कर्नाटक: सुप्रीम कोर्ट ने विधायकों को अयोग्य ठहराने के फैसले को बरकरार रखा
सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष द्वारा 17 विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने के फैसले को बरकरार रखा लेकिन साथ ही विधायकों को पांच दिसंबर को उपचुनाव लड़ने की अनुमति भी दे दी.
सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष के फैसले का वह हिस्सा हटा दिया जिसमें कहा गया था कि ये विधायक 15वीं कर्नाटक विधानसभा का कार्यकाल पूरा होने तक अयोग्य ही रहेंगे.
कोर्ट ने अपने फैसले में अयोग्य ठहराए गए विधायकों के लिए कर्नाटक में पांच दिसंबर को होने जा रहे उपचुनाव लड़ने का मार्ग प्रशस्त किया.
वहीं अयोग्य ठहराए गए विधायक रमेश जरकिहोली ने कहा कि सभी 17 विधायक 14 नवंबर को बीजेपी में शामिल होंगे.
जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि उपचुनाव जीतने पर ये विधायक मंत्री बन सकते हैं या सार्वजनिक कार्यालय का प्रभार संभाल सकते हैं.
कोर्ट ने इन विधायकों के हाई कोर्ट में याचिका दाखिल किए बिना सीधे शीर्ष अदालत का रुख करने के कदम पर नाखुशी भी जाहिर की.
वहीं शीर्ष अदालत ने कहा कि उसका फैसला मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर आधारित है और यह अध्यक्ष के विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने संबंधी अधिकार में हस्तक्षेप नहीं करता .
पीठ ने इन अयोग्य घोषित विधायकों की याचिकाओं पर 25 अक्टूबर को सुनवाई पूरी की थी.
कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष रमेश कुमार ने विधानसभा में एचडी कुमारस्वामी सरकार के विश्वास प्रस्ताव से पहले ही 17 बागी विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया था.
विधानसभा में विश्वास मत प्राप्त करने में विफल रहने पर कुमारस्वमी की सरकार ने इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद, बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व में राज्य में नई सरकार का गठन हुआ.
इन विधायकों को अयोग्य घोषित किए जाने की वजह से 17 में से 15 सीटों के लिए पांच दिसंबर को उपचुनाव हो रहे हैं. अयोग्य घोषित किए गए विधायक इन उपचुनाव में नामांकन पत्र दाखिल करना चाहते हैं. नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 18 नवम्बर है.
इन विधायकों ने हाल में शीर्ष अदालत में एक आवेदन दायर कर 15 सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव की तारीख स्थगित करने का निर्वाचन आयोग को निर्देश देने का अनुरोध किया था. इन विधायकों का कहना था कि उनकी याचिकाओं पर न्यायालय का निर्णय आने तक निर्वाचन आयोग को इन सीटों पर चुनाव नहीं कराने चाहिए.
अयोग्य घोषित विधायकों की दलील थी कि सदन की सदस्यता से त्यागपत्र देना उनका अधिकार है और अध्यक्ष का निर्णय दुर्भावनापूर्ण है और इसमें प्रतिशोध झलकता है. इन विधायकों में से अनेक ने सदन की सदस्यता से इस्तीफा देते हुए अध्यक्ष को पत्र लिखे थे.