद टंडन कहते हैं कि ये जरूरी है कि खर्च के साथ आगम का ध्यान रखा जाए, लेकिन शोध में खर्च कम होने से नुकसान होगा. वो कहते हैं, “अगर आप शोध और विकास में खर्च नहीं करेंगे तो नए विकास में पीछे छूट जाएंगे.”


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