मप्र डायरी: बीजेपी के ‘घंटानाद’ के मुकाबले कांग्रेस का ‘विफलता गान’
लोकसभा चुनाव के बाद अब मध्य प्रदेश में नगरीय निकाय चुनावों की बारी है. आगामी छह माह के अंदर ये चुनाव होने हैं. बीते डेढ़ दशक से बीजेपी ने धीरे-धीरे नगरीय निकायों पर अपनी सत्ता काबिज कर दी थी सो इस बार कांग्रेस का इरादा है कि वह विधानसभा चुनाव के बाद नगरीय निकाय चुनाव में भी बीजेपी को शिकस्त दे.
बीजेपी लोकसभा चुनाव की जीत दोहराना चाहती है. यही कारण है कि दोनों ही दलों ने अपनी मैदानी गतिविधियां तेज कर दी हैं. लोकसभा चुनाव में किसान कर्जमाफी को मुद्दा बनाने के बाद अब बीजेपी ने जयप्रकाश नारायण यानि जेपी आंदोलन से प्रेरणा लेकर कांग्रेस सरकार के खिलाफ घंटानाद आंदोलन का एलान किया है. 11 सितंबर को घंटानाद आंदोलन के तहत बीजेपी कार्यकर्ता प्रत्येक जिला मुख्यालय पर घंटा और ढोल मजीरे बजा कर प्रदर्शन करेंगे.
कांग्रेस ने इस आंदोलन की हवा निकालने की रणनीति पर अभी से काम शुरू कर दिया है. घंटानाद आंदोलन की घोषणा के दिन से ही 15 साल बनाम 9 माह कैम्पेन चलाते हुए बीजेपी के 15 साल के शासन की तुलना में कांग्रेस के कमलनाथ सरकार के 9 माह की उपलब्धियों को गिनाते हुए कांग्रेस नेता बीजेपी पर सवाल उठा रहे हैं. कांग्रेस का प्रयास है कि बीजेपी की विफलताएं गिनाने की अपनी इस मुहिम को प्रवक्ता के बयानों से आगे मैदान तक ले जाया जाए.
योजना है कि जनता के बीच जा कर कमलनाथ सरकार की उपलब्धियों को बताया जाएगा. यह काम मंत्रियों ने ‘आपकी सरकार आपके द्वार’ कार्यक्रम के जरिए किया अब बारी कांग्रेस नेताओं की है. वे भी गांवों, शहरों में जनता के बीच जा कर अपनी सरकार की उपलब्धियां बताएंगे. लक्ष्य केन्द्र की मोदी सरकार की विफलताएं गिनाना भी है. कांग्रेस जनता के बीच जा कर कहेगी कि अर्थव्यवस्था बेजार, मंदी की मार, युवा बेरोजगार, विपक्षियों पर झूठे प्रहार, अबकी बार सारी हदें हुईं पार.
क्या वाकई में दबाव में हैं नेता प्रतिपक्ष भार्गव?
यह सवाल राजनीतिक हलकों में तैर रहा है कि क्या सच में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव पर पार्टी की अंदरूनी राजनीति का दबाव है कि वे लगातार राजनीतिक गलतियां किए जा रहे हैं? भार्गव ने विधानसभा में कमलनाथ सरकार की अस्थिरता पर ऐसा बयान दिया था कि नेतृत्व को बैकफुट पर आना पड़ा था. अब एक बार फिर वे बयान में उलझे तो घुमा-फिरा कर अपनी ही बात का खंडन करना पड़ा.
इस बार भार्गव ने कांग्रेस सरकार से निदर्लीय विधायकों की नाराजी की खबरों पर बयान दिया था कि निर्दलीय विधायकों को जल्द से जल्द बीजेपी का साथ दे कर उसकी सरकार बनवा देना चाहिए. इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई. बीजेपी पर सरकार में तोड़फोड़ के आरोप लगे. बीजेपी नेतृत्व पहले ही साफ कर चुका है कि उसे लोकतांत्रिक तरीकों से चुनी हुई सरकार को गिराने में रूचि नहीं है. सो, इसबार भी पार्टी ने खुद को भार्गव के बयान से अलग कर लिया.
भार्गव ने भी कहा कि उनकी बात को गलत समझा गया. मगर, इसी बर्ताव से यह सवाल उठा कि बेबाक और समन्वयकारी नेता माने जाने वाले भार्गव क्या पार्टी में सक्रियता के मामले पर किसी अंदरूनी दबाव को झेल रहे हैं जिसके कारण वे लगातार विवादास्पद बयान दे रहे हैं? वे अपनी सक्रियता दिखाने के फेर में कहीं अपनी मुश्किलें तो नहीं बढ़ा रहे हैं.
बीजेपी सरकार के आंकड़ों पर कांग्रेस की फजीहत!
प्रदेश में बीते 9 माह से कांग्रेस की सरकार है. कांग्रेस ने मुख्यमंत्री कमलनाथ के नेतृत्व में प्रदेश में कई नीतिगत बदलाव करते हुए विकास की अपनी परिभाषा और दृष्टि रखी है. मगर केन्द्र सरकार की कुछ रिपोर्ट में मध्य प्रदेश की स्थिति पिछड़ी आने के बाद ‘सरकार’ चौंक गई. यह समझ से परे था कि ‘कागजों’ में बड़ा अंतर दिखाई नहीं दे रहा था जबकि माना जा रहा है कि हकीकत में बड़े बदलाव हुए हैं.
कागजों में बदलाव न दिखाई देने की पड़ताल हुई तो पता चला कि हाल ही में आई रिपोर्ट में दर्ज आंकड़ें बीजेपी सरकार के दौरान के हैं. यानि, बीजेपी के समय की विफलता कांग्रेस शासन के खाते में दर्ज हो रही है. ऐसा विधानसभा की कार्यवाही के दौरान भी हुआ था.
विधानसभा में पेश विभिन्न जांच रिपोर्ट में बीजेपी सरकार को उन सभी बिन्दुओं पर क्लीन चिट मिल गई थी जिन पर कांग्रेस हमेशा बीजेपी को घेरती रही है. बीजेपी को क्लीन चिट देने पर विवाद हुआ तो पता चला था कि मंत्रियों ने बीजेपी सरकार के समय तैयार तथ्य ही रखे थे. इसके बाद कांग्रेस सरकार ने नए सिरे से जांच की घोषणा की.
अब आंकड़ों के मामले में भी सतर्कता बरती जा रही है कि किसी भी अध्ययन या रिपोर्ट के लिए आंकड़ें देते समय जांच लिया जाए कि आंकड़ें कांग्रेस सरकार के समय के हैं या नहीं. अन्यथा तो बीजेपी सरकार के आंकड़ों पर कांग्रेस की किरकिरी होती रहेगी.