न्यूनतम मजदूरी के साथ बढ़ेगी मनरेगा की चुनौती


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अगर न्यूनतम मजदूरी प्रस्ताव को मान लिया जाता है तो मनरेगा के तहत मिलने वाली मजदूरी में काफी इजाफा हो सकता है. केंद्र सरकार ने न्यूनतम मजदूरी के निर्धारण के लिए एक समिति गठित की थी. जिसने अपनी रिपोर्ट में इसको बढ़ाने की सिफारिश की है.

फिलहाल राज्यों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना यानी मनरेगा के तहत दी जाने वाली मजदूरी काफी कम है.

समिति ने अपनी सिफारिश में दो तरह से न्यूनतम दैनिक मजदूरी देने का खाका तैयार करके दिया है. इस बार मजदूरी का निर्धारण कई दैनिक जरूरतों को ध्यान में रखकर किया गया है. ये संतुलित आहार पर आधारित है.

समिति ने सलाह दी है कि न्यूनतम मजदूरी किसी भी हालत में 375 रुपये से कम नहीं होनी चाहिए. पैनल ने अपनी वैकल्पिक सलाह में कहा है कि न्यूनतम मजदूरी को पांच स्लैब में बांटा जाना चाहिए. ये स्लैब क्षेत्रों के आधार पर बंटे होंगे. इनमें मजदूरी का निर्धारण 342 से लेकर 447 रुपयों के बीच होना चाहिए. समिति के सुझाव जुलाई 2018 की कीमतों पर आधारित हैं.

समिति ने प्रत्येक छह महीने में मजदूरी का रिवीजन करने की बात कही है. अनुशंसा के मुताबिक ये रिवीजन उपभोक्ता मूल्य सूचकांक(सीपीआई) या औद्योगिक कर्मी के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार पर होना चाहिए.

इस बारे में लोगों की राय लेने के लिए राष्ट्रीय श्रम मंत्रालय ने इसे अपनी वेबसाइट पर लगा रखा है. न्यूनतम मजदूरी निर्धारण मजदूरी अधिनियम के तहत होता है.

मनरेगा के तहत 100 दिन काम की गारंटी दी जाती है. इस समय पूरे देश में करीब 10 करोड़ परिवार मनरेगा में रजिस्टर्ड हैं. इसके नियमों के मुताबिक साल में एक बार मजदूरी पुनर्निधारण होता है. मजदूरी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित होती है.

सबसे अच्छी बात ये है कि अगर मजदूरी का निर्धारण उपभोक्ता मूल्य सूचकांक-औद्योगिक मजदूर के उपभोक्ता मूल्य के तहत होता है तो इसमें खाने के अलावा अन्य चीजों को भी महत्व दिया जाएगा. इनमें कपड़े और मनोरंजन पर हुआ खर्च भी शामिल होगा.

अब यदि सरकार ये सिफारिशें मान लेती है तो मनरेगा का वेतन तो बढ़ेगा ही साथ ही इसका हर छह महीने में इसका पुनर्निधारण होगा.

अभिजीत सेन योजना आयोग के पूर्व सदस्य और जाने-माने अर्थशास्त्री हैं. उनका कहना है कि अगर मजदूरी अधिनियम पारित हो जाता है तो मनरेगा के तहत न्यूनतम मजदूरी देना अनिवार्य हो जाएगा.

सेन कहते हैं, अगर सरकार उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के तहत मजदूरी का निर्धारण करे तो मजदूरी दरों का पुनरीक्षण आसान हो जाएगा.

ग्रामीण विकास मंत्रालय ने मजदूरी दरों के पुनरीक्षण के लिए नए नियमों का प्रस्ताव रखा है, लेकिन वित्त मंत्रालय ने अभी तक इसे मंजूरी नहीं दी है. मंत्रालय को डर है कि इसकी वजह से मनरेगा का खर्च बढ़कर 1,200 करोड़ हो जाएगा.


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