मप्र विधान सभा : उपाध्यक्ष की दौड़ में भी बीजेपी पस्त


MP: BJP lagged in Vice-Chairman's race

 

विधानसभा कार्यवाही का संचालन मान्‍य परंपराओं और नियमों के संतुलन से होता है. कुछ बातों के नियम नहीं है, लेकिन सदन ने लोकतंत्र में परस्‍पर सहयोग का भाव रखते हुए कुछ परंपराएं गढ़ ली हैं जो सदन के संचालन का आधार बनती हैं. कांग्रेस और बीजेपी नेताओं ने समय-समय पर इन परंपरांओं का निर्माण किया और विधान सभा की कार्यवाही को बिना बाधा संचालित करने की नजीर पेश की, लेकिन इस बार बीजेपी ने अपनी ही बनाई परंपरा को तोड़ा तो नियमों के कारण उसे शिकस्‍त खानी पड़ी.

इस खेल में उसकी स्थिति ‘न माया मिली न राम’ जैसी हो गई. विपक्ष के भारी हंगामे और आपत्ति के बीच कांग्रेस की हिना कावरे उपाध्यक्ष चुन ली गईं. इतना ही नहीं विपक्ष के हंगामे और नारेबाजी के बीच ही बहुमत से अनुपूरक बजट, राज्‍यपाल के अभिभाषण पर धन्‍यवाद प्रस्‍ताव पारित करने सहित अन्‍य कार्य कर लिए गए.

10 जनवरी को विधानसभा में थोड़े से परिवर्तन के साथ फिर वही दृश्‍य दोहराया गया जो 8 जनवरी को दिखाई दिया था. फर्क इतना था कि इस बार नियमों के फेर में उलझी बीजेपी ने वॉकआउट नहीं किया, बल्कि उसके विधायक सदन में डटे रहे और भरपूर विरोध किया.

बीजेपी ने पक्षपात का आरोप लगाया और कहा कि सत्‍ता पक्ष परंपराओं को तोड़ रहा है. सत्‍ता पक्ष का भी जवाब था कि अध्‍यक्ष पद पर उम्‍मीदवार खड़ा कर परंपरा तो बीजेपीने ही तोड़ी है. इसलिए उसे उपाध्‍यक्ष पद गंवा कर इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा.

जानकारी के अनुसार 1990 में बीजेपीसरकार के दौरान ही यह परंपरा बनाई गई थी जनमत का सम्‍मान करते हुए सहमति से सत्‍ता पक्ष का अध्‍यक्ष और प्रतिपक्ष का उपाध्‍यक्ष बनाया जाए.तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री सुंदरलाल पटवा की पहल पर बीजेपीविधायक ब्रजमोहन मिश्रा को अध्यक्ष चुना गया था और कांग्रेस विधायक श्रीनिवास तिवारी को उपाध्‍यक्ष चुना गया था.

बीजेपीद्वारा बनाई गई यह परंपरा अब तक चली, लेकिन इस बार बीजेपीने करीब का बहुमत देख सरकार को उलझाने की दृष्टि से अध्‍यक्ष पद का उम्‍मीदवार मैदान में उतार दिया. कांग्रेस ने भी नियमों के ताने-बाने में उलझा कर बीजेपीको शिकस्‍त दे दी.

यह जानते हुए भी कि सदन के निर्णयों पर बाहर से हस्‍तक्षेप नहीं होता बीजेपीविधायक पैदल मार्च करते हुए राज्‍यपाल के पास गए. यह उनका विरोध प्रदर्शन का तरीका हो सकता था, मगर सदन की कार्यवाही के अनुसार यह ‘सेल्‍फ गोल’ था. जिसके कारण कांग्रेस ने उपाध्‍यक्ष पद पर हिना कांवरे को मैदान में उतार दिया और बहुमत के आधार पर जीत भी पा ली.

बीती 10 जनवरी को भी ऐसा ही हुआ कि पहले चार प्रस्‍ताव कांग्रेस विधायक हिना कावरे के पक्ष में थे और पांचवा प्रस्‍ताव बीजेपीविधायक जगदीश देवड़ा के लिए था. अध्‍यक्ष एनपी प्रजा‍पति ने नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव की बात मानते हुए पांचों प्रस्‍तावों को पढ़ा, लेकिन प्रथम चार को प्रस्‍तुत करवा कर उस पर राय मांग ली.

प्रतिपक्ष विधायक डॉ. सीतासरन शर्मा के पाइंट ऑफ ऑर्डर को सुने जाने की मांग करता रहा, लेकिन प्रतिपक्ष यह भूल गया कि सदन की कार्यवाही आगे बढ़ जाने के बाद पाइंट ऑफ ऑर्डर नहीं उठाया जाता. अध्‍यक्ष प्रजापति भी यही दोहराते रहे कि कार्यवाही आगे बढ़ जाने के बाद पाइंट ऑफ ऑर्डर सुनना संभव नहीं है. कार्यवाही होने के बाद यह रखने की अनुमति दी जाएगी.

बीजेपीपरंपरा के अनुसार उपाध्‍यक्ष का पद अपने खाते में चाह रही थी, लेकिन कांग्रेस ने अध्‍यक्ष पद पर चुनाव करवाने के बीजेपीके निर्णय के चलते यह पद छीन लिया. बीजेपीअपने द्वारा स्‍थापित की गई परंपरा का पालन करती तो सदन उपाध्‍यक्ष पद उसके पास होता, लेकिन अब अध्‍यक्ष और उपाध्‍यक्ष दोनों ही पद कांग्रेस के पास आ गए हैं.


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