सक्षम होने के बावजूद सार्वजनिक रक्षा कंपनियों को ऑर्डर नहीं
ये चर्चा हाल के समय में तेज हुई है कि सार्वजनिक क्षेत्र की रक्षा कंपनी हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स (एचएएल) बजट की कमी से जूझ रही है. इस बीच संसद की एक समिति ने कहा है कि सक्षम होने के बावजूद सार्वजनिक क्षेत्र की रक्षा कंपनियों को आर्डर नहीं मिल पा रहे हैं.
रक्षा संबंधी जांच के लिए बनी संसदीय स्थायी समिति ने यह भी जोड़ा है कि सरकार की ओर से सेना के आधुनिकीकरण के लिए पर्याप्त फंड जारी नहीं हुआ है.
बीजेपी सांसद कलराज मिश्रा की अध्यक्षता में गठित संसदीय स्थायी समिति ने वित्त मंत्रालय को “नन लैप्सेबल डिफेंस मोडेरनाइजेशन फंड” की अनुमति नहीं देने के फैसले की आलोचना की है. इस फंड का इस्तेमाल हथियार खरीद के लिए होना था. इससे संबंधित प्रस्ताव रक्षा मंत्रालय की ओर से साल 2016 में भेजा गया था.
इस उद्देश्य से वित्तीय वर्ष 2018-2019 के लिए 2.95 लाख करोड़ रुपये आवंटित हुआ था.
समिति के अनुसार, रक्षा मंत्रालय ने 1.72 लाख करोड़ रुपये खर्च का अनुमान लगाया था, जबकि केवल 93,982 करोड़ रुपये सेना के आधुनिकीकरण में खर्च हो पाया है.
इनमें पहले से चल रही परियोजनाओं के लिए 1.10 लाख करोड़ की आवश्यकता होगी. जबकि नई परियोजनाओं को शुरू करने के लिए अतिरिक्त 31,435 करोड़ रुपये की जरुरत है.
समिति की ओर से कहा गया है कि जारी किया गया फंड न केवल रक्षा मंत्रालय की ओर से अनुमानित बजट से कम है, बल्कि इससे पुरानी चल रही परियोजना को पूरा करना मुश्किल हैं.
पैनल रिपोर्ट के मुताबिक, “फंड की कमी से रक्षा सेवा के आधुनिकीकरण की कोई संभावना नहीं बची है.” समिति ने चिंता जताई है कि वेंडर को समय पर फंड जारी नहीं होने से मुकदमेबाजी और ब्याज के रूप में अतिरिक्त मूल्य खर्च करने पड़ सकते हैं.
वहीं, थल सेना को अनुमानित खर्च की तुलना में केवल 60 फीसदी फंड मिल पाया है. जबकि नौ सेना को 56 फीसदी और आईएफ को 46 फीसदी कम फंड मिला है.
‘आर्डर बुक की खतरनाक निम्न स्थिति’ की वजह से एचएएल, भारत डायनामिक्स, मैजगॉन डॉक्स, गोआ शिपयार्ड, गार्डेन रिच शिप बिल्डिंग एंड इंजिनियर्स पर साल 2021 तक पूरी तरह बंद होने का खतरा मंडरा रहा है.
संसदीय समिति ने पांच सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी और चार शिपयार्ड कंपनी को चलाने के लिए सरकार को ‘फुल प्रूफ स्ट्रैटजी’ बनाने का सुझाव दिया है. जिनमें आर्डर की कमी से काम बंद नहीं होना शामिल है.
रिपोर्ट में रक्षा क्षेत्र की सार्वजनिक कंपनियों में ‘लो आर्डर बुक्स’ और क्षमता के अनुरूप प्रोडक्शन नहीं होने की स्थिति में रक्षा मंत्रालय की ओर से फंडिंग के साथ नए आर्डर के लिए सैन्य बलों को प्रोत्साहित करने का सुझाव दिया गया है.