मध्य प्रदेश डायरी: टिकट बांटने को लेकर असमंजस में बीजेपी


madhya pradesh bjp faces hurdle in ticket distribution

 

‘सर्वदा दिग्विजय’ और बीजेपी की ऊहापोह

कांग्रेस ने बहुत शुरुआती चरण में ही भोपाल सीट से अपने वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह को मैदान में उतारने की घोषणा कर लीड ले ली थी. सिंह के उम्मीदवार घोषित होने के एक पखवाड़े बाद तक बीजेपी अपने प्रत्याशी का चयन नहीं कर पाई है.

इस दौरान पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से लेकर साध्वी प्रज्ञा, प्रतिभा आडवाणी और मौजूदा सांसद आलोक संजर तक के नाम चर्चा में आ चुके हैं. बीजेपी टिकट की माथापच्ची में उलझी है और इधर, दिग्विजय का प्रचार जोर पकड़ चुका है.

टीम कांग्रेस ‘सर्वत्र दिग्विजय, सर्वदा दिग्विजय’ का नारा दे चुकी है. कांग्रेस की इस लीड का परिणाम यह हुआ कि बीजेपी की स्थानीय और बाहरी उम्मीदवार का अंतर्कलह एकाएक खामोश हो गया है. जो नेता स्थानीय उम्मीदवार उतारने की पैरवी कर रहे थे वे भी चुप हैं और कोई बाहरी प्रत्याशी भी भोपाल को प्राथमिकता न दे रहा. उन्हें भी भोपाल अब उतना सुरक्षित नहीं लग रहा है.

इसकी एक वजह स्थानीय नेता का सम्भावित असहयोग और दूसरा कारण दिग्विजय सिंह का आक्रामक अभियान है. स्थानीय नेता भी अपने कद को लेकर आश्वस्त नहीं हैं. उन्हें भी भय है कि सभी का साथ न मिला तो? इसी तो के कारण 1989 के बाद भोपाल से हमेशा जीतने वाली बीजेपी का अपने उम्मीदवार को लेकर असमंजस कम न हो रहा.

खुद जीतो, साथी को भी जिताओ

प्रदेश में 15 साल बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस इस बार लोकसभा में भी पूरी ताकत से उपस्थिति दर्ज करवाना चाहती है. 2014 के आम चुनाव में महज 2 सीट जीतने वाली कांग्रेस ने उपचुनाव में झाबुआ सीट जीती.

इस तरह उसके 3 सांसद हैं. पार्टी चाहती है कि इस बार यह आंकड़ा दहाई के पार हो. इस दिशा में मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ पूरी रणनीति के साथ में काम कर रहे हैं. प्रदेश के बड़े नेताओं को अपने संसदीय सीट के साथ ही प्रभाव की सीट पर भी जीत दिलाने का जिम्मा दिया गया है.

पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को भोपाल के अलावा राजगढ़ जिताने की जिम्मेदारी दी गई है, वहीं सिंधिया को गुना के साथ अपने प्रभाव क्षेत्र की ग्वालियर और भिंड व मुरैना लोकसभा सीट पर जीत दिलानी होगी.

यही कारण हैं कि उम्मीदवार चयन में इन नेताओं की राय को महत्व दिया जा रहा. मालवा-निमाड़ क्षेत्र में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव और विंध्य क्षेत्र में पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह मैदान में हैं, लेकिन उनपर भी अपने प्रभाव क्षेत्र में पार्टी को जीत दिलाने की जिम्मेदारी होगी. यही सिद्धांत राज्य के मंत्रियों पर भी लागू हो रहा है.

ताई ने नाराज हो कर टाल दिया पार्टी का संकट

भारतीय जनता पार्टी जहां अपने प्रत्याशियों के चयन को लेकर उलझी हुई हैं वहीं उसके असंतुष्ट नेता अपने बयानों से पार्टी की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं. ऐसा ही कुछ लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन के पत्र से भी हुआ.

देश भर में चर्चा में आये इस पत्र में महाजन ने टिकट वितरण में पार्टी के असमंजस को रेखांकित करते हुए स्वयं के चुनाव न लड़ने की घोषणा कर दी. साथ यह भी कहा कि पार्टी यदि उन्हें लेकर किसी झिझक में है तो वह स्वयं इस असमंजस को दूर कर देना चाहती हैं.

इस पत्र से राजनीतिक हड़कंप जरूर मचा लेकिन महाजन ने बहुत खूबसूरती से पार्टी नेताओं का बचाव भी कर दिया. उन्होंने संगठन के कामकाज पर सवाल तो जरूर उठाए लेकिन नेताओं का नाम लिए बगैर अपनी आपत्ति दर्ज करवाई.

महाजन के इस ‘मूव’ से पार्टी नेताओं के लिए इतनी राहत रही कि महाजन ने उत्तर प्रदेश के बुजुर्ग नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी की तरह संगठन के किसी नेता का नाम लेकर यह नहीं कहा कि उन्हें चुनाव न लड़ने के संकेत दिए गए थे. महाजन ने चतुराई से अपनी बात भी रख दी और क्षेत्र में सुबह से देर शाम तक लगातार सक्रिय रह कर अपने दावेदारी भी बनाए रखी.


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