मध्य प्रदेश डायरी: एक माह में भूल गए शिव ‘राज’ की खूबियां


letter politics of madhya pradesh 13 years of shivraj singh chauhan govt

 

विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 13 साल तक सत्ता में रही, शिवराज सरकार की खूबियों के सहारे मैदान मारने का फैसला किया था. पूरे चुनाव अभियान को भाजपा ने शिवराज सरकार की उप‍लब्धियों तक ही केंद्रित किया था. पूरा मीडिया प्रचार भी इस एक थीम के इर्दगिर्द बुना गया था. यहां तक कि केंद्र की मोदी सरकार की उपलब्धियों को दूसरे क्रम पर रख शिव ‘राज’ को ही चेहरा बनाया गया था. लेकिन, अचरज यह है कि अब जब लोकसभा चुनाव की तैयारी की जा रही है तो भाजपा अपनी ही 15 सालों तक चली सरकार की उपलब्धियों को भूला बैठी है. भोपाल में बैठक कर रहे लोकसभा चुनाव प्रभारी केन्‍द्रीय मंत्री स्‍वतंत्र देव सिंह कार्यकर्ताओं से कह रहे हैं कि केंद्र सरकार की उपलब्धियों के सहारे वोट मांगे जाएं. दिसंबर में बनी कमलनाथ सरकार को भाजपा भले ही विभिन्‍न मुद्दों पर घेर रही हो मगर वह अपनी की सरकार उपलब्धियां गिनाने से बच रही है. इसकी वजह पार्टी में शिवराज के आलोचकों का मजबूत होना है, जो यह राय रख रहा है कि विधानसभा चुनाव के बुरे परिणाम से बचना है तो पार्टी को मोदी के नाम पर ही वोट मांगने चाहिए.

भाजपा प्रदेश कार्यालय से गायब नेता

सत्‍ता में रहने के दौरान भाजपा के प्रदेश कार्यालय में भीड़ लगी रहती थी. अब यहां समर्थकों की भीड़ तो कम हो ही गई है, पार्टी के वरिष्‍ठ नेताओं की आवाजाही भी घट गई है. लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर पार्टी के राष्‍ट्रीय नेता लगातार बैठकें कर रहे हैं, मगर प्रदेश कार्यालय से प्रादेशिक नेता नदारद हैं. मध्यप्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से फिलहाल 26 भाजपा के पास हैं और तीन सीट कांग्रेस के पास हैं. पार्टी ने इस बार भी अधिकतम सीट जीतने का लक्ष्‍य रखा है. मगर जो नेता चुनाव का प्रबंध करने की उम्‍मीद संजोये थे, उन्‍हें केंद्र की राजनीति का जिम्‍मा मिल गया और जिन्‍हें प्रदेश संगठन का जिम्‍मा दिया गया है वे आम चुनाव में अपनी सीट बचाने की जद्दोजहद में लगे हैं. ऐसे में कार्यालय से लोकप्रिय नेता गायब ही हैं.

झांकी के बहाने जम रही राजनीति की झांकी

लोकसभा चुनाव की पृष्‍ठभूमि में प्रदेश में हर मुद्दा राजनीतिक मुद्दा हो गया है. किसान कर्जमाफी, पुलिसकर्मियों का साप्‍ताहिक अवकाश, मीसाबंदी पेंशन की जांच, वंदेमातरम् गायन, भाजपा से जुड़े नेताओं की हत्‍या, भावांतर योजना बंद करने का निर्णय जैसे तमाम मामलों पर खूब राजनीति हुई. भाजपा और कांग्रेस ने एक-दूसरे पर जमकर जुबानी हमले किए. ताजा मामला गणतंत्र दिवस परेड में झांकी का है. मप्र, राजस्‍थान और छत्‍तीसगढ़ तीनों ही राज्‍यों की झांकी के प्रस्‍ताव को दिल्‍ली से ‘ना’ मिली. कांग्रेस ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार ने चुनावी हार का बदला लेने के लिए मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की झांकियों को गणतंत्र दिवस परेड में शामिल नहीं किया. यह इन कांग्रेस शासित राज्यों का अपमान है. इसके लिए जनता मोदी सरकार को माफ नहीं करेगी. मंत्री तो इस मामले की जांच करवाने की बात कह रहे हैं. दूसरी तरफ, भाजपा कह रही है कि मुख्‍यमंत्री को प्रदेश की झांकी की चिंता नहीं है, वे तो अपनी झांकी जमाने के लिए दावोस गए थे. साफ है कि दोनों ही दलों को गणतंत्र दिवस की झांकी से मतलब नहीं है. वे तो एक-दूसरे को निशाना बनाने का बहाना खोजते हैं और इस बार भी मुद्दे ने उन्‍हें निराश नहीं किया.

गौर प्रासंगिक बने रहना जानते हैं…

भाजपा के वरिष्‍ठ नेता नेता पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर को राजनीति में प्रासंगिक बने रहना आता है. आठ बार के विधायक गौर सात बार एक ही सीट गोविंदपुरा से चुने गए और अपनी शैली के कारण कभी बुलडोजर लाल गौर कहलाए थे. जब 75 वर्ष की उम्र का बहाना बना कर भाजपा ने उनका मंत्री पद छिन लिया तो उन्‍होंने विधानसभा में तीखे सवालों से अपनी ही सरकार को घेरा. भोपाल में मेट्रो चलाने में हो रही देरी पर भाजपा सरकार की नगरीय प्रशासन मंत्री को जवाब देते नबना था. फिर, जब उनका टिकट कटने की बारी आई तो गौर ने आक्रामक रूख अपना कर ऐसा मोर्चा खोला कि पार्टी के दिग्‍गज नेता न चाहते हुए भी गौर की बहू को टिकट देने पर राजी हुए. अब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने गौर को कांग्रेस के टिकट पर भोपाल से लोकसभा का चुनाव लड़ने का ऑफर दिया तो गौर फिर चर्चा में आ गए. दिग्विजय के प्रस्ताव के निहितार्थ क्‍या यह दीगर बात है मगर इस पर विचार करने का बयान दे कर गौर चर्चाओं का केन्‍द्र बन गए. जनता ही नहीं भाजपा की अंदरूनी राजनीति में भी गौर की चर्चा अपरिहार्य हो गई है. यानि, 70 पार की उम्र में भी गौर का यूं प्रासंगिक बने रहना युवा राजनेताओं के लिए रश्‍क का सबब है.


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