जेरमी कॉर्बिन पर टिकी हैं पूरी प्रगतिशील दुनिया की निगाहें
ब्रिटेन में Once in a life time election की सबसे खास बात संभवतः लेबर पार्टी का घोषणापत्र है. इस महत्त्वाकांक्षी घोषणापत्र का मकसद 40 साल के थैचरवादी रास्ते और उस पर चल कर ब्रिटेन ने जो व्यवस्था बनाई, उसे पलटना है.
जेरमी कॉर्बिन ने इस बार एक आम घोषणापत्र के अलावा युवाओं के लिए और कला-संस्कृति क्षेत्र के लिए अलग-अलग घोषणापत्र जारी किए हैं. इसके अतिरिक्त कॉर्बिन ने पांच साल में रेलवे का फिर से राष्ट्रीयकरण करने और अगले जनवरी तक रेल किरायों में एक तिहाई कटौती करने की एक योजना अलग से पेश की है.
इसमें उल्लेखनीय बात राष्ट्रीयकरण है. नव-उदारवादी परियोजना के तहत चलाए गए अभियान के जरिए 1970 के दशक से राष्ट्रीयकरण को एक बदनाम शब्द में बदला जाने लगा था. 1979 में ब्रिटेन में मार्गरेट थैचर और 1981 में अमेरिका में रोनाल्ड रेगन के सत्ता में आने के बाद दुनिया भर में नव-उदारवाद का दौर आ गया. इसके तहत निजीकरण और मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ी. 1991 में सोवियत संघ के विखंडन के साथ मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था के लिए उस समय (एक तरह से) वैचारिक चुनौती भी खत्म हो गई. 2008 की मंदी तक यह स्थिति बनी रही.
लेकिन उसके बाद बदली सूरत का परिणाम आज जेरमी कॉर्बिन को मिली लोकप्रियता है. इसी की बदौलत वे बैक बेंच (पिछली कतार) से आगे बढ़ते हुए लेबर पार्टी का नेता बन सके. और इसी वजह से उनके नेतृत्व में लेबर पार्टी ने जो घोषणापत्र जारी किया है, उस पर दुनिया भर में चर्चा हो रही है। इसलिए लेबर पार्टी के मुख्य घोषणापत्र में किए गए कुछ खास वादों पर ध्यान देना उचित होगा:
· लेबर पार्टी की सरकार बनी तो वह प्रमुख ऊर्जा कंपनियों, नेशनल ग्रिड, जल उद्योग, रॉयल मेल, रेलवे और ब्रिटिश टेलीकॉम जैसी कंपनियों का राष्ट्रीयकरण करेगी.
· पार्टी राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (NHS) में जिन सेवाओं का निजीकरण किया गया है, उन्हें फिर से सरकार के स्वामित्व में लाएगी. साथ ही वह स्वास्थ्य बजट को जीडीपी के 4.3 प्रतिशत तक बढ़ाएगी.
· लेबर सरकार नेशनल केयर सर्विस की शुरुआत करेगी. इसके तहत मुख्त निजी देखभाल की समुदाय आधारित- व्यक्ति केंद्रित सेवा का आरंभ करेगी.
· लेबर सरकार प्राइवेट स्कूलों को मिले चैरिटेबल दर्जे को समाप्त कर देगी. साथ ही ट्यूशन फीस भी खत्म कर दी जाएगी. गरीब छात्रों के लिए पढ़ाई-लिखाई का भत्ता देने की योजना फिर से लागू की जाएगी.
· लेबर सरकार हर साल एक लाख मकान बनाएगी, ताकि देश में बेघर लोगों को आवास मुहैया कराया जा सके.
· 25 साल से कम उम्र के नौजवानों को मुफ्त बस यात्रा की सुविधा दी जाएगी.
· सबको समान स्पीड से फ्री इंटरनेट सेवा देने का वादा भी लेबर पार्टी ने किया है.
जेरमी कॉर्बिन अपने मार्क्सवादी होने की बात कभी नहीं छिपाते. खुद को सोशलिस्ट कहते हैं. उनके नेतृत्व में बनाए गए घोषणापत्र को पार्टी सोशलिस्ट कहा है. दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब क्लेमेंट एटली ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने, तो उनकी सरकार देश को समाजवादी नीतियों की तरफ ले गई थी. लेकिन वो दौर दो-ढाई दशक से ज्यादा नहीं चल पाया. अब कॉर्बिन के नेतृत्व में पार्टी ने उन्हीं जड़ों की तरफ लौटने का एलान किया है.
