जन्मतिथि विशेष: जितना पागल समझा जाता है, उतना पागल नहीं


  File Photo

किशोर कुमार ! हां वहीं खंडवा वाले किशोर कुमार. भारतीय सिनेमा का यह नायाब पार्श्व गायक किसी भी मंच पर अपना परिचय इसी अनोखे अंदाज़ में देता था. हालांकि उनका असली नाम आभास कुमार गांगुली था लेकिन फिल्मी दुनिया ने उन्हें नाम दिया था किशोर कुमार.

मध्यप्रदेश के खंडवा में 4 अगस्त 1929 को उनका जन्म हुआ था और बॉम्बे में एक मशहूर और बेहद लोकप्रिय गायक के तौर पर जम जाने के बाद भी ताउम्र अपने आप को वो खंडवा का ही बताते रहे. वो खंडवा में 18 साल की उम्र तक रहे. वो अक्सर कहा करते थे कि बॉम्बे छोड़कर खंडवा चले जाएंगे. वो कहते थे कि दूध-जलेबी खाएंगे और खंडवा जाकर रहेंगे लेकिन उनके जीते जी ऐसा हो ना सका. छोटे से कस्बे खंडवा को लेकर किशोर कुमार के मन में जो लगाव था, वो यह दिखाता है कि बॉम्बे जैसे महानगर में रहकर भी वो एक कस्बाई चेतना के व्यक्ति थे. शायद इसीलिए बंबईया सिनेमा जगत में उनका कोई दोस्त नहीं था और वो थोड़ा अजीब माने जाते थे.

अप्रैल, 1985 में प्रीतिश नंदी को इलेस्ट्रेटेड वीकली के लिए दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, “इस जाहिल, दोस्तों से खाली शहर में कौन रह सकता है जहां हर कोई हर पल आपका शोषण करने कि लिए तैयार बैठा है. क्या किसी पर यहां भरोसा किया जा सकता है? क्या कोई भरोसे लायक हैं? कोई दोस्त ऐसा है जिसपर भरोसा किया जा सकता है? मैंने तय कर लिया है कि मैं इस बेकार के चूहादौड़ से बाहर निकल जाऊंगा और वैसे ही जीऊंगा जैसा मैं हमेशा से जीना चाहता था. अपने पैतृक घर खंडवा में. अपने बाप-दादा की जमीन पर. इस बदसूरत शहर में कौन मरना चाहता है?”


Pic Courtesy: Hindustan Times

इस कस्बाई चेतना ने जहां उन्हें एक तरफ सादगी पसंद और प्रकृति के नजदीक पहुंचाया तो वही दूसरी तरफ उनकी यह चेतना पहली शादी टूटने की वजह भी बनी. किशोर कुमार ने अपनी ज़िंदगी में चार शादियां की थीं. उनकी पहली शादी बांग्ला फिल्मों की गायिका रुमा गुहा से हुई थी. उनकी यह शादी आठ सालों तक चली थी.

रुमा गुहा के साथ शादी टूटने के बारे में उन्होंने इलेस्ट्रेटेड वीकली के इंटरव्यू में कहा था, “वो एक बहुत ही प्रतिभाशाली महिला थीं लेकिन हम साथ नहीं रह सके क्योंकि ज़िंदगी को देखने का हमारा नजरिया अलग-अलग था. वो एक गायकों का ग्रुप बनाना चाहती थीं और करियर बनाना चाहती थीं. मैं चाहता था कि कोई मेरा घर संवारे. दोनों कैसे साथ रहते? देखिए, मैं एक साधारण गांव वाले दिमाग का आदमी हूँ. औरतों की करियर बनाने की बात मुझे समझ में नहीं आती. बीवियों को पहले घर संवारना सीखना चाहिए. आप दोनों काम एक साथ कैसे कर सकते हैं? करियर और घर दोनों अलग-अलग चीजें हैं. इसीलिए हम दोनों ने अपने रास्ते अलग-अलग कर लिए.”

किशोर कुमार ने अपनी ज़िंदगी में लगभग तीन हज़ार गाने गाए थे और वो अकेले ऐसे गायक रहे जो एक अभिनेता के तौर पर भी बेहद सफल रहे. एक वक्त ऐसा भी था जब वो दिलीप कुमार के बाद सबसे ज्यादा पैसा कमाने वाले कलाकार थे.

उन्होंने कुल मिलाकर 81 फिल्मों में अभिनय किया था और 18 फिल्मों का निर्माण किया था. उनकी फिल्मी करियर की शुरुआत ही एक अभिनेता के तौर पर हुई थी. 1946 में उन्होंने अपने बड़े भाई और उस जमाने के मशहूर अभिनेता अशोक कुमार की मुख्य भूमिका वाली फिल्म ‘शिकारी’ के साथ अभिनय करियर की शुरुआत की थी. लेकिन वो कभी भी फिल्मों में अभिनेता नहीं बनना चाहते थे. उन्हें तो सिर्फ गाने का शौक था लेकिन अशोक कुमार को लगता था कि किशोर कुमार अच्छा नहीं गाते हैं.

