जेएनयू शिक्षकों के खिलाफ चार्जशीट पर देश-विदेश के विद्वानों ने जताया विरोध


intellectuals protested against charge sheet issued to jnu teachers

 

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रशासन द्वारा केंद्रीय सिविल सेवा (सीसीएस) नियमों को आधार बनाकर 48 शिक्षकों के खिलाफ चार्जशीट जारी करने के कदम का पूरे अकादमिक जगत में विरोध हो रहा है. इसी क्रम में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में जेएनयू के उन 48 शिक्षकों और अकादमिक स्वतंत्रता के समर्थन में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में केंद्रीय विश्वविद्यालयों के शिक्षक संघों के महासंघ के प्रतिनिधियों, दूसरे विश्वविद्यालयों के शिक्षक संघों, प्रोफेसर अपूर्वानंद, मनोज झा और हर्ष मंदर सहित दूसरे सामाजिक कार्यकर्ताओं ने देश-विदेश के करीब दो हजार शिक्षकों, विद्यार्थियों और जागरुक नागरिकों से समर्थन प्राप्त स्टेटमेंट जारी किया.

स्टेटमेंट में कहा गया, “जेएनयू के जिन 48 शिक्षकों को शिक्षा विरोधी नीतियों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए सीसीएस नियमों के तहत जो नोटिस दिए गए, सभी स्तरों के विश्वविद्यालयों के शिक्षकों के तौर पर हम इसका विरोध करते हैं.”

स्टेटमेंट में आगे कहा गया, “हम इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि जेएनयू शिक्षक संघ का विरोध प्रदर्शन लगातार जेएनयू एक्ट के उल्लंघन के खिलाफ था. जेएनयू प्रशासन ने लगातार आरक्षण नीति का उल्लंघन, जबरन अटेंडेंस पॉलिसी को लागू करने, मनमाने तरीके से विभागों के अध्यक्षों और डीनों की नियुक्ति और उन्हें हटाने, प्रस्तावित हेफा लोन, अकादमिक और कार्यकारी परिषदों की बैठकों को तोड़-मरोड़कर पेश करने, शिक्षकों को परेशान करने और उन्हें निशाना बनाने, एमफिल और पीएचडी के लिए स्काइप से वाइवा करने और आईपीआर पॉलिसी ड्राफ्ट करने जैसे जेएनयू विरोधी कदम उठाए हैं. हम समझते हैं कि जेएनयू शिक्षक संघ का विरोध प्रदर्शन जेएनयू एक्ट की रक्षा के लिए था. ”

यह कहा गया,“जेएनयू में विरोध प्रदर्शनों को दबाने के अलावा केंद्रीय सिविल सेवा नियमों को थोपने के प्रयास के कॉलेजों और विश्वविद्यालय के शिक्षकों के लिए बहुत गहरे निहितार्थ हैं. इससे पहले जब इन नियमों को थोपने का प्रयास हुआ था तो पूरे देश में अकादमिक जगत ने इसका पुरजोर विरोध किया था. इस विरोध के बाद तत्कालीन मानव संसाधन एवं विकास मंत्री प्रकाश जावडेकर ने अक्टूबर 2018 में यह साफ किया था कि सरकार की मंशा सीसीएस नियमों को थोपकर विश्वविद्यालयों में अभिव्यक्ति की आजादी को खत्म करने की नहीं है. इसके तुरंत बाद जेएनयू के उप-कुलपति ने प्रेस रिलीज जारी करते हुए साफ किया था कि जेएनयू ऑर्डिनेंस में सीसीएस नियमों को शामिल नहीं किया गया है. इस आधार पर यह बहुत आश्चर्यजनक है कि जेएनयू के 48 शिक्षकों के खिलाफ चार्जशीट जारी करने के लिए सीसीएस नियमों को आधार बनाया गया है.”

ये भी पढ़ें- शिक्षकों को नोटिस भेजने का जेएनयू प्रशासन का कदम राष्ट्रीय शर्म: FEDCUTA

स्टेटमेंट में कहा गया, “हम सीसीएस नियमों के विश्वविद्यालयों में लागू किए जाने के खिलाफ हैं क्योंकि ये नियम कक्षाओं, शोध पत्रों और लेखों और सार्वजनिक जीवन में भी अभिव्यक्ति की आजादी पर पूरी तरह से रोक लगाते हैं. ये नियम सेवा की शर्त के तौर पर सेंसरशिप लागू करते हैं. इस आधार पर भारतीय अकादमिक जगत सरकार की नीतियों की आलोचना नहीं कर पाएगा और अपनी दूसरी जिम्मेदारियों को भी नहीं निभा पाएगा. अकादमिक जगत का मुख्य काम जनमत का निर्माण करना है. इस तरह से ही यह समाज में अपना योगदान देता है. ये नियम अकादमिक जगत के इस संवैधानिक कर्तव्य को पूरा करने से रोकेंगे.”

स्टेटमेंट में आगे कहा गया, “इन नियमों के अनुसार कोई भी शिक्षक राजनीतिक दल का हिस्सा होने के अपने अधिकार का प्रयोग नहीं कर पाएगा. इन नियमों के लागू हो जाने के बाद अपनी नौकरी को बचाने के लिए विश्वविद्यालयों के शिक्षक ना तो किसी राजनीतिक दल या समूह का हिस्सा बन पाएंगे और ना ही किसी राजनीतिक गतिविधि में भाग ले पाएंगे, इस प्रकार वे चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगे. इस देश की राजनीति में अकादमिक जगत ने बहुत बड़ा योगदान दिया है, इन नियमों के लागू हो जाने के बाद ना केवल देश के लोकतंत्र को नुकसान होगा बल्कि अनुच्छेद 19 में वर्णित उस मूलभूत अधिकार की भी बलि चढ़ जाएगी, जो रोजगार के लिए किसी भी प्रकार की पूर्वशर्त ना होने की बात कहता है. यह विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के सुनियोजित शिकार के लिए भी रास्ता खोल देगा क्योंकि प्रशासक सत्ताधारी दल द्वारा नियुक्त किए जाएंगे. इस आधार पर ये नियम अकादमिक जगत को संविधानवाद की संस्कृति के निर्माण से रोकने और उनके मूलभूत मानवाधिकारों को छीनने के लिए हैं.”

स्टेटमेंट में अंत में यह मांग की गई है कि जेएनयू के 48 शिक्षकों के खिलाफ जारी चार्जशीट को वापस लिया जाए और कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के शिक्षकों के ऊपर सीसीएस नियमों को लागू करने के प्रयास ना किए जाएं.

इस स्टेटमेंट को डेविड गॉर्डन व्हाइट, डेविड हार्डीमेन, गायत्री चक्रवर्ती स्पिवाक, ज्यूडिथ बटलर, पार्था चटर्जी, शेल्डन पोलॉक और थॉमस गनिंग जैसे ख्यातिप्राप्त अंतराष्ट्रीय विद्वानों का भी समर्थन प्राप्त है.

हैदराबाद विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया इस्लामिया, अंबेडकर विश्वविद्यालय, राजीव गांधी विश्वविद्यालय, अलीगढ़ विश्वविद्यालय, अरुणाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इग्नू इत्यादि ने भी जेएनयू प्रशासन के खिलाफ जारी इस स्टेटमेंट को अपना-अपना समर्थन दिया है.


Big News