स्वाभाविक है कि कॉरपोरेट जगत और यथास्थितिवादी ताकतों ने लगातार कॉर्बिन के खिलाफ अभियान चला रखा है. धमकियां दी गई हैं तो कॉर्बिन सत्ता में आए, देश से पूंजी का पलायन शुरू हो जाएगा. द टेलीग्राफ और फाइनेंशियल टाइम्स जैसे अखबार लोगों को सोवियत संघ में व्यक्तिगत अधिकारों के कथित दमन और स्वतंत्रता के अभाव की याद दिलाते रहे हैं, ताकि सोशलिज्म को लेकर एक भय का माहौल बनाया जा सके. मगर इस चुनाव में पूंजीवाद समर्थक जमातों के लिए एक दूसरी मुश्किल खड़ी हो गई है.
कंजरवेटिव पार्टी का नेतृत्व ट्रंप स्टाइल के नेता धुर दक्षिणपंथी बोरिस जॉनसन के हाथ में है, जिन्होंने हर हाल में ब्रेग्जिट को अपना मुख्य लक्ष्य बना रखा है. ब्रिटिश पूंजीपति यह नहीं चाहते. तो उनके सामने एक तरफ ब्रेग्जिट और दूसरी तरफ कॉर्बिन का लाल रंग है. इसके बीच उनकी स्वाभाविक पसंद लिबरल डेमोक्रेट्स होते, लेकिन इस पार्टी के जन-समर्थन में लगातार गिरावट आती गई है. लिबरल डेमोक्रेट्स ने शायद इसी उम्मीद में ब्रेग्जिट को एजेंडे से हटाने का वादा किया था कि यूरोपीय संघ से जुड़े रहने में अपना हित देखने वाले समूहों का समर्थन उसे मिलेगा. इनमें सबसे बड़ा समूह पूंजीपतियों और कारोबारियों का है. लेकिन लिबरल डेमोक्रेट्स की बेहद कमजोर हालत के बीच ये समूह मुमकिन है कि बोरिस जॉनसन के पक्ष में ही दांव लगाएं, क्योंकि यूरोप से अलग हुए ब्रिटेन में आखिरकार कंजरवेटिव पार्टी पूंजी-परस्त नीतियों पर ही चलेगी.
इसीलिए कॉर्बिन का संघर्ष कठिन है. कॉरपोरेट जगत, कॉरपोरेट मीडिया, ब्रेग्जिट समर्थक संगठनों द्वारा फैलाई गई उग्रवादी भावनाओं के निशाने पर वो हैं. इन भावनाओं के असर में ऐसे अनेक तबके हैं जो पारंपरिक रूप से लेबर पार्टी का समर्थक होते थे. समाज के रूढ़िवादी और अभिजात्य तबके हमेशा से कंजरवेटिव पार्टी का आधार रहे हैं. यानी लेबर पार्टी का चुनाव जीतना आसान नहीं है. मगर यह इसलिए असंभव नहीं है, क्योंकि जेरमी कॉर्बिन ने पार्टी का नेता बनने के बाद लेबर राजनीति की शैली बदल दी है. युवाओं की टोलियां बनाना, छोटे-छोटे चंदे लेना, समुदायों और रिहाइशी इलाकों में जाकर प्रचार करना, और साथ ही सोशल मीडिया का प्रभावी उपयोग इस शैली का हिस्सा हैं. यानी टीवी और अखबारों के जरिए बनाए गए जनमत पर निर्भर रहने का चलन कॉर्बिन के नेतृत्व वाली लेबर पार्टी ने फिलहाल खत्म कर दिया है.
बहरहाल, मौजूद परिस्थितियों के बीच क्या लेबर पार्टी सरकार बनाने लायक सीटें ला पाएगी? इस पर दुनिया भर के प्रगतिशील लोगों की निगाहें टिकी हैं. इस पर उन तमाम नवोदित नेताओं और ताकतों की निगाहें भी टिकी हैं, जो अलग-अलग देशों में लोकतांत्रिक समाजवादी के उदय की नई परिघटना के तहत सामने आई हैं. उन ताकतों की बातें आगे के लेख में.