एक बार अमरीकी दौरे के दौरान किशोर कुमार सिर्फ लता मंगेशकर को इंटरव्यू देने के लिए तैयार हुए थे. यह अकेला ऐसा इंटरव्यू है जो लता मंगेशकर ने लिया होगा. इस इंटरव्यू में किशोर कुमार कहते हैं, “संगीत को मैं पहला स्थान देता हूँ. एक्टिंग का नंबर बाद में आता है जो कि मैं करना नहीं चाहता था लेकिन मेरे बड़े भाई साहब अशोक कुमार जी ने कहा कि तू एक्टिंग कर लें. मैंने कहा, दादा मुनी मुझसे एक्टिंग करने को मत कहो. एक्टिंग झूठी होती है. संगीत दिल से निकलती है और दिल से जो चीज निकलती है वो दूसरे के दिलों तक पहुंचती है.”

इसी इंटरव्यू में वो खुद के बारे में कहते हैं, “दुनिया कहती है मुझे पागल और मैं कहता दुनिया को पागल. मुझे जितना पागल समझा जाता है, उतना पागल नहीं हूँ…लेकिन अब जब मुझे पागल समझ ही लिया है तो क्यों ना थोड़ा पागल बनकर रहा जाए दुनिया में.”

किशोर कुमार ने कभी गायन का कोई प्रशिक्षण भी नहीं लिया था. इसके बावजूद किशोर कुमार बेहद लोकप्रिय हुए. इसकी एक वजह यह थी कि उनकी आवाज़ आम मर्दाना आवाज़ जैसी थी जो कोई भी गुनगुना सकता था और जिसके साथ कोई भी अपनी भावनाएं जोड़ सकता था. जिस वक्त किशोर कुमार फिल्मी दुनिया में आए थे उस वक्त लंबी तान वाले गायकों का बोलबाला था. इन गायकों को गुनगुनाना हर किसी के वश की बात नहीं थी.

किशोर कुमार देव आनंद, राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन की आवाज बने. इन अभिनेताओं की सफलता में किशोर कुमार की आवाज की बड़ी भूमिका थी. लेकिन एक अभिनेता और था जिसके ऊपर किशोर कुमार की आवाज खूब जमती थी. वो थे संजीव कुमार. अमिताभ और राजेश खन्ना पर फिल्माए गए गानों के अलावा जिन गानों में किशोर कुमार की आवाज का जादू दिखता है, उन गानों को बनाया था गुलज़ार आरडी वर्मन और किशोर कुमार की तिकड़ी ने. इस तिकड़ी के बनाए गए गानों मुसाफिर हूँ यारों, ओ मांझी रे अपना किनारा, आने वाला पल जाने वाला है, फिर वही रात है, जाने क्या सोच कर नहीं गुजरा, राह पे रहते हैं, तेरे बिना ज़िंदगी से कोई शिकवा तो नहीं, इस मोड़ से जाते हैं और तुम आ गए हो, नूर आ गया है, में किशोर कुमार एक अलग ही अंदाज़ में दिखते हैं.

कितनी बड़ी विडंबना है कि सबसे अधिक बार फिल्म फेयर अवार्ड (आठ बार) जीतने वाले किशोर कुमार को कभी पदम पुरस्कार के काबिल नहीं समझा गया.

खंडवा बसने का किशोर कुमार का सपना कभी पूरा नहीं हो सका. इससे पहले ही वो 13 अक्टूबर 1987 को इस दुनिया को अलविदा कह गए. यह वो तारीख है जिस दिन उनके बड़े भाई अशोक कुमार का जन्मदिन होता है. उस साल भी उनके जन्मदिन की तैयारियां हो चुकी थीं. फिल्मी दुनिया के सारे लोगों को न्यौता भेजा चुका था. किशोर कुमार भी दादा मुनी के जन्मदिन को लेकर काफी उत्साहित थे. लेकिन शाम होते ही जन्मदिन की तैयारियां मातम में तब्दील हो गई. पौने पांच बजे के करीब किशोर कुमार को दिल का दौरा पड़ा और उनकी मृत्यु हो गई. खंडवा के जिस घर में जाकर वो रहना चाहते थे, उस घर को बेचने को लेकर अब उनके छोटे बेटे सुमित कुमार जो कि उनकी चौथी बीवी लीना चंदावरकर के बेटे हैं, और भतीजे अर्जुन कुमार में विवाद चल रहा है. अक्सर इस विवाद के किस्से मीडिया में आते रहते हैं.

अनुराग बासु कई सालों से रणबीर कपूर को लेकर किशोर कुमार की बायोपिक बनाने की योजना बना रहे हैं लेकिन अब तक इस फिल्म के बनने को लेकर कोई ठोस खबर नहीं आई है. इस बायोपिक में किशोर कुमार की ज़िंदगी के शायद कुछ और अनछुए पहलू हमें देखने को मिले.


Big News