मध्य प्रदेश : कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने की अंतर्कथा


Madhya Pradesh: The story of Kamal Nath becoming Chief Minister

 

मध्य प्रदेश में कांग्रेस को पहले तो चुनाव की समरभूमि में बीजेपी की साम, दाम, दण्ड, भेद की परिचित रण-शैली से मुकाबला करना पड़ा. वहां से ‘तुम डाल डाल, तो मैं पात पात’ की डगर पर चलकर, पल-पल चौकस रहते हुए, जब कांग्रेस सबसे बड़ी अकेली पार्टी होने का तमगा लेकर निकली, तो उसे अपने ही घर में अपना नेता तय करने के लिये भी कड़ी मशक्कत के दौर से गुजरना पड़ा. तब कहीं जाकर मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और सांसद कमलनाथ का नाम मुख्यमंत्री के पद के लिये तय हो सका.

दोनों तरह के मुकाबलों में जो कुछ प्रत्यक्ष रूप से नज़र आ रहा था, उससे कहीं ज्यादा रोमांचक वह घटनाक्रम है, जो परदे के पीछे घटित हो रहा था. देश में आज राजनीति का वह दौर आ चुका है, जब लोकतंत्र केवल जनता के निर्णय पर ही केंद्रित नहीं रह गया है. इसके अलावा भी ऐसे बहुत से कारक हैं, जो चुनाव को अपनी तरह से हांकने और लोकतंत्र को भी हतप्रभ कर देने के लिये कमर कस कर, संविधान के हासिये पर किलोलें करने लगे हैं.

11 दिसंबर का अफसाना

11 दिसंबर की ठंडी भोर ने जैसे ही पलकें खोलीं, प्रदेश के तमाम मतगणना केंद्रों में सरकारी कर्मचारियों, राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं और जनता के कौतूहल ने प्रवेश किया. रुझानों का दौर आरंभ हुआ. कांग्रेस आगे चली. बीजेपी ने उसका पीछा किया. दोपहर तक हालात बदले और फिर कांग्रेस-बीजेपी में एक-दूसरे को खींचकर पीछे पहुंचा देने की रस्साकस्सी के खेल वाला दौर भी चला.

सूरज के ओट में जाते ही, त्रिशंकु की आत्मा धरती पर आ गयी. कांग्रेस की सांसें रुकने लगीं और बीजेपी की रुकी हुई सांसें लौटने लगीं. दोनों दलों के महारथियों का ध्यान अब निर्दलीयों और अन्य दलों के विजेताओं पर गया.

राहुल गांधी ने कमलनाथ और सिंधिया को अंतिम क्षणों तक भोपाल में ही बने रहने के लिये कहा था. प्रदेश कांग्रेस के दफ्तर में कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया, रामेश्वर नीखरा, अजय सिंह, विवेक तन्खा सहित कई महत्वपूर्ण नेताओं ने सबेरे से ही अड्डा जमा लिया था. उनका सभी पचास जिलों से जीवंत संपर्क जारी था. इस दौरान प्रदेश कार्यालय से 3,000 से भी ज्यादा फोन-कॉल किये गये और सूचनाओं का आदान-प्रदान हुआ. निर्देश भेजे गये. शाम तक कार्यालय में तीस वकीलों की टीम भी आकर जम गयी. वह ज़रूरत पड़ने पर चुनाव आयोग से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक जाने की तैयारी में जुटी थी.

इसी तरह दिल्ली में भी मुख्य चुनाव आयुक्त के दफ्तर के सामने कांग्रेस की एक टीम डटी रही, ताकि बीजेपी के किसी भी असंवैधानिक कदम की अविलंब शिकायत की जा सके. लगभग 30 ऐसी सीटें थीं, जहां पर बहुत ही कम मतों, यहां तक कि मात्र 100 मतों के अंतर से जीत-हार होने की संभावना थी, जो कांग्रेस की कृत्रिम पराजय का कारण बन सकती थी.

