मप्र डायरी: अमित शाह का फरमान प्रदेश के नेताओं ने नकारा
अमित शाह के फरमान को मैदानी नेताओं ने नकारा
बीजेपी को अपने मध्य प्रदेश के संगठन पर नाज है. यहां के संगठन ने केंद्रीय नेतृत्व को कई बार अपने निर्णय को बदलने के लिए बाध्य किया है. इसबार भी ऐसा हुआ है मगर मामला सीधा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की नाफरमानी का है. शाह ने संगठन में युवाओं को जोड़ने और इसके ढ़ांचे में बड़ा बदलाव करने के लिए पदों के लिए उम्र सीमा लागू कर दी थी. तय किया गया था कि संगठन चुनाव में मंडल अध्यक्ष 35 वर्ष से कम आयु का और जिला अध्यक्ष 50 वर्ष से कम आयु का नेता चुना जाएगा. लेकिन, पार्टी के अंदर इसका विरोध शुरू हो गया. आखिरकार, प्रदेश संगठन ने दोनों के नियमों में 5-5 साल की छूट दे दी. यानि मंडल अध्यक्ष के लिए उम्र सीमा 40 वर्ष और जिला अध्यक्ष के लिए 55 वर्ष कर दी. प्रदेश संगठन ने यह फैसला संगठन चुनाव की प्रकिया में नए जिलाध्यक्षों की नियुक्ति से ऐन पहले किया. असल में वह जिलाध्यक्ष पद के लिए जबरदस्त मारामारी और उम्र के बंधन के उपजे विरोध को संभाल नहीं पाए. तर्क दिया गया कि जिलाध्यक्ष पद पर अनुभवी व्यक्ति चाहिए. पार्टी के सामने यह संकट था कि 50 वर्ष से कम उम्र का जिला अध्यक्ष बनाया जाता तो वह वरिष्ठ नेताओं के दबदबे के आगे असहाय होता. ऐसे में संगठन का पॉवर सेंटर कहीं और शिफ्ट हो जाता. तर्क जो भी हो फिलहाल तो प्रदेश संगठन ने शाह फार्मूले को नकार ही दिया है.
बीजेपी सांसदों की घेराबंदी कांग्रेस का एक पंथ दो काज
पहले अतिवृष्टि आपदा राहत राशि कम मिलने, भावांतर योजना सहित केंद्रीय कर का हिस्सा नहीं मिलने, अब फसल बीमा रूकने के बाद मप्र यूरिया संकट भोग रहा है. कांग्रेस का मानना है कि केन्द्र की मोदी सरकार मप्र के साथ भेदभाव कर रही है. बयानों से मोदी सरकार और बीजेपी सांसदों पर हमला करने के बाद अब कांग्रेस ने मैदान में उतर कर विरोध जताना शुरू कर दिया है. इसी सिलसिले में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने भाजपा सांसदों के निवास पर विरोध जताना शुरू कर दिया है. ‘सीटी बजाओ, सांसद जगाओ’ अभियान के तहत कांग्रेस कार्यकर्ताओं प्रदेश के 28 बीजेपी सांसदों के घर पर सीटी बजाकर उन्हें जगाने का उपक्रम किया. इससे पहले कांग्रेस कमेटी ने बीजेपी के 28 सांसदों को पत्र लिखकर केंद्र से प्रदेश की लंबित राशि को दिलाने की मांग की थी. जिला स्तर पर धरना देकर भी केंद्र के भेदभाव को उजागर करने की कोशिश की गई थी. राज्य सरकार ने बाढ़ और आपदा से निपटने के लिए केंद्र से छह हजार करोड़ रुपए देने की मांग की थी, जिसके एवज में केंद्र ने राज्य को सिर्फ एक हजार करोड़ की राशि जारी की है, जो काफी कम है. कांग्रेस कार्यकर्ता भाजपा सांसदों से राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, खाद्य सुरक्षा मिशन, स्वास्थ्य मिशन, हाउसिंग फॉर ऑल, स्मार्ट सिटी, स्वच्छ भारत, ग्राम स्वराज अभियान, वृद्धावस्था पेंशन योजना, पोषण आहार योजना के तहत मिलने वाली 32 हजार करोड़ की राशि दिलाने की मांग कर रहे हैं. एक तरह से यह कांग्रेस संगठन का एक पंथ दो काज है. इस कवायद से वह आए दिन कमलनाथ सरकार को घेर रहे बीजेपी नेताओं को उन्हीं की शैली में उत्तर दिया जा रहा है, वहीं अपने कार्यकर्ताओं को मैदान में उतारकर नगरीय निकाय चुनाव की तैयारी को भी अंजाम दिया जा रहा है.
बिना कुछ किए विवाद में फंस गए सिंधिया!
अपने बयानों के कारण चर्चा में रहने वाले मध्य प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया इस बार ‘बिना कुछ किए’ विवाद में घसीट लिए गए. हुआ यूं कि पूर्व मुख्यमंत्री बीजेपी नेता कैलाश जोशी के निधन के बाद कांग्रेस नेता पार्टी महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ट्वीट किया तो उनके ट्विटर स्टेटस पर नजर गई. पता चला कि उनका स्टेटस बदला हुआ है. उन्होंने अपने परिचय में जन सेवक और क्रिकेट प्रेमी लिखा था. जबकि पहले परिचय के रूप में पूर्व सांसद गुना, पूर्व केंद्रीय मंत्री-ऊर्जा-वाणिज्य और उद्योग लिखा था. परिचय में कांग्रेस का जिक्र न होने पर सवाल खड़े हो गए. विवाद बढ़ा तो सिंधिया ने सफाई दी कि उन्होंने करीब एक महीने पहले अपना परिचय बदल दिया था. लेकिन जैसे ही बीजेपी नेता जोशी को श्रद्धांजलि देने वाला ट्वीट हुआ तो उसके स्टेटस में बदलाव पर खबरें बन गईं. इस बदलाव को उनके पहले के बयानों से जोड़ कर देखा गया. सिंधिया ने जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाने के फैसले का स्वागत किया था. उसके बाद सुगबुगाहट शुरू हो गई थी कि पार्टी में अपनी स्थिति से असंतुष्ट चल रहे सिंधिया के मन में क्या चल रहा है. हालांकि, ग्वालियर दौरे पर आए सिंधिया ने कांग्रेस छोड़कर जाने की अटकलों और अफवाहों को सिरे से खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि मैं कांग्रेस छोड़कर कहीं नहीं जा रहा हूं. मैं पार्टी का सिपाही हूं, कार्यकर्ता हूं और जमीन पर कार्य करता हूं. सिंधिया के बाद उनके कट्टर समर्थक पोहरी विधायक सुरेश राठखेड़ा भी अपने बयान से पलट गए. राठखेड़ा ने कहा था कि श्रीमंत सिंधिया एक मात्र ऐसे नेता हैं जो खुद जब चाहेंगे, नई पार्टी खड़ी कर देंगे और यदि ऐसा होता है तो मैं पहला व्यक्ति होऊंगा जो उनके साथ खड़ा नजर आएगा. बाद में राठखेड़ा ने कहा, ”पत्रकारों के बार-बार कुरेदने पर बयान दिया है अन्यथा महाराज से मेरी ऐसी कोई बात नहीं हुई है.”