मप्र डायरी: बीजेपी की ‘फुलझड़ियों’ पर भारी दिग्विजय का संकल्प
देश में कहीं भी कोई राज्य सरकार अस्थिर होती है तो मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार के गिर जाने के कयास लगाए जाने लगते हैं. ऐसी सूचनाएं बीजेपी नेता फैलाते हैं और उनके बयान मीडिया में सुर्खियां बनने लगती हैं. ऐसा ही अब भी हुआ.
कर्नाटक में सरकार के संकट में आने और गोवा में विधायकों के बीजेपी में शामिल होने की खबरों पर प्रदेश के बीजेपी नेताओं ने कहना शुरू कर दिया कि अगला नम्बर मध्य प्रदेश की सरकार का है. सोशल मीडिया पर चटखारों के साथ तंज कसे जा रहे हैं.
सरकार को अस्थिर बताने वाली बीजेपी नेताओं के बयानों की इन ‘फुलझड़ियों’ पर पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह का संकल्प भारी पड़ गया.
दिग्विजय सिंह ने साफ कर दिया कि अब वे भोपाल में ही रहेंगे और भोपाल के चहुंमुखी विकास के लिए लगातार काम करते रहेंगे. उन्होंने लोकसभा प्रत्याशी के रूप में भोपाल संसदीय क्षेत्र के लिए अप्रैल में ‘विजन भोपाल’ के नाम से एक दस्तावेज जारी किया था. इसमें उन्होंने भोपाल लोकसभा क्षेत्र को आने वाले समय में समृद्ध और समर्थ बनाने की परिकल्पना की थी.
इसके अलावा, उन्होंने भोपाल लोकसभा क्षेत्र को एक आधुनिक शहर बनाए जाने का वादा किया था. इस ‘विजन भोपाल’ की परिकल्पना के कई कार्यों पर कांग्रेस नीत मध्य प्रदेश सरकार ने निर्णय ले लिए हैं. दिग्विजय सिंह ने भले ही विजन डॉक्यूमेंट और भोपाल पर फोकस करने की बात कही है मगर राजनीति के जानकार मानते हैं कि उनके रहते कांग्रेस सरकार को संकट में डालना आसान नहीं है. अगर वे भोपाल में रहेंगे तो कमलनाथ सरकार का काम सरल ही होगा.
फिर साबित हुआ आदिवासी बीजेपी के लिए महज वोट
प्रदेश के बुरहानपुर में वन विभाग के अमले द्वारा की गई गोलियों से चार आदिवासी घायल हो गए. इस मामले में आक्रोशित आदिवासियों ने जिला मुख्यालय रैली निकाल कर कलेक्टर दफ्तर का घेराव भी किया.
मामले की गंभीरता समझ कांग्रेस नेता दिग्विजयसिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ट्वीट कर निष्पक्ष जांच व कार्रवाई की मांग की. मध्य प्रदेश में विधानसभा का पावस सत्र चल रहा है और सरकार को घेरने के लिए यह बीजेपी के लिए बड़ा मुद्दा होना था. मगर बीजेपी नेताओं ने इस पर ध्यान तक न दिया.
बीजेपी ने सरकार से सवाल पूछने का मौका तो गंवाया ही आदिवासियों के करीबी होने की अपनी छवि को भी बनाए न रख पाई. उसकी इस बेरुखी से सवाल उठे कि क्या आदिवासी बीजेपी के लिए केवल वोट बैंक भर है?
रामलाल गए, नए समीकरण बनेंगे
बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल को हटाए जाने का सीधा असर मध्य प्रदेश की राजनीति पर भी पड़ेगा. 13 सालों तक इस पद पर रहे रामलाल ने प्रदेश बीजेपी संगठन और सत्ता के महत्वपूर्ण निर्णयों में अहम भूमिका निभाई है.
संघ में वापसी को आमतौर पर पदावनत करना माना जाता है. हालांकि, रामलाल को हटाए जाने की खबर के बाद एक पत्र वायरल हुआ, जिसमें कहा गया कि उन्होंने खुद पद छोड़ने की इच्छा जाहिर की थी.
निर्णय कैसे भी हुआ मगर अब रामलाल नहीं हैं और उनके जाने के बाद वे सब नेता नए ठौर की तलाश में हैं जो रामलाल के समर्थक कहला कर राजनीतिक गोटियां फिट कर रहे थे.