साल 2013 में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधान सभा चुनावों में इसकी झलक देखी जा चुकी थी. गोवा कर्नाटक और असम में तो पराजित बीजेपी ने सत्ता में लौट आने के लिये तमाम तरह के गैर लोकतांत्रिक तरीके इख्तियार किये ही थे. अमित शाह-नरेंद्र मोदी की इस नयी राजनीतिक शैली के अतीत ने कांग्रेस को अतिरिक्त रूप से चौकन्ना बना दिया है.

 

उधर बीजेपी की तैयारी इस बात को लेकर थी, कि यदि उसकी और कांग्रेस की सीटें 111-111 हो जाती हैं, तो वह अपना खेल खेलने निकल पड़ेगी. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह ने देर रात यह ट्वीट कर सनसनी मचा ही दी थी, कि निर्दलीय विधायक उनके संपर्क में हैं और सुबह वे राज्यपाल से मुलाकात कर अपनी सरकार बनाने का दावा करेंगे.

रात 2.54 बजे जबलपुर उत्तर-मध्य सीट से आने वाला प्रदेश का अंतिम परिणाम, कांग्रेस के पक्ष में गया. यहां से कांग्रेस प्रत्याशी विनय सक्सेना ने बीजेपी के स्वास्थ्य मंत्री शरद जैन को केवल 578 मतों से पराजित किया और इसी के साथ कांग्रेस के खाते में 114 सीटों का आंकड़ा दर्ज़ हो गया.

क्या मोदी को शिवराज से खतरा है

उधर दिल्ली से बीजेपी हाईकमान ने सरकार बनाने का दावा न करने और अपनी हार स्वीकार करने के निर्देश भेज दिये, तो शिवराज सिंह पीछे हट गये. शायद अमित शाह और नरेंद्र मोदी को आभास हो गया था, कि उनका ऐसा करना जनता में गलत संदेश देगा. पर अंदरखाने में एक ख़बर यह भी तैर रही है, कि नरेंद्र मोदी अपनी निरंतर गिरती साख के कारण, शिवराज सिंह चौहान, डॉ रमन सिंह और वसुंधरा राजे सिंधिया की तिकड़ी से डरे हुए थे. इनमें से पहले दो शख्स तो तीन-तीन बार के मुख्यमंत्री हैं और तीनों ही राज्य हिंदी पट्टी के हैं.

तीनों में से शिवराज सिंह चौहान अगर चौथी बार भी मुख्यमंत्री बन जाते, तो वही मोदी के लिये 2019 में सबसे बड़ी चुनौती भी बन सकते थे. बीजेपी का मोदी-शाह विरोधी समूह उनके पीछे खड़ा हो सकता था.

साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी ने, बीजेपी के सबसे वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी का टिकट काट देने का मन बना लिया था, तब शिवराज सिंह ने ही उन्हें गुजरात के बजाय, मध्य प्रदेश से लड़ने और जिता कर संसद भेजने का आश्वासन दिया था. वे सुषमा स्वराज को भी मध्य प्रदेश से भेज ही रहे हैं.

12 दिसंबर की कहानी

114 सीटें पाकर कांग्रेस थोड़ा मुतमईन(मायूस) होने लगी थी. उसे बीजेपी की तरफ से खतरा टल जाने से जरा सा चैन आ चुका था, पर जोखम फिर भी मौजूद था. कमलनाथ ने सुबह 9.30 बजे बसपा सुप्रीमो मायावती से बात की और उनका समर्थन हासिल किया.

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव से संपर्क किया. अखिलेश यादव ने राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में आगामी भूमिका के मद्देनज़र तुरंत ही पार्टी का समर्थन दे दिया.  पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने चार निर्दलीय विधायकों से संपर्क कर उन्हें साधने की जिम्मेदारी उठायी, उनका प्रदेश में खासा मान-सममान और दबदबा कायम है. उनके बात करने पर चारों निर्दलीय विधायक तुरंत ही कांग्रेस का साथ देने के लिये राजी हो गये.

