पुण्यतिथि विशेष: सुरों का सरताज जिसने सबको अपनी आवाज का कायल बना दिया


mohammerafi death anniversary

 

हिन्दी सिनेमा में गुजरे जमाने के मशहूर गायक मोहम्मद रफी की आज 39वीं पुण्यतिथि है. 31 जुलाई 1980 में महान कहे जाने वाले गायक मोहम्मद की आवाज हमेशा के लिए रुक गई और वे इस दुनिया को अलविदा कह गए. लेकिन उनके आज भी उनके गीत लोगों की जुबान पर चढ़े हुए हैं. वे आज भी अपने गीतो से हमारे बीच जिंदा हैं.

रफी साहब का जन्म 24 दिसंबर 1924 को अमृतसर में हुआ था. रफी साहब को बचपन से ही संगीत में दिलचस्पी थी. जब उनके परिवार को पता चला तो कुछ मुश्किल हुई लेकिन इसके बाद परिवार ने उनका साथ दिया. रफी की संगीत में इस कदर दिलचस्पी थी कि कहते हैं रफी साहब के घर के बाहर एक फकीर आता था. रफी उस फकीर का पीछा करते और उसे सुना करते थे.

अपने सपने को पूरा करने रफी मुबंई चले गए. मुबंई जाने के बाद रफी को काफी मुश्किलों को सामना करना पड़ा. लेकिन फिर एक दिन रफी की मुलाकात श्याम सुन्दर से हुई और रफी को गाने का मौका मिला. 1950 के दशक में शंकर जयकिशन,नौशाद ने रफी से उस दौर के सबसे लोकप्रिय गीत गवाए.

साल 1960 में फिल्म चौदहवीं का चांद के गीत रफी साहब ने गाए थे. जिसके लिए उन्हें पहला फिल्म फेयर पुरस्कार मिला. उस दौर की सुपर हिट फिल्म दो बदन, नीलकमल और काजल जैसी फिल्मों के गीतों में रफी साहब ने आवाज दी. साल 1961 में रफी साहब को फिल्म ससुराल के गीत के लिए दूसरा फिल्मफेयर अवार्ड मिला. साल 1966 में फिल्म सूरज के गीत बहारों फूल बरसाओ को रफी साहब ने गाया था. इस गीत ने सभी को अपना कायल बना दिया. संगीत प्रेमियों के बीच आज भी ये गीत बहुत चाव से सुना जाता है.

रफी साहब एक के बाद एक गीत गा कर इन गीतों को अमर कर रहे थे. बड़े-बड़े अभिनेता की आवाज रफी बन चुके थे. झिलमिल सितारों का आंगन होगा’, ‘जो वादा किया निभाना पड़ेगा और ये दुनिया ये महफिल जैसे और भी कई सदाबहार गीतों को रफी साहब ने अपनी आवाज दी.

फिल्म ‘आस-पास’ का गाना उनका आखिरी गाना था. जिसे रफी साहब ने अपने मृत्यु से कुछ समय पहले रिकॉर्ड किया था. जिसके बाद उनका निधन हो गया. उनकी निधन खबर सुनकर हर जगह शोक की लहर दौड़ गई थी.


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