मध्य प्रदेश डायरी: बीजेपी से क्‍यों पिछड़े, सवाल के जवाब में सवाल


 

मध्‍य प्रदेश कांग्रेस को उम्‍मीद थी विधानसभा चुनाव में मिली सफलता को वह लोकसभा चुनाव में भी दोहराएगी मगर ऐसा हो न सका. इस हार के बाद मीडिया खास कर सोशल मीडिया में पार्टी नेताओं और मंत्रियों के असंतोष और नेतृत्व के खिलाफ आवाज़ उठाने वाली सूचनाएं तेजी से फैल रही हैं.

कमलनाथ सरकार में मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे की मंत्री इमरती देवी का वह बयान चर्चा में रहा जिसमें उन्‍होंने मीडिया से चर्चा में कहा कि अब ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रदेश की कमान मिलनी चाहिए. इसके साथ ही सोशल मीडिया पर मंदसौर क्षेत्र से एकमात्र कांग्रेस विधायक हरदीप सिंह डंग के बीजेपी में शामिल होने की खबरें तेजी से चली. ये खबर भोपाल से लेकर मंदसौर तक जंगल में आग की तरह तेजी से फैली.

इसी दौरान अशोकनगर के विधायक जयपाल सिंह जज्जी के जाति प्रमाणपत्र पर उच्‍च न्यायालय से विपरित फैसला आने और उनकी विधायकी जाने की सूचनाएं वायरल हुई. इन सबने उन खबरों को हवा दी जिनमें कमलनाथ सरकार को कमजोर बताया जा रहा था और कहा जा रहा था कि केन्‍द्र में मोदी सरकार बनते ही मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार गिर जाएगी.

सोशल मीडिया पर फैली इन सूचनाओं का कांग्रेस की ओर से उतनी ही ताकत से खंडन किया जा रहा है. मगर, हर दिन एक नई ‘खबर’ वायरल हो रही है. कांग्रेस नेताओं का मानना है कि विपक्ष बीजेपी इन सूचनाओं को हवा दे रहा है और कांग्रेस सरकार को कमजोर बता कर माहौल बना रहा है.

बीजेपी से क्‍यों पिछड़े, सवाल के जवाब में सवाल

पांच महीने पहले विधानसभा चुनाव में मध्‍य प्रदेश में 114 सीटें जीतने वाली कांग्रेस लोकसभा चुनाव में 230 में से 211 सीटों पर बीजेपी से पिछड़ गई. उसके 96 विधायकों के क्षेत्र में कांग्रेस हारी है यानी इन सीटों पर बीजेपी को ज्यादा वोट मिले हैं. बीजेपी का वोट पांच महीने में 57.53 लाख बढ़ गया है. जबकि विधानसभा चुनाव में उसके पास कांग्रेस से सिर्फ 47827 वोट ज्यादा थे. कांग्रेस के सिर्फ 19 विधायक ही अपने क्षेत्र में पार्टी को लीड दिला पाए. कांग्रेस संगठन में इन आंकड़ों पर बात करते हुए हर नेता-कार्यकर्ता के पास इस सवाल का जवाब नहीं है कि ऐसा क्‍यों हुआ?

वे सवाल के जवाब में यही सवाल दोहराते हैं कि हमें तो पता न चला, दूसरे नेता भी कैसे अनजान रहे? वे इस बात पर संतोष कर रहे हैं कि केवल कांग्रेस ही नहीं विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने वाली सपा, बसपा और निर्दलियों के क्षेत्र में भी बीजेपी जीती है. सपा ने बिजावर, बसपा ने भिंड व पथरिया और निर्दलियों ने वारासिवनी, बुरहानपुर, सुसनेर व भगवानपुरा सीट जीती थीं. लोकसभा चुनाव में इन विधायकों की सीटों पर भी बीजेपी को कांग्रेस से ज्यादा वोट मिले. यानि, हर सवाल पर यही जवाब है कि क्‍या करें, लहर नहीं सुनामी थी, जिसका अंदाजा न लगाया जा सका.

जरारिया का राहुल को पत्र, समाधान से उपजी समस्‍या

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन के बाद अब समीक्षाओं, आलोचनाओं, आरोप-प्रत्‍यारोपों का दौर जारी है. तूफान के बाद शांति नहीं बल्कि नेताओं के कामकाज में मीनमेख निकालने, सलाह-मशविरा वाली ‘राजनीति’ भी जारी है. जातीय राजनीति के दबदबे पाले ग्‍वालियर-चंबल क्षेत्र दलित राजनीति के नए चेहरे की पहचान के साथ चुनाव लड़ने वाले युवा नेता देवाशीष जरारिया ने अपनी हार के बाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को एक पत्र लिखा है. इन दिनों यह पत्र चर्चा में है, जिसमें उन्होंने मीडिया पर एक पक्षीय होने का आरोप लगाते हुए टीवी डिबेट में पार्टी प्रवक्ताओं को प्रतिबंधित करने का मशविरा दिया है.

उन्‍हें लगता है कि 95 फीसदी वी डिबेट सिर्फ बीजेपी के प्रोपेगंडा का हिस्‍सा है. कॉरपोरेट मीडिया में विपक्ष के लिए कोई जगह नहीं है. ऐसे में कांग्रेस सहित विपक्षी पार्टियों को टीवी डिबेट का बहिष्‍कार करने तथा अपना कोई प्रतिनिधि नहीं भेजने पर विचार करना चाहिए. देवाशीष सोशल मीडिया खासकर ट्वीटर पर सक्रिय है और वे चाहते हैं कि पार्टी को सोशल मीडिया जैसे माध्यमों को अपनाना चाहिए. प्रवक्ता पद के दायित्व को बदलकर कांग्रेस की विचारधारा को गांव-गांव, शहर-शहर पहुंचाने के लिए कहा है.

समाजवादी पार्टी द्वारा अपने प्रवक्‍ताओं को हटा कर टीवी डिबेट में जाना प्रतिबंधित करने के बाद देवाशीष की यह सलाह चर्चा में जरूर है मगर कांग्रेस प्रवक्‍ताओं का मानना है कि यह समय चुप हो कर बैठने का नहीं है बल्कि हर मोर्चे पर अपनी नीतियों, रणनीतियों के सख्‍त आकलन की आवश्‍यकता है. रणछोड़ होने की जगह हर क्षेत्र में ज्‍यादा शिद्दत से डटे रहना होगा. वे देवाशीष की सलाह को विचार योग्‍य नहीं मान रहे. फिलहाल तो इस पत्र और उस पर प्रतिक्रियाओं से कांग्रेस की राजनीति गर्माई हुई है.


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