कश्मीर, एनआरसी, अमेजन वर्षावन समेत अनेक मुद्दों पर जेएनयू प्रेसिडेंशियल डिबेट में बोले उम्मीदवार
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अलग-अलग नारों, डफली-ढोल की ताल और छात्र-छात्राओं के शोर-ओ-गुल के बीच जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अध्यक्ष पद के लिए प्रेसिडेंशियल डिबेट समाप्त हुआ. अब छात्र-छात्राएं 6 सितंबर को छात्रसंघ के अलग-अलग पदों के लिए वोट डालेंगे.
इस बार एबीवीपी को हराने के लिए एसएफआई,एआईएसए,एआईएसएफ और डीएसएफ ने हाथ मिलाकर युनाइटेड लेफ्ट का गठन किया. इनके साथ ही एनएसयूआई, बापसा, राजद और एक निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में है.
अध्यक्ष पद के लिए युनाइटेड लेफ्ट की उम्मीदवार आइशी घोष हैं. एबीवीपी की ओर से अध्यक्ष पद के उम्मीदवार मनीष जांगिड़ हैं. बापसा की ओर से जीतेंद्र सुना, सीआरजेडी की ओर से प्रियंका भारती, एनएसयूआई की ओर से प्रशांत कुमार और राघवेंद्र मिश्रा अध्यक्ष पद के लिए निर्दलीय उम्मीदवार हैं.
जेएनयू हमेशा से ही अपने वाद-विवाद के दस्तूर के लिए मश्हूर रहा है. भाषण देने वाले उम्मीदवार अपने कैंपस के मुद्दों के अलावा देश-विदेश के मुद्दों पर अपनी राय रखते हैं. इस बार भी उम्मीदवारों ने कई अहम मुद्दों पर बात की.
बापसा, सीआरजेडी, युनाइटेड लेफ्ट और एनएसयूआई के उम्मीदवारों ने अपने-अपने भाषण में कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने, अमेजन वर्षावन में लगी आग, एनआरसी और सरकार की नीतियों के चलते सुस्त हुई अर्थव्यवस्था पर कड़ा तेवर अपनाया. इसके अलावा जातिगत भेदभाव मिटाने, जेंडर जस्टिस, मॉब लिंचिंग, मुस्लिम, दलित, आदिवासियों और पिछड़ों पर हो रहे अत्याचार पर अपने-अपने विचार रखे.
सीआरजेडी की उम्मीदवार प्रियंका भारती ने वामपंथी और दक्षिणपंथी दोनों पर शब्दों के तीर चलाए. इसके अलावा शिक्षा के बाजारीकरण, आरक्षण, संस्थागत हत्याओं, विश्वविद्यालय में ओबीसी प्रोफेसर ना होना, संस्थान के हेल्थ सेंटर के बारे में बात की. उन्होंने सरकार द्वारा माइनॉरिटी संस्थानों को टारगेट करने की निंदा की.
युनाइटेड लेफ्ट की उम्मीदार ने आरटीआई हटने के नुकसान का जिक्र किया. बीजेपी की सांप्रदायिक राजनीति, रोजगार, किसान आंदोलन, जेएनयू द्वारा प्रोफेसर रोमिला थापर से सीवी मांगना, जीएस-कैश, आरक्षण, मेंटल हेल्थ और हॉस्टल व्यवस्था ठीक करने की बात.
एनएसयूआई के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार ने एनआरसी, अर्थव्यवस्था, सरकार द्वारा स्वयत्त संस्थानों में सेंध लगाने की निंदा की. उन्होंने चीन के बहाने लेफ्ट यूनिटी पर वार किया और हांगकांग में हो रहे प्रदर्शन का जिक्र किया. महिलाएं और सामाजिक न्याय के मुद्दों को उठाया. उन्होंने जेएनयू से लापता हुए छात्र नजीब की भी बात की.
बापसा उम्मीदवार जितेंद्र सुना ने ‘जीतेगा जितेंद्र’ के नारों के बीच मंच संभाला. उन्होंने कश्मीरियों को सलाम करते हुए अपने भाषण की शुरुआत की जो ‘अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं’ और साथ ही असमियों को भी सलाम किया ‘जो अपनी नागरिकता के लिए लड़ रहे हैं.’
सुना ने कहा कि वह मजदूर थे और उनकी प्रेज़ीडेंशियल डिबेट में “उनकी जिंदगी का संघर्ष” दिखता है. उन्होंने दक्षिणपंथियों और वामपंथियों पर निशाना साधा.
एबीवीपी के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार ने जीएस-कैश की बात की. उन्होंन कहा कि पोस्ट ऑफिस, एसबीआई बैंक, वाई-फाई, कैंपस में ई-रिक्शा चलना और सैनिटरी पैड वेंडिंग मशीन एबीवीपी की देन है. उन्होंने 13 प्वाईंट रोस्टर का विरोध, छात्रवृत्ति को बढ़ाने, देश भर में दस लाख महिलाओं को सेल्फ डिफेंस सिखाने की बात की. उन्होंने वामपंथियों को टुकड़े-टुकड़े गैंग और अर्बन नक्सल कहा. उन्होंने कश्मीर पर कहा कि अनुछेद 370 खत्म होने पर कहा कि प्रसाद मुखर्जी का सपना पूरा हुआ है.
निर्दलीय उम्मीदवार ने राष्ट्रवाद की बात की.