तथ्यों से परे है मोदी सरकार में विकास का दावा
भारत में एक और आम चुनाव नजदीक है. ऐसे में मौजूदा मोदी सरकार की नीतियों और कामकाज की समीक्षा की जा रही है. 2014 में हुए आम चुनावों में मोदी सरकार रोजगार समेत तमाम प्रमुख मुद्दों पर सुधार के वादे के साथ सत्ता में आई थी. लेकिन सरकार के ज्यादातर वादे अभी तक अधूरे ही हैं.
ब्रिटेन आधारित वेबसाइट ‘द गार्डियन’ ने अपने संपादकीय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काम-काज की समीक्षा की है.
25 साल बाद 2014 के आम चुनाव में नरेंद्र मोदी के पूर्ण बहुमत पाने की दो वजह थीं. पहला, जनता का कांग्रेस पार्टी में विश्वास घटना, और दूसरा, देश की कमज़ोर होती अर्थव्यवस्था से जूझना.
वेबसाइट के मुताबिक पिछले आम चुनाव में किए गए तमाम वादों में सबसे चर्चित वादा था, “देश में हर साल दस मिलियन नौकरियां पैदा की जाएंगी”. यानी, हर महीने लगभग 8 लाख 40 हजार नौकरियां. ये ऐसा वादा था जो देश के 1.35 करोड़ आबादी को प्रभावित करता. लेकिन मोदी सरकार में पांच सालों में जितनी नौकरियां निकली वो इतनी बड़ी आबादी के हिसाब से काफ़ी नहीं थीं.
पांच सालों में मोदी सरकार ने समस्याओं का संज्ञान लेने के बजाए सरकारी आंकड़ों को दबाए रखना सही समझा. नतीजा ये हुआ कि पिछले साल 93,000 लोगों ने 62 सरकारी पदों में चपरासी की नौकरी के लिए आवेदन किया. एक अन्य रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि 45 वर्षों में बेरोजगारी दर अपने चरम पर है. हर 6 में से एक ग्रामीण बेरोजगार है.
आगामी आम चुनाव को देखते हुए 1 फरवरी को पेश किए गए बजट में कहा गया कि ये बजट 120 मिलियन गरीब किसानों के लिए है. मध्यम वर्गों के लिए टैक्स में छूट और शहरी कर्मचारियों के लिए पेंशन स्कीम की घोषणा कर जनता को लुभाने की कोशिश की गई.
वैसे तो मोदी ने विश्व भर में ये ऐलान कर दिया है कि हम दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था हैं. लेकिन, वे ये भूल गए कि आंकड़े देश की कुछ और ही कहानी बयान कर रहे हैं. जहां नौकरियां उपलब्ध ही नहीं हैं.
वेबसाइट लिखती है कि भारत में व्यापक सामाजिक असमानता है. विकास किसे कहते हैं, ये समझने के लिए मोदी को अपने नजरिए को बड़ा करना होगा.
तमाम दावों के बावजूद मोदी सरकार सार्वभौमिक गुणवत्ता वाली शिक्षा व्यवस्था देने के मामले में भी असफल रही है. जिसकी वजह से भारत दुनिया का तीसरा सबसे निरक्षर देश बन गया है.
सरकार ने कई स्वास्थ्य योजनाएं भी शुरू की, लेकिन इन स्वास्थ्य योजनाओं के लिए बहुत कम पैसे आवंटित किए गए.
जबकि कांग्रेस को न्यूनतम आय की गारंटी योजना की वजह से काफी सराहना मिली थी. जो गरीबों और समाज में रह रहे निम्न स्तर के लोगों के लिए संसाधन मुहैया कराने का जरिया बनी.
एक स्वतंत्र देश की सरकार को चुनाव जीतना पड़ता है और साथ ही जनता की आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ता है.
जनता से किए वादों को पूरा करने के लिए मजबूत इच्छाशक्ति का होना जरूरी है. अफसोस, मोदी जो खुद जानते हैं उसी को हकीकत मान लेते हैं. उन्होंने पांच सालों में एक बार भी पारंपरिक तौर से प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की है.
एक तरफ, केंद्रीय बैंक के साथ उनके विवाद ने राजनीतिक उद्देश्यों के लिए स्वतंत्र संस्थानों पर कब्जा करने की कोशिश का खुलासा किया है. तो दूसरी तरफ, उनका प्रशासन असहज तथ्यों को छिपाता है.
2014 से अब तक गरीबी के आधिकारिक आंकड़े जारी नहीं किए गए हैं. जब से बीजेपी की सरकार बनी है, सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं में 28 फीसदी की बढ़त दर्ज की गई है.
वेबसाइट ने लिखा है कि देश फिर से आम चुनाव की तरफ बढ़ रहा है. ऐसे में कई चीजें दांव पर लगी हैं. रोजमर्रा की चीजें तो हैं ही, साथ ही जो सबसे अहम है, वो है भारत की आत्मा को बचाने का संघर्ष.