भारत में तेजी से कम हो रही है जनसंख्या वृद्धि दर


india's population growth rate is decreasing continuously

 

संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रकाशित नए वैश्विक जनसंख्या अनुमानों के अनुसार भारत की जनसंख्या वृद्धि दर में कमी आ रही है और इसका वैश्विक जनसांख्यिकी पर ठोस प्रभाव पड़ रहा है.

सन 2019 के जनसंख्या अनुमान की तुलना पिछले वर्षों से करने पर पता चलता है कि आने वाले समय में भारत की जनसंख्या के बारे में लगाए गए अनुमानों में संशोधित कमी किसी भी देश के मुकाबले सबसे अधिक है. वहीं चीन की जनसंख्या वृद्धि को लेकर इन अनुमानों को हर बार संशोधित कर बढ़ाया गया है.

भारत कब चीन को जनसंख्या के मामले में पीछे छोड़ देगा, इस अनुमान में भी हर साल उतार-चढ़ाव होता रहा है. 2019 के अनुमान के मुताबिक भारत जनसंख्या के मामले में चीन को 2027 में पीछे छोड़ देगा. 2008 में यह अनुमाान 2028 का था. वहीं 2015 के अनुमान के मुताबिक भारत ऐसा 2022 में करने वाला था.

भारत की जनसंख्या वृद्धि को लेकर किए जा रहे इन संशोधनों ने वैश्विक उम्मीदों को पीछे छोड़ दिया है. इन संशोधनों में भारत की जनसंख्या वृद्धि दर को लगातार घटता हुआ दिखाया गया है.

जनसंख्या अनुमान पूरी तरह से इस तथ्य पर आधारित होते हैं कि एक देश में जन्म और मृत्यु दर की दशा क्या है. भारत में जन्म दर अंतराष्ट्रीय संस्थाओं के अनुमान के मुकाबले बहुत तेजी से घटी है. खासकर भारत के गरीब राज्यों में इसमें अभूतपूर्व कमी आई है. उच्च जन्म दर के लिए जाने जाने वाले समुदाओं में भी इस ओर ठोस कमी हुई है.

जनसांख्यिकी ट्रेंड्स के आधार पर 2.1 की जन्म दर को जनसंख्या वृद्धि दर के लिए स्थिर दर माना जाता है. मतलब अगर एक महिला औसतन 2.1 बच्चों को जन्म देती है, तो भविष्य में जनसंख्या उसी समान आकार की बनी रहेगी जितनी की वर्तमान में है.

2013 में भारत में जन्म दर 2.3 थी. 2012 में यह 2.4 थी. वर्तमान समय की अगर बात करें तो बिहार और मेघालय में ही जन्म दर 3 है. बाकी सभी राज्यों में जन्म दर 2.1 के नीचे है.

नए आंकड़ों से पता चला है कि भारत के गरीब राज्यों में जन्म दर बहुत तेजी से घटी है. खासकर पढ़ी-लिखी महिलाओं के बीच यह कमी सर्वाधिक है.

समुदायों की अगर बात करें तो हिंदुओं के मुकाबले मुसलमानों में जन्म दर अधिक है, लेकिन मुसलमानों में जन्म दर हिंदुओं के मुकाबले तेजी से घट रही है. इस प्रकार दोनों समुदायों के बीच जन्म दर का अंतर तेजी से घटता जा रहा है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार 1992-93 में यह अंतर जहां 30 फीसदी का था, वहीं 2015-16 में यह अंतर 23.8 फीसदी का रह गया है.

जनसांख्यिकी विशेषज्ञ शाश्वत घोष के अनुसार जो राज्य समृद्ध, शिक्षित और स्वस्थ होते जा रहे हैं, वहां जन्म दर लगातार कमी होती जा रही है. इन राज्यों में रहने वाली सभी महिलाएं कम बच्चों को जन्म दे रही हैं. इस हिसाब से दक्षिणी राज्यों में रहने वाली मुस्लिम महिलाओं में जन्म दर उत्तर भारत में रहने वाली हिंदू महिलाओं के मुकाबले कम है.

मुस्लिम महिलाओं में अधिक जन्म दर की समस्या केवल उन राज्यों में ही अधिक है, जहां सभी महिलाओं में जन्म दर अधिक है. शाश्वत घोष के अनुसार उन जिलों में भी जहां कुल जन्म दर कम है, वहां शायद ही उच्च मुस्लिम जन्म दर वाला कोई जिला है.

भारत में जन्म दर बेटे के जन्म के साथ बहुत मजबूती से जुड़ी हुई है. इस पूरे समय में जब भारत में जन्म दर गिरी है, उसमें लिंगानुपात में भारी परिवर्तन हुआ है. यह लिंगानुपात बेटों के पक्ष में झुका है.

परिवार के आकार में भी इस लिंगानुपात में बेटों को तरजीह मिली है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक 15 से 49 वर्ष की 89 प्रतिशत महिलाएं चार लोगों के परिवार में दो बेटों के साथ संतुष्ट हैं. लेकिन वे महिलाएं जिनके पास केवल बेटियां हैं, वो परिवार की संख्या में बढ़ोतरी चाहती हैं. 15 से 49 वर्ष की 69 फीसदी महिलाएं जिनके पास दो बेटियां हैं और एक भी बेटा नहीं है, वे और बच्चे पैदा नहीं करना चाहती हैं.

इस बात को लेकर कोई आशा नहीं है कि भारतीयों की कम से कम एक बेटे की चाह आने वाले समय में खत्म हो जाएगी. ऐसे में यह आशंका है कि लगातार घटती जा रही जन्म दर के बीच बेटियों की संख्या भी घटती जाएगी.


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