मिशन 29: विधायकों को ताकतवर बनाते ‘मुखिया’


kamal nath and gopal bhargava launched their mission 29 in madhya pradesh

 

मध्य प्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी लोकसभा चुनाव के मोड में आ चुकी हैं. दोनों पार्टी 29 सीटों में से अधिकांश अपने खाते में रखना चाहती हैं. मुख्यमंत्री कमलनाथ और नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव इस मिशन को पूरा करने के लिए अपने विधायकों को तवज्जो दे रहे हैं. नाथ के पास सत्ता और संगठन की दोहरी जिम्मेदारी है. प्रदेश अध्यक्ष के रूप में वे हर क्षेत्र के संगठन को दुरुस्त करने में जुटे हैं, तो बतौर मुख्यमंत्री वे उन गलतियों को सुधार रहे हैं जिनके कारण सत्ता में रहते हुए भी संगठन के रूप में बीजेपी को नुकसान हुआ.

माना जाता है कि शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री रहते संगठन का विस्तार भले हुआ, मगर सत्ता संचालन में अफसरशाही हावी रही. विधायक तो ठीक मंत्रियों की अनुशंसाएं भी पूरी नहीं होती थी. परिणामस्वरूप विधायकों का असर कम होता गया. कमलनाथ इस चूक को सुधार रहे हैं. उन्होंने विधायकों से मिलने के लिए सप्ताह के दो दिन तय किए ताकि विधायक तय समय पर आसानी से मुख्यमंत्री से मिल कर अपनी बात रख सकें. इतना ही नहीं नाथ ने विधायकों को तबादले के भी अधिकार दिया है. मुख्यमंत्री कमलनाथ ने मुख्य सचिव एसआर मोहंती को कहा है कि मुख्यमंत्री सचिवालय में जिन भी विधायकों ने किसी के तबादले के लिए आवेदन किया है, उनकी मांग पूरी हो. जाहिर है यह कवायद लोकसभा चुनाव के मद्देनजर की गई है ताकि विधायक स्वयं को असहाय न मानें.

शिव ‘राज’ की इस चूक से नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने भी सबक लिया है. उन्होंने बीजेपी विधयकों को पत्र लिख कर कहा है कि उनके क्षेत्र में अधिकारी या प्रशासनिक स्तर पर समस्या आती है तो वो भार्गव को बताएं. भार्गव अपने विधायकों को उनकी समस्या के साथ अकेले छोड़ना नहीं चाहते. वे भी जानते हैं कि विधायकों के वर्चस्व से ही लोकसभा के मिशन 29 की राह पुख्ता होती है.

विभाग के कड़वे डोज़ को मंत्री भनोत की ‘पहल’ का ‘कवर’

वित्र मंत्रालय की सख्तियां अन्य विभागों को हमेशा खटकती ही हैं. वित्त मंत्रालय मितव्ययता का हवाला दे कर या अनुपयोगी बताते हुए अक्सर ही विभागों की बजट मांगों को खारिज करता रहा है. अपने मंत्रालय के इस कड़वे डोज़ के विपरीत वित्त मंत्री तरुण भनोत की पहल चर्चा में आ गई है. अनावश्यक खर्च में कटौती का फरमान निकालने वाले वित्त मंत्री भनोत ने तय किया है कि मंत्रालय स्थित दफ्तर में उनसे मिलने वाले सभी मेहमानों और अन्य आगंतुकों के सत्कार पर होने वाला खर्च वे स्वयं वहन करेंगे.

सत्कार पर खर्च होने वाली राशि सरकारी खजाने से खर्च नहीं होगी. मंत्रियों और अधिकारियों के कक्षों में सत्कार के लिए लगने वाली खाद्य सामग्री आदि का भुगतान सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा किया जाता है. इसके लिए अलग से सत्कार मद है.भनोत ने यह खर्च स्वयं वहन करने के लिए सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) को एक पत्र लिखा है. अब तक की सरकारों में मितव्ययिता के लिए अपनी तरह से ऐसी पहल करने वाले भनोत पहले मंत्री हैं. मितव्ययिता के नाम पर अब तक मंत्री सरकारी खर्चों में कटौती की बात करते रहे हैं, लेकिन किसी ने भी खुद से इसकी शुरुआत नहीं की. अब सभी पर भनोत की तरह मितव्ययता को अपनाने का नैतिक दबाव है.

हर मोर्चे पर टकराएंगे नेता प्रतिपक्ष

संख्याबल में करीब होने के बाद भी बीते विधानसभा सत्र में विपक्ष कांग्रेस सरकार के आगे कमतर साबित हुआ था. विपक्ष के कद्दावर नेता बंटे हुए नजर आए थे. अब 18 फरवरी से आरम्भ हो रहे पांच दिन के सत्र में नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव इस कमी को दोहराना नहीं चाहते. वे खुद तो अलग-अलग मुद्दों पर सरकार को घेर ही रहे हैं, अपने विधायकों से भी कह चुके हैं कि वे अपने प्रश्नों और आक्रामक रुख से सरकार के निर्णयों को कठघरे में खड़ा करें. भार्गव ने सदन के बाहर भी मुहिम छेड़ रखी है. जहां एक ओर सत्र छोटा होने पर आपत्ति जताते हुए वे राज्यपाल को गुहार लगा चुके हैं, तो दूसरी ओर सूचना आयुक्तों की नियुक्त किए जाने के संबंध में बैठक पर भी नकारात्मक रुख जता चुके हैं.

मुख्यमंत्री कमलनाथ ने 18 फरवरी को विधानसभा में बैठक बुलाई है. सूचना आयुक्तों की चयन समिति में मुख्यमंत्री कमलनाथ, नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव और एक अन्य सदस्य नगरीय प्रशासन मंत्री जयवर्द्धन सिंह शामिल हैं. भार्गव का कहना है कि महत्वपूर्ण नियुक्तियों पर सरकार को पहले उनसे परामर्श करना था.वैसे ही विधानसभा का सत्र इतना छोटा है. मेरी पहली प्राथमिकता लोकहित के मुद्दों और जनता की दिक्कतों पर सदन में चर्चा करवाना है, उसके बाद बैठक के लिए समय निकाल पाऊंगा. यानि, भार्गव सरकार की राह आसान नहीं रहने देने वाले.


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