मातम में रोएं तो किस पर?
मैं रोता नहीं हूं, गुस्साता हूं. पर पहली बार मैं इस दबाव (स्वनिर्मित) में हूं कि मुझे गुस्साना नहीं, रोना चाहिए. नरेंद्र मोदी के पीछे खड़ा होना चाहिए. उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल से उम्मीद करनी चाहिए. इन कथित 56 इंची छाती वाले मर्दों पर भरोसा रखना चाहिए. पर कैसे रखूं?
मैं मन ही मन सचमुच सोचता था कि मोदी-डोवाल के पांच सालों में कम से कम इजराइल से चुपचाप वह जासूसी तकनीक, ऐसे ड्रोन, ऐसी खुफिया आंखे नियंत्रण रेखा के खुफिया सिस्टम पर बनवा ली होगी जिससे पाकिस्तान से परिंदा भी पार नहीं हो पाए. कथित 56 इंची वाले मर्दों से सोचे बैठा था कि इजराइयों के साथ अंतरंगता में नियंत्रण रेखा पर इधर-उधर के मूवमेंट की जासूसी निगरानी तो निश्चित ही पुख्ता बनी होगी?
लेकिन पुलवामा का सबसे बड़ा तथ्य क्या है? सीमा पार से 100-150 किलोग्राम आरडीएक्स लाया गया! कैसे इतना आरडीएक्स आया? मुंबई में 1993 के विस्फोटों से ले कर असम, जम्मू-कश्मीर की तमाम पुरानी आंतकी घटनाओं में इतने आरडीएक्स का कभी इस्तेमाल नहीं हुआ है जितना पुलवामा में हुआ!
दूसरा तथ्य गर्वनर सतपाल मलिक की जुबानी! जम्मू-कश्मीर पुलिस सूत्रों के हवाले! पुलवामा पर आतंकी हमले से दो दिन पहले अफगानिस्तान से जैश-ए-मोहम्मद ने कार से आतंकी विस्फोट होने के एक वीडियो को अपलोड कर धमकी दी कि ऐसा ही हमला कश्मीर में होगा. इस वीडियो को जम्मू-कश्मीर के आपराधिक जांच विभाग ने पकड़ ऊपर के खुफियाई तंत्र को भेज-शेयर कर संभावी हमले की आंशका बताई है. यदि उसे गंभीरता से लिया गया होता तो क्या पुलवामा में एक आंतकी इतना बड़ा विस्फोट कर पाता?
राज्यपाल मलिक ने कहा कि इंटेलिजेंस की भारी असफलता थी, जो हाईवे पर चेकिंग नहीं हुई. वहां कोई भारी गोलाबारूद लिए गाड़ी में खड़ा था और हमें भनक भी नहीं! उन्होंने यह भी माना कि हम लोकल लड़ाकूओं को खत्म कर रहे है लेकिन यह चेतावनी या इंटलिजैंस इनपुट नहीं था कि इनमें से किसी को फिदायीन या ‘आत्मघाती हमले’ (suicide bomber) भी बनाया जा रहा है.
तीसरा और गंभीर तथ्य! ढाई हजार जवानों का आधा किलोमीटर लंबा काफिला एक-जगह से दूसरी जगह सड़क मार्ग से जा रहा है तो क्या उस पर ड्रोन से नजर, हेलिकॉप्टर से निगरानी रखते हुए यह सुरक्षा कवच नहीं होना चाहिए था कि अगल-बगल से कोई अनाधिकृत गाड़ी, बारूदों से भरी कार, बस, एसयूवी तो नहीं चली है याकि कोई संदिग्ध गतिविधि तो नहीं है? यदि अमेरिका, इजराइल से लिए या बंगलुरु की ह़ॉल कंपनी में तैयार धुव्र ड्रोन हमारे पास उपयोग के लिए है कि ढाई हजार जवानों की एकसाथ आवाजाही के लिए भी उनका उपयोग क्यों नहीं? ड्रोन से या हेलिकॉप्टरों के हवाई कवर से क्यों काफिले के सफर को सुरक्षित बनाने की समझ या फैसला नहीं था?
ये तथ्य हैं. ये तथ्य इस बैकग्राउंड में है कि पांच साल से नरेंद्र मोदी-अजित डोवाल ने छप्पन इंची छाती का हल्ला हर तरह से बना दुश्मन पर फतह का मूर्खतापूर्ण हल्ला किया हुआ है. ध्यान करें कि पिछले दिनों कैसे उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक फिल्म के ‘हाउ द जोश’ ‘हाई सर’ की गूंज से मोदी, पीयूष गोयल आदि ने भारत के लोगों को मूर्ख बना दर्शाया कि हम अभेद हो गए है. पाकिस्तानियों- आंतकियों को ठोंक दिया है.
ये तथ्य और कथित 56 इंची छाती के पांच साला राज के आखिरी वक्त में मुकाम है मातम व रोने का. तो मैं गुस्साऊं या सुबकियां ले कर यह कहते हुए स्यापा करूं कि नियति, ईश्वर इच्छा!
सवाल है कि जो लापरवाही हुई, खुफिया-सुरक्षा बंदोबस्तों में जो जघन्य चूक हुई उसका इस भारत राष्ट्र-राज्य मंग कोई जिम्मेवार-दोषी है या नहीं? दलील दे सकते हैं कि अभी जिम्मेवादी तय करने, दोषी चिंहित कर उस पर ठिकरा फोड़ने का वक्त नहीं है बल्कि नरेंद्र मोदी- अजित डोवाल के साथ खड़े हो कर नारा लगाना चाहिए कि मोदी-डोवाल पाकिस्तान पर हमला करो और चालीस की जगह चार सौ सिर काट करके लाओ. अपनी छप्पन इंची छाती दिखाओ!
हां, यह तर्क देते हुए शनिवार को हमारे डा. वेदप्रताप वैदिक ने भी लिखा है कि मोदीजी दिखा दो अपनी छप्पन इंची छाती! पर यह तर्क तो सितंबर 2016 में उरी में आंतकी हमले के बाद भी हुआ था. उसके बाद हुई सर्जिकल कार्रवाई. लेकिन ढाई साल बाद सीमा पार से मजे से एक क्विंटल आरडीएक्स आना और जवानों के काफिले पर आंतकी का हमला! इतना भयावह-दहला देने वाला हमला! कोई मोदी-डोवाल से यह पूछे कि सर्जिकल स्ट्राइक से पाकिस्तान क्या उतना दहला जितना पुलवामा हमले में हम दहले हैं. हमने कितने किलोग्राम आरडीएक्स से वहां कैंप उड़ाए? क्या नरेंद्र मोदी में है आरडीएक्स से जैश ए मोहम्मद के अजहर को उड़वा देना?
मैं फिर रोने के बजाय गुस्से में हूं और वह भी मोदी-डोवाल पर! मगर मैं हूं क्योंकि ये हर तरह से सीधे जिम्मेवार हैं, सीमा पार से 100-150 किलोग्राम आरडीएक्स आ जाने की लापरवाही के लिए! रोते हुए इनकी छप्पन इंची छाती को ही हमें कूटना चाहिए! पाकिस्तान का नाम ले कर स्यापा करने की जरूरत नहीं है. वह तो हमें 72 साल से रूला रहा है. तभी तो मैंने, हम सबने 2014 में मोदी को लिवा लाने की ठानी थी. बावजूद इसके पांच साल बाद भी और भयावह रोना है तो छाती तो अपनी ही कूटेंगे.
साभार: नया इंडिया