पहले थी अलग राग

दिग्विजय सिंह के बात करने से पहले सभी निर्दलीय विधायक, अपनी महत्ता को पहचान कर अलग राग अलाप रहे थे. बिजावर से सपा टिकट पर जीते कांग्रेस के बागी विधायक राजेश शुक्ल कह रहे थे, कि उन्होंने कांग्रेस को समर्थन देने के बारे में अभी विचार ही नहीं किया है. भिंड से जीते बसपा के संजीव सिंह कुशवाहा का कहना था, कि मुझसे किसी ने अब तक संपर्क नहीं किया है. पर मायावती जैसा चाहेंगी, वैसा होगा.

वारासिवनी से जीते कांग्रेस विद्रोही प्रदीप जायसवाल ने ज़रूर कांग्रेस को अपनी प्राथमिकता में रखा था. सुसनेर के विक्रमसिंह राणा के पास दोनों दलों के फोन पहुंचे थे, पर तब तक उन्होंने कोई फैसला नहीं लेने की बात बतायी थी. भगवानपुरा से जीते केदार डाबर से कांग्रेस ने दो दिन पहले से ही संपर्क कर रखा था, क्योंकि उनके जीतने के कयास लग रहे थे.

कांग्रेस विधायकों का भोपाल में जमावड़ा

प्रदेश कांग्रेस ने अपने सभी विधायकों को निर्देश जारी कर दिये थे, कि वे जीत का प्रमाण-पत्र पाते ही भोपाल कूच करें. विजय जुलूस वगैरह की झंझट में न पड़ें. इसलिये 12 की सुबह से ही वे भोपाल पहुंचने लगे थे. उन्हें होटलों में ठहराने और अन्य व्यवस्थाएं करने के लिये भरोसेमंद और सक्षम लोगों की टीम लगा दी गयी थी. भोपाल पहुंचकर लगभग सभी विधायकों ने कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया से मुलाकातें कीं. सिंधिया ने ग्वालियर-चंबल के विधायकों के साथ दोपहर का भोजन भी किया.

केंद्रीय पर्यवेक्षक एके एंटनी और भंवर जीतेंद्र सिंह भोपाल आये. दोनों ने दिग्विजय सिंह और सिंधिया समर्थक विधायकों से अलग-अलग चर्चा की. इसी दिन प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में कांग्रेस विधायकों की शाम चार बजे से बैठक शुरु हुई, जो रात नौ बजे तक चली. वरिष्ठ विधायक आरिफ अकील ने कमलनाथ को नेता चुने जाने का प्रस्ताव रखा. सज्जन सिंह वर्मा, डॉ गोविंद सिंह, झूमा सोलंकी और निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह ने प्रस्ताव का समर्थन किया. सभी विधायकों ने इस पर हस्ताक्षर किये और प्रस्ताव एंटनी को सौंप दिया गया. एंटनी उसे लेकर दिल्ली चले गये. वहां राहुल को अंतिम फैसला करना था.
13 दिसंबर : दिल्ली में ताबड़तोड़ छह बैठकें

मुख्यमंत्री का मसला भोपाल में न सुलझने के कारण मामला दिल्ली जा पहुंचा और वहां पर एक के बाद एक छह उच्च स्तरीय बैठकें हुईं. सबसे पहले सुबह 11 बजे राहुल गांधी दोनों पर्यवेक्षकों से मिले और बातचीत की. पर्यवेक्षकों ने उन्हें विधायकों की राय और मध्य प्रदेश की राजनीतिक स्थितियों से अवगत कराया. दोपहर 12 बजे राहुल गांधी ने दोनों पर्यवेक्षकों की मौजूदगी में कमलनाथ और सिंधिया से बातचीत की. दोपहर बाद दो बजे राहुल गांधी और सिंधिया की एकांत चर्चा हुई. सिंधिया ने अपने पक्ष में तर्क रखे.

