‘कर्ज माफी नहीं, किसानों की आय बढ़ाना है समाधान’
PTI
देश में बढ़ते खेती किसानी संकट, किसान आत्महत्या और कर्ज माफी के बीच 2019 लोकसभा चुनावों में कृषि संकट एक बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है. जो आने वाले समय में केंद्र सरकार की मुश्किलें बढ़ा सकता है. बीजेपी से किसानों का मोहभंग तीन राज्यों में उसकी हार का एक बड़ा कारण रहा है.
जहां एक ओर राज्य सरकारें किसानों से कर्ज माफी के वादे कर रही हैं. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस ने भी किसानों से कर्ज माफी समेत खेती किसानी का संकट दूर करने के कई वादे किए. किसानों का साथ कांग्रेस की जीत का एक बड़ा कारण रहा है.
वहीं दूसरी तरफ बीते साल वित्त मंत्री अरूण जेटली ने ये साफ कर दिया था कि केंद्र सरकार राज्यों के कर्ज माफी का हिस्सा नहीं होगी और कर्ज माफी का पूरा भार राज्यों को खुद ही उठाना होगा.
2014 से 2017 के बीच 7 राज्यों- आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटका, राजस्थान, पंजाब और तमिलनाडु ने कुल मिलाकर 1 लाख 82 हजार आठ सौ दो करोड़ की कर्ज माफी का ऐलान किया. इसमें साल 2014 में आंध्र प्रदेश ने सबसे अधिक 43 हजार करोड़ की कर्ज माफी का ऐलान किया था.
कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी ने अनुमान लगाया है कि 2019 लोकसभा चुनावों तक कर्ज माफी के आंकड़े चार लाख करोड़ को पार कर सकते हैं.
छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों से पहले किसानों से वादा किया था कि जैसे ही वह सत्ता में आएगी वह किसानों का कर्ज माफ कर देगी.
भारत में सबसे पहली कर्ज माफी की घोषणा 1990 में वीपी सिंह सरकार के समय में की गई थी. उस समय सरकार ने किसानों को राहत देते हुए 10 हजार करोड़ की कर्ज माफी की थी. इसके अलावा 2008-09 में यूपीए सरकार ने किसानों को अपने ऊपर से किसी एक कर्ज को उतारने का फायदा देते हुए करीब 71,000 करोड़ की कर्ज माफी का ऐलान किया था.
अर्थव्यवस्था के नजरिये से देखें तो कर्ज माफी को विशेषज्ञ सही नहीं मानते हैं. जानकारों का कहना है कि कर्ज माफी किसानों को कुछ समय के लिए राहत दे सकती है लेकिन लंबे समय में कृषि अर्थव्यवस्था को इससे कोई लाभ नहीं होता.
हाल ही में आरबीआई ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि कर्ज माफी से राज्यों का राजकोषीय घाटा बढ़ता है. राज्यों के वित्तीय लेन देन पर आरबीआई ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि अगर कर्ज माफी सही तरीके से न की जाए तो इसकी वजह से बढ़ने वाला राजकोषीय घाटा चिंता का विषय बन सकता है.
रिपोर्ट में कर्ज माफी की जगह किसानों की आय बढ़ाने की बात कही गई थी. अर्थशास्त्रियों की माने तो कर्ज माफी से खेती-किसानी का संकट कभी खत्म नहीं होगा. वह इसके स्थान पर किसानों को ‘आय सहायता योजना’ देने की बात करते हैं. उनका कहना है कि इसकी सालाना लागत किसानों को दिए जाने वाले कर्ज माफी से भी कम होगी. छोटे और सीमांत किसानों के लिए ‘आय सहायता योजना’ महत्वपूर्ण साबित हो सकती है.