खेती-किसानी से दूर जा रहे हैं किसान के बच्चे
किसान परिवारों के बच्चे खेती को छोड़कर बेहतर कमाई के लिए गैर कृषि खासकर कन्स्ट्रक्शन के क्षेत्र में मजदूरी को प्राथमिकता दे रहे हैं. हालांकि खेती-किसानी छोड़ने के बावजूद उनके जीवन स्तर में बेहतर बदलाव के कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं.
अन्य पेशों की तुलना में किसान के बच्चे खेती करना नहीं चाहते हैं. वहीं, साल 2005 से 2012 तक देश में इनकम मॉबिलिटी बढ़ने के बावजूद यह सभी राज्यों में समान नहीं है. जनवरी, 2019 में प्रकाशित आर्थिक गतिशीलता (इकॉनोमिक मॉबिलिटी) पर किए गए एक अध्ययन में ये बातें सामने आई हैं.
अध्ययन के मुताबिक साल 2005 की तुलना में साल 2012 में किसानों के बच्चों का खेती से मोह भंग हुआ है.’इंटरजेनेरेशन मॉबिलिटी इंडेक्स’ से बच्चे का अपने पिता का पेशा अपनाने के ट्रेंड का पता चलता है. इस इंडेक्स के मुताबिक कृषि और अन्य पेशे से जुड़े मजदूरों में यह दर 62.7 फीसदी से घटकर 58 फीसदी हुई है जबकि खेती के मामले में यह 53.5 फीसदी से घटकर 32.4 फीसदी रह गई है.
अध्ययन के सह लेखक और ‘जस्ट जॉब नेटवर्क’ के रिसर्च एसोसिएट दिव्य प्रकाश के हवाले से इंडिया स्पेंड ने लिखा है कि स्वतंत्रता के बाद से यह पहली बार है जब कृषि को छोड़कर गैर कृषि क्षेत्रों में जाने वाले कामगारों की संख्या जरूरत से ज्यादा हो गई है.
उन्होंने कहा कि 2005-2012 के बीच स्वतंत्रता के बाद पहली बार कृषि क्षेत्र में लगे मजदूरों का पलायन गैर कृषि क्षेत्र की ओर हुआ है क्योंकि कृषि क्षेत्र में तेजी से रोजगार के अवसर घटे हैं. किसानों के बच्चों में खेती या गांव में उपलब्ध अन्य मजदूरी या कृषि से जुड़े कारोबारों को छोड़कर गैर कृषि क्षेत्र को अपनाने का ट्रेंड बढ़ा है.
अध्ययन की सह लेखिका और जस्ट जॉब नेटवर्क की अध्यक्ष और कार्यकारी निदेशक सबिना देवान ने कहा कि कृषि क्षेत्र से जुड़े युवा(किसानों के बच्चे) बेहतर नौकरी की उम्मीद में शिक्षा ले रहे हैं. उन्होंने कहा कि काम की गुणवत्ता के साथ-साथ रोजगार की संख्या दोनों महत्वपूर्ण है.
इंडिया स्पेंड की रिपोर्ट के मुताबिक किसान परिवारों के युवा बेहतर कमाई के लिए गैर कृषि क्षेत्रों खासकर कन्स्ट्रक्शन के क्षेत्र में में जा रहे हैं. इंटरजेनेरेशन इनकम मॉबिलिटी होने के बावजूद इन मामलों में उनके जीवन स्तर में बेहतर बदलाव के कोई साक्ष्य नहीं मिलते हैं.
सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज की ओर से किए गए सर्वे के हवाले से डाउन टू अर्थ ने मार्च 2018 में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा है कि 56 फीसदी किसान खेती छोड़कर अन्य पेशा अपनाना चाहते हैं जबकि 61 फीसदी किसान बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसर के लिए खेती को छोड़कर शहरों में पलायन करना चाहते हैं.
अध्ययन में भारतीय मानव विकास सर्वेक्षण (आईएसडीएस-1) के डाटा का इस्तेमाल किया गया है. जिसमें साल 2004 में 41,554 घरों का सर्वे किया गया था. साल 2011 में दोबारा इनमें से 83 फीसदी घरों में साक्षात्कार लिया गया. इस सर्वेक्षण के अध्ययन से इकॉनोमिक मॉबिलिटी का पता करने में मदद मिलती है.