शाम को पांच बजे नाम पर सहमति न बन पाने के कारण, राहुल गांधी ने कमलनाथ और सिंधिया से दोबारा चर्चा के बावजूद मसला हल नहीं हुआ. तब राहुल गांधी ने यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी से संपर्क किया. शाम छह बजे सोनिया गांधी अपनी बेटी प्रियंका के साथ राहुल के घर पहुंचीं. तीनों में मशविरा हुआ. कमलनाथ पर सहमति बनी. शाम 6.45 बजे राहुल और कमलनाथ के बीच 45 मिनट की बातचीत हुई. रात 8.30 बजे दोनों केंद्रीय पर्यवेक्षक एंटनी और भंवर जीतेंद्र सिंह तथा कमलनाथ और सिंधिया दिल्ली से भोपाल के लिये रवाना हुए. रात 10 बजे भोपाल हवाई अड्डा पहुंचे. रात 11 बजे प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में विधायक दल की बैठक शुरू हुई.

भोपाल में होने वाली विधायक दल की बैठक, दिल्ली में चल रही बैठकों के कारण पांच बार टाली जा चुकी थी. अंततः रात 11 बजे विधायक दल की बैठक हुई. इसमें केंद्रीय पर्यवेक्षक एके एंटनी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के द्वारा लिया गया निर्णय सबको सुनाया. फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कमलनाथ का नाम विधायक दल का नेता चुने जाने के लिये प्रस्तावित किया. इसी के साथ तय हो गया कि कमलनाथ ही प्रदेश के मुखिया होंगे.

राहुल ने टॉल्सटाय को याद किया

कमलनाथ के नाम का निर्णय हो जाने के बाद राहुल गांधी ने ट्वीट कर एक तस्वीर जारी की. इसमें वे कमलनाथ और सिंधिया की बाहों में बांह डाले खड़े हैं. उन्होंने विश्व विख्यात लेखक लियो टॉल्स्टाय का कथन उधृत किया है- ‘घैर्य और समय ही दो सबसे बड़े योद्धा होते हैं.’

कमलनाथ ने कहा कि ‘मुख्यमंत्री का पद उनके लिये मील के पत्थर की तरह है. आज से 40 साल पहले 13 दिसंबर को ही इंदिरा जी छिंदवाड़ा आयी थीं. उन्होंने मुझे जनता को सौंपा था. मेरा समर्थन करने के लिये ज्योतिरादित्य का धन्यवाद. अगला समय चुनौती का है. हम सब मिलकर अपने वचनपत्र को पूरा करेंगे.’

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा, ‘राहुल गांधी मेरे नेता ही नहीं, आदर्श भी हैं. उन्होंने जो निर्णय लिया हम उसका पालन कर रहे हैं. आप सब की शुभकामनाओं से ही मेरा नाम इस पद के लिये चला. मैं कमलनाथ के साथ हूं.’

14 दिसंबर की सुबह कमलनाथ ने, दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया और कांग्रेस के अन्य प्रमुख नेताओं सहित राज्यपाल आनंदी बेन पटेल से मुलाकात कर, उन्हें कांग्रेस दल के नेता के चुनाव संबंधी पत्र को सौंपा. राज्यपाल ने उन्हें शपथ ग्रहण करने के लिये आमंत्रित किया है. साल 2003 से अब तक यानी कुल पंद्रह सालों तक, प्रदेश की सत्ता से बाहर रहने के बाद कांग्रेस कमलनाथ के नेत्त्व में वापसी कर रही है. कमलनाथ प्रदेश के 18 वें और कांग्रेस के 11 वें मुख्यमंत्री होंगे. वे 17 दिसंबर को पद की शपथ लेंगे.


Big News