उत्तर प्रदेश और बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था बदहाल: नीति आयोग रिपोर्ट


kerala best state on health parameters says niti aayog report

 

नीति आयोग की ओर से जारी किए गए दूसरे स्वास्थ्य सूचकांक में केरल शीर्ष रैंकिंग के रूप में उभरा है. जबकि उत्तर प्रदेश इसमें निचले स्थान पर है.

उत्तर प्रदेश सबसे निचले 21वें स्थान पर है. उसके बाद क्रमश: बिहार, ओड़िशा, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड का स्थान है. वहीं शीर्ष पर केरल है. उसके बाद क्रमश: आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात का स्थान हैं.

वहीं छोटे राज्यों में त्रिपुरा पहले पायदान पर रहा. उसके बाद क्रमश: मणिपुर, मिजोरम और नगालैंड का स्थान रहा. इसमें सबसे फिसड्डी अरूणाचल प्रदेश (आठवें), सिक्किम (सातवें) तथा गोवा (छठे) का स्थान रहा.

रिपोर्ट के अनुसार केंद्रशासित प्रदेशों में दादर एंड नागर हवेली तथा चंडीगढ़ में स्थिति पहले से बेहतर हुई है. सूची में लक्षद्वीप सबसे नीचे तथा दिल्ली पांचवें स्थान पर है.

रिपोर्ट के अनुसार इंक्रीमेंटल परफॉरमेंस में झारखंड शीर्ष पर है. वहीं बिहार और ओडिशा का प्रदर्शन खराब रहा है.

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय तथा विश्व बैंक के तकनीकी सहयोग से तैयार नीति आयोग की ‘स्वस्थ्य राज्य प्रगतिशील भारत’ शीर्षक से जारी रिपोर्ट में राज्यों की रैंकिंग से यह बात सामने आयी है. इस रपट में इन्क्रीमेन्टल रैंकिंग यानी पिछली बार के मुकाबले सुधार के स्तर के मामले में 21 बड़े राज्यों की सूची में बिहार 21वें स्थान के साथ सबसे नीचे है. इसमें उत्तर प्रदेश 20वें, उत्तराखंड 19वें और ओड़िशा 18वें स्थान पर हैं.

23 स्वास्थ्य संकेतकों के आधार पर राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के इस सूचकांक को बनाया गया है.

रैंकिंग को मुख्य रूप से बड़े राज्य, छोटे राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के अनुसार तीन भागों में बांटा गया था ताकि समान संस्थाओं के बीच तुलना सुनिश्चित की जा सके.

रिपोर्ट के अनुसार संदर्भ वर्ष 2015-16 की तुलना में 2017-18 में स्वास्थ्य क्षेत्र में बिहार का संपूर्ण प्रदर्शन सूचकांक 6.35 अंक गिरा है. इसी दौरान उत्तर प्रदेश के प्रदर्शन सूचकांक में 5.08 अंक, उत्तराखंड 5.02 अंक तथा ओडिशा के सूचकांक में 3.46 अंक की गिरावट आई है.

यह रैंकिंग 23 संकेतकों के आधार पर तैयार की गई है. इन संकेतकों को स्वास्थ्य परिणाम (नवजात मृत्यु दर, प्रजनन दर, जन्म के समय स्त्री-पुरूष अनुपात आदि), संचालन व्यवस्था और सूचना (अधिकारियों की नियुक्ति अवधि आदि) तथा प्रमुख इनपुट / प्रक्रियाओं (नर्सों के खाली पड़े पद, जन्म पंजीकरण का स्तर आदि) में बांटा गया है.

इस रिपोर्ट में पिछले बार के मुकाबले सुधार और कुल मिलाकर बेहतर प्रदर्शन के आधार पर राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों की रैंकिंग तीन श्रेणी में की गयी है. पहली श्रेणी में 21 बड़े राज्यों, दूसरी श्रेणी में आठ छोटे राज्यों एवं तीसरी श्रेणी में केंद्र शासित प्रदेशों को रखा गया है.

रिपोर्ट जारी किये जाने के मौके पर नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा, ‘‘यह एक बड़ा प्रयास है. जिसका मकसद राज्यों को महत्वपूर्ण संकेतकों के आधार पर स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में सुधार के लिए आपस में प्रतिस्पर्धा के लिये प्रेरित करना है.’’

उन्होंने कहा, ‘‘हम ऐसे राज्यों के साथ काम कर रहे हैं और जो सूचकांक में पीछे हैं, उनमें सुधार के लिये वहां ज्यादा काम करेंगे. जो आकांक्षावादी (पिछड़े जिले) हैं, उनकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण होगी.

आयोग के सदस्य डा. वी के पॉल ने कहा, ‘‘स्वास्थ्य क्षेत्र में अभी काफी काम करने की जरूरत है. इसमें सुधार के लिये स्थिर प्रशासन, महत्वपूर्ण पदों को भरा जाना तथा स्वास्थ्य बजट बढ़ाने की जरूरत है.’’

नीति आयोग के मुख्य कार्यपालक अधिकारी अमिताभ कांत ने कहा कि आयोग सालाना प्रणालीगत व्यवस्था के रूप में स्वास्थ्य सूचकांक स्थापित करने को प्रतिबद्ध है ताकि राज्यों का बेहतर स्वास्थ्य परिणाम हासिल करने की ओर ध्यान जाए.

यह दूसरा मौका है जब आयोग ने स्वास्थ्य सूचकांक के आधार पर राज्यों की रैंकिंग की है. इस तरह की पिछली रैंकिंग फरवरी 2018 में जारी की गयी थी. उसमें 2014 के आधार पर 2015 के आंकड़ों की तुलना की गई थी.


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