वित्तीय खुफिया इकाई में कर्मियों की कमी से गिर सकती है भारत की साख


India's credit can fall due to lack of personnel in FIU

 

वित्तीय खुफिया इकाई (एफआईयू) कर्मचारियों की कमी झेल रही है. आंतरिक दस्तावेजों के अनुसार पर्याप्त कर्मचारी न होने से कर चोरी, आतंकवादियों को धन के हस्तांतरण और मनी लांड्रिंग के खिलाफ कार्रवाई की व्यवस्थाओं की वैश्विक समीक्षा में भारत कमजोर स्थिति में दिख सकता है.

एफआईयू में विश्लेषकों और जांचकर्ताओं की कमी एक दशक से है. यह वित्त मंत्रालय के अधीन आता है.

एफआईयू राष्ट्रीय एजेंसी है जिसके पास मनी लांड्रिंग, आतंकवादी संगठनों को वित्त पोषण तथा देश में जाली नोट का पता लगाने जैसे गंभीर कर अपराधों से जुड़े आंकड़ों का संग्रह, विश्लेषण तथा संबंधित एजेंसियों तक उसे पहुंचाने की जिम्मेदारी है.

पीटीआई के पास उपलब्ध एक आधिकारिक पत्र के अनुसार एफआईयू हर साल अनुबंधों पर कर्मचारियों की नियुक्ति कर कर्मचारियों की कमी की भरपाई कर रहा है.

एफआईयू की ओर से केंद्रीय वित्त मंत्रालय को सौंपी एक रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘कर्मचारियों की कमी समेत गंभीर चुनौतियों के बावजूद संगठन के अधिकारी एवं कर्मचारी पूरे समर्पण के साथ काम कर रहे हैं.’’

संगठन के पास 14 लाख संदिग्ध लेन-देन (एसटीआर) से जुड़ी रिपोर्ट मिली.  यह 2017-18 के मुकाबले यह 15 गुना अधिक है. 

वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने समाचार एजेंसी को बताया कि आतंकवादियों को वित्त पोषण और मनी लांड्रिंग निरोधक व्यवस्था की अगले साल की शुरूआत में वैश्विक समीक्षा होगी और एफआईयू के कार्यबल में कमी से प्रतिकूल टिप्पणी मिल सकती है. इससे कर अपराध से जुड़े मामलों से निपटने को लेकर एक प्रभावी देश के रूप में स्थिति कमजोर पड़ सकती है.

यह समीक्षा अंतरराष्ट्रीय निकाय फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) करेगा.

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 2017-18 में एजेंसी के पास स्वीकृत 75 पदों की तुलना में आधे लोग ही थे.  यह वर्ष 2011-12 से यही हालात हैं. इस दौरान एजेंसी में कर्मचारियों की संख्या 31 से 36 के बीच रही है. इस कमी को पूरा करने के लिये करीब दो दर्जन विशेषज्ञों को अनुबंध पर रखा है.

वहीं 2009-10 से 2010-11 के बीच एफआईयू के लिये मंजूर 74 कर्मचारियों में से केवल 45 और 36 कर्मचारी ही कार्यरत थे.


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