इस तरह फर्श से अर्श पर पहुंचा जैश-ए-मोहम्मद
जैश-ए-मोहम्मद आंतकी संगठन घाटी में एक बार फिर काफी तेजी से अपने पैर पसार रहा है. जानकारी के मुताबिक बीते कुछ समय में जैश घाटी में सक्रिय अन्य आतंकी संगठनों पर अपनी धाक जमाने के लिए काफी समय से एक बड़े आतंकी हमले की योजना बना रहा था.
जैश साल 1999 के बाद कल कश्मीर के पुलवामा में दूसरा फ़िदायीन हमला करने में कामयाब रहा. गोरिपोरा इलाके के अवंतिपोरा में हुए इस आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 37 जवानों की मौत हो गई है.
पुलिस पर आत्मघाती हमला को काकापोरा के रहने वाले आदिल अहमद ने अंजाम दिया था. जानकारी के मुताबिक, अहमद 2018 में जैश-ए-मोहम्मद में शामिल हुआ था.
द हिंदू की खबर के मुताबिक आंकड़े बताते हैं कि साल 2015 में जैश के कैडर में एक भी सदस्य नहीं था, जबकि साल 2016 में इसके कैडर में 6 आतंकी सक्रिय हो गए थे.
घाटी में बीते दो महीनों में जैश ने लश्कर और हिजबुल से ज्यादा आतंकी हमलों को अंजाम दिया है. पुलिस रिपोर्ट के मुताबिक, जैश ने अब तक 10 ग्रैनेड अटैक किए हैं, जिसमें से चार अटैक इसी साल श्रीनगर में हुए. इन हमलों में 20 के करीब सुरक्षा कर्मी घायल हुए हैं.
जैश ने यह बड़ा फ़िदायीन हमला ऐसे समय में किया है, जब बीते दो महीनों में सुरक्षा कर्मियों के सर्च आउट ऑपरेशन में लशकर और हिजबुल के 20 से ज्यादा आतंकी मारे गए.
30 दिसंबर 2018 से 1 फरवरी 2019 के बीच पुलिस की जवाबी कार्रवाई में जैश के आठ आतंकी मारे गए. मारे गए आतंकियों में से 6 स्थानीय और 2 विदेशी आतंकी थे. रिपोर्ट्स के मुताबिक मारे गए सभी छह आंतकी दक्षिणी कश्मीर के अंवतीपुरा और पुलवामा जिले के आस-पास के इलाकों के रहने वाले थे.
पुलिस से प्राप्त आंकड़े बताते हैं कि 2019 में हिजबुल और लश्कर के बाद जैश तीसरे सबसे बड़े आतंकी संगठन के तौर पर उभरा है. इस साल जैश में 60 से ज्यादा स्थानीय नागरिक शामिल हुए. वहीं हिजबुल और लश्कर 100 से ज्यादा लोगों को अपने संगठन में शामिल करने में कामयाब रहे.
वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि “श्रीनगर में बुरहान वानी की मौत के बाद स्थितियां काफी खराब हुई हैं. बुरहान की मौत के बाद जैश ने 2017 के बाद से ही मारे गए स्थानीय आतंकियों के समर्थन में बड़े स्तर पर रैलियों का आयोजन किया. जिसके जरिए वो कई स्थानीय नौजवानों को संगठन में शामिल करने में कामयाब रहा.”
1998 में जम्मू कश्मीर में अपने पैर जमाने वाला जैश ए मोहम्मद ने अपना पहला आतंकी हमला साल 1999 में 3 नवंबर को किया था. इस फ़िदायीन हमले को अफद अहमद शाह ने अपने साथी आतंकी के साथ मिलकर अंजाम दिया था. श्रीनगर बादामी बाग कंटोनमेंट में हुए इस हमले में 6 सुरक्षा जवानों की मौत हो गई थी.
एक पुलिस रिपोर्ट के मुताबिक, “घाटी में जैश और लश्कर जैसे आतंकी समूह सत्ता के लिए जंग कर रहे हैं और ऐसे में वो कई क्रूर और बड़े आतंकी हमलों को अंजाम दे सकते हैं, अपने मकसद को पूरा करने के लिए वो स्थानीय लोगों की भर्ती करते हैं”. साल 2018 में पुलिस रिपोर्ट के जरिए आतंकी संगठनों के बीच चल रही सत्ता की जंग से पैदा हुए सुरक्षा खरते के प्रति आगाह किया था.