मध्य प्रदेश डायरी: आदिवासी वोट बैंक खिसकने का बीजेपी को सता रहा है डर


we are not a trial court can not assume jurisdiction for every flare up in country

 

16 राज्यों के 11 लाख से अधिक आदिवासी परिवारों को जंगलों से बेदखल करने के सर्वोच्च न्यायालय का फैसला क्या बीजेपी पर भारी पड़ने वाला है? यह सवाल इसलिए कि इस फैसले के कारण विधानसभा चुनाव में जनजातीय बहुल सीटों पर की गई मेहनत का लाभ पार्टी को लोकसभा चुनाव में नहीं मिलने की आशंका बढ़ गई है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह खुलकर सामने आ गया है कि केन्‍द्र की बीजेपी सरकार ने इस मामले पर आदिवासियों का अदालत में पक्ष ही नहीं रखा और आदेश आने के बाद भी वह राहत दिलवाने के कदमों को उठाने में देरी करती रही.

मुद्दे की नजाकत भांप कांग्रेस आक्रामक हो गई है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया मुख्यमंत्री कमलनाथ को पत्र लिखकर हस्तक्षेप का आग्रह कर चुके हैं. जबकि केन्‍द्र की मोदी सरकार ने इस फैसले पर कोई न्यायिक कदम उठाना तो दूर इस पर अबतक कोई प्रतिक्रिया तक नहीं दी है.

मध्य प्रदेश में कांग्रेस के आक्रामक रुख के बाद बीजेपी के स्थानीय नेतृत्व को सूझ भी न रहा कि वह क्या प्रतिक्रिया दे. उनकी चिंता का कारण आदिवासियों की वोट पावर है.

मध्य प्रदेश की 47 विधानसभा सीट आदिवासी बहुल है तो कुल 77 सीटों पर आदिवासी मतदाता निर्णायक भूमिका में होते हैं. लोकसभा की 29 में से छह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. पिछले कई चुनाव से आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों में से अधिकांश लोकसभा सीटें बीजेपी जीतती रही है. बीजेपी को फिक्र है कि यदि आदिवासी रूठ गए तो पिछले चुनाव में अनुसूचित जनजाति क्षेत्र की जीती हुई पांच सीटें खतरे में पड़ जाएंगी.

दिग्विजय के रूख के कारण घिरी ब्‍यूरोक्रेसी

विधानसभा के बजट सत्र में विपक्ष के कारण कम कांग्रेस सरकार के मंत्री सदन में दिए गए अपने जवाबों के कारण अधिक चर्चा में रहे. जिन मुद्दों पर कांग्रेस पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार को घेरती रही उन्‍हीं मुद्दों पर बीजेपी सरकार को क्लिनचिट देने जैसे उत्‍तर देना मंत्रियों को भारी पड़ गया. विवाद तब गहरा गया जब वरिष्‍ठ नेता दिग्विजय सिंह ने मंदसौर में किसानों पर हुए गोलीकांड और नर्मदा किनारे पौधारोपण के मामले में मंत्रियों के उत्‍तर पर नाराजगी जताई.  उनकी नाराजगी के कारण प्रदेश की ब्‍यूरोक्रेसी की कार्यप्रणाली चर्चा में आ गई.

पूर्व मुख्‍यमंत्री दिग्विजय सिंह ने अपनी पार्टी के मंत्रियों को ही समझाइश नहीं दी बल्कि अफसरों पर भी सवाल उठाए. उनकी इस बात से कई नेताओं ने सहमति जताई कि अफसर ठीक से उत्‍तर तैयार नहीं कर पाए और इस कारण समूची सरकार घिर गई. अफसरों में भी नाराजगी का यह संकेत स्‍पष्‍ट रूप से चला गया है.

किसानों के बाद कमलनाथ का लक्ष्‍य युवा

विधानसभा चुनाव के पहले ही मुख्‍यमंत्री कमलनाथ ने यह महसूस कर लिया था कि पार्टी का आधार युवाओं के बीच तुलनात्‍मक रूप से कम है. बीजेपी ने बीते 15 साल में युवाओं के बीच अधिक पैर फैला लिए हैं. इस हकीकत को समझते हुए कमलनाथ ने वचनपत्र में युवाओं पर अधिक फोकस किया.

सरकार बनने के बाद भी किसानों के बाद युवा ही प्राथमिकताओं में शुमार है. मध्य प्रदेश सरकार ने किसानों की कर्जमाफी के बाद युवाओं के रोजगार का प्रबंध किया. बीते सप्‍ताह युवा स्वाभिमान योजना शुरू करते हुए सरकार ने नौजवानों को 100 दिन में 4,000 रुपये प्रतिमाह उपलब्ध करवाने का निर्णय लिया है. योजना के तहत आरंभिक 10 दिनों में प्रदेश के डेढ़ लाख से अधिक नौजवानों ने योजना में पंजीयन करवाया है. कृषि संकट और बेरोजगारी को लोकसभा चुनाव में भी मुद्दा बनाते वक्‍त प्रदेश सरकार इन दो निर्णयों को अपनी उपलब्धियों में गिनाएगी.


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