चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को गुमराह किया: कपिल सिब्बल
वरिष्ठ कांग्रेस नेता और अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने हाल में दिए अपने एक इंटरव्यू में चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में गलत जानकारी दी.
25 अप्रैल को द टेलीग्राफ को दिए इंटरव्यू में उन्होंने चुनाव आयोग पर सुप्रीम कोर्ट को गुमराह करने के आरोप लगाए हैं.
सिब्बल ने आयोग के उस दावे पर सवाल उठाया है जिसमें उसने कहा था कि कुल 10.35 लाख ईवीएम और वीवीपैट मशीनों में से 479 वीवीपैट पर्चियों और ईवीएम का मिलान करने पर नतीजे सही आएंगे. आयोग ने यह दावा इंडियन स्टेटिकल इंस्टीट्यूट (आईएसआई) के अध्ययन के आधार पर किया था, लेकिन सिब्बल ने स्पष्ट किया है कि आईएसआई ने ऐसे किसी भी अध्ययन की जिम्मेदारी लेने से मना कर दिया है.
उन्होंने कहा,” मैं चुनाव आयोग को चैलेंज देता हूं कि वो ये साबित करे कि यह अध्ययन आईएसआई ने किया है.”
मामले को आगे समझाते हुए उन्होंने कहा कि आयोग ने दिल्ली सेंटर के अध्यक्ष, जो आईएसआई में सदस्य भी हैं, से इस बारे में अध्ययन करने को कहा था. जबकि दिल्ली सेंटर के अध्यक्ष ने आईएसआई से अध्ययन की मांग करने के स्थान पर खुद ही कुछ लोगों की टीम बनाते हुए अध्ययन को पूरा किया. ”
सिब्बल ने जोड़ा, “13 मार्च 2019 को दाखिल आरटीआई से पता चलता है कि ये अध्ययन आईएसआई को बताए बिना पूरा किया गया. लेकिन सुनवाई के दौरान कोर्ट को लगा कि अध्ययन आईएसआई ने किया, पर ऐसा नहीं है.”
वहीं अध्ययन के संबंध में मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा से सवाल पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट निर्देश देगा तो हम जवाब जरूर दाखिल करेंगे.
इसके अलावा सिब्बल ने 50 फीसदी वीवीपैट और ईवीएम के मिलान की वजह से मतगणना करने में 5 से 6 दिन लगने के चुनाव आयोग के तर्क पर भी सवाल उठाए. उन्होंने जोड़ा, “पहले जब बैलेट पेपर इस्तेमाल किए जाते थे, तब भी परिणाम 2 दिन में आ जाते थे. तो फिर अब मशीनों को केवल मिलाने भर से परिणाम आने में 5 से 6 दिन की देरी कैसे हो सकती है. लेकिन परिस्थितियों को ध्यान में रखने हुए हम फिर कह रह हैं कि देरी से ज्यादा जरूरी है सही और निष्पक्ष चुनाव.”
बीती 8 अप्रैल को 21 विपक्षी पार्टियों द्वारा 50 फीसदी ईवीएम मशीनों का मिलान वीवीपैट से करने की मांग पर चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि ऐसा करने से मतगणना में 5-6 दिन की देरी हो सकती है. आयोग ने बड़ी तादाद में सक्षम स्टाफ की जरूरत होने का तर्क भी दिया था.
जाहिर है कि कपिल सिब्बल ने चुनाव आयोग की कार्यशैली और विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. अगर आईएसआई के अध्ययन को आधार बनाकर किया गया उसका दावा संदिग्ध साबित होता है तो उसकी साख पर उठ रहे सवाल और गहरे हो जाएंगे.