राजनीतिक दलों के परीक्षण के लिए तैयार हो रहा ‘डॉक्टर मेनीफेस्टो’


medical manifesto will test parties in election

  फाइल फोटो

डॉक्टरों का एक समूह राजनीतिक दलों से कुछ स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों को उनके चुनावी घोषणा पत्र में शामिल करने की मांग करने जा रहा है. डॉक्टरों का यह घोषणा पत्र (मेनीफेस्टो) स्वास्थ्य सेवाओं में नैतिकता के सवाल खड़े करने वाला है.

टेलीग्राफ में छपी खबर के मुताबिक इसमें स्वास्थ्य क्षेत्र में फैले अनाचार से लेकर मेडिकल पर हो रहे खर्च तक की बातें शामिल होंगी.

नैतिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए डॉक्टरों का संगठन (एडीईएच) इस हफ्ते ‘नैतिक डॉक्टर घोषणा पत्र’ जारी करने वाला है. डॉक्टरों के इस संगठन का कहना है कि इस घोषणा पत्र का मकसद स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को राजनीतिक दलों के बीच और चुनावी प्रक्रिया में महत्व दिलाना है.

हालांकि ये घोषणा पत्र अभी पूरी तरह से तैयार नहीं हुआ है. संगठन के सदस्यों से मिली सूचना के मुताबिक डॉक्टरों ने इसमें स्वास्थ्य सेवाओं पर कम खर्च, तेजी से बढ़ रहा अनियंत्रित निजी मेडिकल उद्योग और स्वास्थ्य क्षेत्र में चल रहे अवैध कार्यों पर कार्रवाई के मुद्दों को जगह दी है.

संगठन के सदस्य अरूण गड़रे कहते हैं, “हम स्वास्थ्य सेवाओं में उथल-पुथल देख रहे हैं, राजनेता इन मुद्दों पर अब पहले से अधिक जागरूक हैं. इस वक्त हमें इस क्षेत्र में बड़े परिवर्तन की जरूरत है.” डॉक्टर अरुण एक प्रसूति रोग विशेषज्ञ हैं.

वो कहते हैं, “हम चाहते हैं कि राजनेता अपने चुनावी घोषणा पत्र में हमारे मेडिकल घोषणा पत्र को शामिल करें.”

साल 2015 में बने डॉक्टरों के इस संगठन में लगभग 200 डॉक्टर शामिल हैं. ये लोग स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में गलत प्रचलनों को रेखांकित करते हैं. ये समूह गिर चुकी सेवाओं में सुधार के लिए सरकार के हस्ताक्षेप हेतु अभियान भी चला रहा है.

संगठन के मुताबिक मोदी सरकार ने स्वास्थ्य क्षेत्र में कुछ चुने हुए काम जरूर किए हैं. लेकिन इनको और बेहतर तरीके से किया जा सकता था. गड़रे कहते हैं, “हम आयुष्मान भारत के बीमा आधारित मॉडल का विरोध करते हैं. हम इसकी आलोचना करते हैं, लेकिन 40 फीसदी आबादी को स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने की ओर यह एक कदम है.”

अब देखना यह होगा कि लोक लुभावन घोषणा करने वाले राजनीतिक दल अपने घोषणा पत्रों में इन मुद्दों को कितना महत्व देते हैं.


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