मध्य प्रदेश डायरी: निवेशकों का विश्वास जीतने की कुशलता (Magnificent MP)


Magnificent MP

 

हजार उम्मीदों के साथ आयोजित मैग्नीफिसेंट मध्य प्रदेश 2019, प्रदेश में हुई पिछली कई इंवेस्टर्स मिट की तुलना में कई मायनों में अलग रही.

इंदौर के ब्रिलिएंट कनवेंसन सेंटर में माहौल पूरी तरह कॉरपोरेट शैली का था, राजनीतिक और प्रशासनिक हस्तक्षेप और उपस्थिति आवश्यकतानुसार ही थी. यहां तक कि समापन अवसर पर जब मुख्यमंत्री कमलनाथ मीडिया से रूबरू हुए तो आधा दर्जन मंत्री मंच पर नहीं थे. मंच पर कमलनाथ के साथ मुख्य सचिव सुधि रंजन मोहन्ती ही थे.

इस तरह राजनीतिक और प्रशासनिक मुखिया की मौजूदगी ने यही बात रेखांकित की कि सरकार निवेशकों का विश्वास जितना चाहती है. आयोजन को केवल दिखावटी इवेंट बनाकर नहीं रखना चाहती है. इस आयोजन की एक खास बात यह रही कि सरकार केवल नए निवेश के लिए रेड कार्पेट बिछाती नहीं दिखी बल्कि पुराने निवेशकों की समस्याओं और सुझावों पर भी उतनी ही गंभीर रही.

सौ फीसदी निर्यात होने वाले उत्पाद निर्माता निवेशक इस बात से खुश हो कर गए कि नए के स्वागत में पुरानों को भुला नहीं दिया गया. मुख्यमंत्री कमलनाथ ने उनकी बात सुनी और समाधान भी करवाया.

केंद्र ने सड़क का पैसा भी रोका, आर्थिक गड्ढा कैसे भरे?

किसानों को अतिवृष्टि से हुए नुकसान का मुआवजा देने के लिए केंद्र सरकार से राहत पैकेज की मांग कर रही राज्य सरकार अब सड़क सुधार के लिए भी केंद्र पर मदद नहीं करने का आरोप लगा रही है.

सड़कों पर गड्ढों को लेकर विपक्षी पार्टी बीजेपी राज्य सरकार को घेर रही है तो सरकार का पलटवार में कह रही है कि पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तो प्रदेश की सड़कों को अमेरिका से भी बेहतर बता रहे थे. बीजेपी सरकार में ऐसी सड़क बनी कि एक साल की तेज बारिश में ही उखड़ गई.

पीडब्ल्यूडी मंत्री सज्जन सिंह वर्मा का कहना है कि राज्य सरकार ने केंद्र से सड़क की मरम्मत के लिए 11 सौ करोड़ रुपए मांगे है लेकिन अब तक कोई मदद नहीं मिली है.

वर्मा का कहना है कि सीआरएफ फंड को लेकर पीएम मोदी और नितिन गडकरी के बीच लड़ाई चल रही है. मोदी ने सीआरएफ को सीआरआईएफ में बदल दिया है, ताकि सभी स्टेट को सड़कों को लेकर नितिन गडकरी को जिम्मेदार समझे जाए.

पीएम मोदी और नितिन गडकरी की लड़ाई के चलते हाइवे में सुधार नहीं हो पा रहा है. असल में, राज्य सरकार ने 30 नवम्बर तक सड़कों को ठीक करने की समय-सीमा तय की है. 4805 किलोमीटर सड़कों के सुधार के लिए 1108 करोड़ की आवश्यकता है. केंद्र से मदद न मिली तो वित्तीय संकट में फंसी राज्य सरकार को इस राशि का इंतजाम भी खुद ही करना होगा.

झाबुआ उपचुनाव: प्रचार से ज्यादा विवादित बयानों का शोर

बहुमत से दो सीट दूर रह गई कांग्रेस को 21 अक्टूबर को हो रहे झाबुआ विधानसभा उपचुनाव से काफी उम्मीद है. उसका मानना है कि बीजेपी में आपसी फूट है. बीजेपी की ताकत बिखरी हुई है जबकि कांग्रेस ने अपने सभी नाराज नेताओं को साध लिया है.

बीजेपी के नेता झाबुआ में प्रचार करने जरूर गए मगर स्थानीय मुद्दों से ज्यादा उनके विवादास्पद बयान सुर्खियां बने. नामांकन वाले दिन ही नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने कह दिया कि कांग्रेस जीती तो पाकिस्तान जीतेगा. फिर उन्होंने कहा दिया कि झाबुआ चुनाव के बाद शिवराज मुख्यमंत्री बनेंगे. इस बयान पर पार्टी में तीखी प्रतिक्रिया हुई. कुछ ही घंटों में भार्गव बयान से पलट गए.

झाबुआ उप चुनाव के प्रचार में स्थानीय मुद्दों जैसे पलायन, किसानों की समस्याओं आदि पर उतनी बात ही नहीं हुई जितना हल्ला विवादित बयानों पर हुआ. बहरहाल, दोनों ही दलों को 24 अक्टूबर की प्रतीक्षा है जब परिणाम आएगा. माना जा रहा था कि यह परिणाम बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के चयन में भी अहम भूमिका निभाएगा.


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