झारखंड: कोलेबिरा उपचुनाव में बड़ी हार तो झामुमो की


jharkhand gave a perfect retort to fascist force says hemant soren

 

झारखंड में विपक्षी एकता पर ग्रहण लगने के बावजूद कोलेबिरा विधानसभा क्षेत्र के लिए हुए उपचुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी नमन विक्सल कोंगाड़ी ने बीजेपी के बसंत सोरेंग को 9,658 मतों से पराजित कर दिया है. इसके साथ ही बीजेपी ने भले उपचुनावों में हार की हैट्रिक बना ली है पर बड़ी हार झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की हुई है, जिसने महागठबंधन से अलग होकर झारखंड पार्टी की प्रत्याशी मेनन एक्का को समर्थन दिया और कांग्रेस के प्रत्याशी नमन विक्सल कोंगाड़ी को हराने के लिए एड़ी-चोटी का पसीना एक कर दिया था.

जाहिर है कि अपने प्रत्याशी की जीत से उत्साहित कांग्रेस को झामुमो को हद में रहने जैसा संदेश देने का मौका मिल गया है. सच कहिए तो कांग्रेस इस कदर उत्साहित है कि उसके नेता प्रदीप तुलस्यान ने बयान दिया है कि झामुमो गठबंधन में नहीं रहना चाहता है तो कांग्रेस को इसकी बिल्कुल परवाह नहीं है.

झारखंड में झामुमो महागठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी है. इसके नेता पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस उपचुनाव के जरिए भी संदेश देना चाहते थे कि महागठबंधन के नेता पद के असली हक़दार वे ही हैं. लिहाजा उन्होंने झारखंड पार्टी की प्रत्याशी और पूर्व विधायक एनोस एक्का की पत्नी मेनन एक्का को जीताने के लिए कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी थी. प्रचार के आखिरी दिन हेमंत सोरेन ने खुद वहां रोड शो कर मेनन के पक्ष में वोट की अपील की थी.

पर पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पार्टी जयभारत समानता पार्टी का कांग्रेस में विलय और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा के कांग्रेस के पक्ष में खड़े हो जाने और हाल ही में तीन राज्यों में कांग्रेस को मिली जीत के बाद कोलेबिरा में ऐसी हवा चली कि पूर्व के सारे समीकरण फेल हो गए. मेनन एक्का मुकाबले से बाहर होकर चौथे स्थान पर पहुंच गईं.

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कोलेबिरा विधानसभा सीट पर 2005 से चुनाव जीतने वाले एनोस एक्का के पारा शिक्षक मर्डर केस में सज़ायाफ्ता होने के कारण उपचुनाव करवाया गया था. जेल में उम्र कैद की सजा काट रहे एनोस एक्का ने अपनी पत्नी मेनन एक्का को चुनाव मैदान में बड़े तामझाम के साथ उतारा था. महागठबंधन में भारी खींचतान के बीच मेनन एक्का को झामुमो के बाद राजद का भी समर्थन मिल जाने के बाद शुरू में उनका पलड़ा भारी लग रहा था.

दूसरी तरफ पिछले विधानसभा चुनाव में पूर्व में माओवादी कमाडंर मनोज नगेसिया को अपना कर कोलेबिरा में अपना आधार मजूबत करने वाली बीजेपी श्री नगेसिया की हत्या के बाद से भी बेहद कमजोर स्थिति में थी. तभी अंतिम समय में एक ऐसे उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारा गया था, जिसकी पूरे विधानसभा क्षेत्र में पहचान नहीं थी. रघुवर सरकार के कार्यकाल में हुए पांच उपचुनावों में यह चौथा उप चुनाव है, जिसमें उसे पराजय का सामना करना पड़ा है. वह मात्र गोड्डा विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में ही अपनी सीट बचाने में कामयाब हो पाई थी.

बीजेपी में अंतर्कलह और रघुवर सरकार के कामकाज को लेकर मतदाताओं में नाराजगी को देखते हुए राजनीति के जानकार पहले से कयास लगा रहे थे कि बीजेपी लोकसभा चुनाव से पहले हो रहे कोलेबिरा उपचुनाव से भी बेहतर संदेश देने में कामयाब नहीं हो पाएगी. बीजेपी के नेता भी कुछ ऐसा ही मानकर चल रहे थे. तभी कोलेबिरा में कोई बड़ा नेता प्रचार के लिए नहीं गया था.

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कांग्रेस तो काफी पहले से आरोप लगाया रही थी कि एनोस एक्का और बीजेपी के बीच अंदरूनी गठजोड़ है और बीजेपी एनोस एक्का की पत्नी मेनन एक्का के पक्ष में काम कर रही है. पर कहते हैं कि अंतिम वक्त में जब झारखंड पार्टी को लगा कि उसके वोटरों का बड़ा हिस्सा कांग्रेस के पक्ष में हो गया है तो बाकी वोटरों को बीजेपी के पक्ष में करने के लिए एड़ी-चोटी का पसीना एक किया गया.

कोलेबिरा उपचुनाव में जीत के बाद जाहिर है कि पूरे झारखंड में कांग्रेस और उसे साथ देने वाले महागठबंधन के घटक दलों में उत्साह है. प्रदेश कांग्रेस चुनाव अभियान समिति के संयोजक सुबोधकांत सहाय की मानें तो यह कांग्रेस के प्रति बढ़ते भरोसे की हुई जीत हुई है और कोलेबिरा की जनता ने कांग्रेस प्रत्याशी को झारखंड विधानसभा में भेजकर पूरे राज्य को यह संदेश दे दिया है कि कांग्रेस की अगुवाई में परिवर्तन की लहर शुरू हो चुकी है. आगामी लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में भी यही परिणाम दोहराए जाने वाले हैं.

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष डॉ अजय कुमार को लगता है कि कोलेबिरा का परिणाम राज्य की भावी राजनीतिक दशा-दिशा तय करने में निर्णायक साबित होगा.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और झारखंड से संबंधित हैं.)


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