मध्य प्रदेश डायरी: ये अपना अंदाज है, बुरा लगे तो मेरी बला से


twenty two rebel mp congress joins bjp

 

गुजरा सप्ताह मध्य प्रदेश के विधायी इतिहास में कई घटनाक्रमों के लिए याद किया जाएगा. बराबरी की संख्या वाला विपक्ष यानी बीजेपी विधायक दल पहले दिन से ही आक्रामक रहा. अपनी चतुराई के फेर में बीजेपी ने नियमों में उलझ कर अध्यक्ष पद का चुनाव तो हारा ही उपाध्यक्ष की सहज मिलने वाली सीट भी खो दी. उसने इस शिकस्त पर बहुत खीज भी उतारी और सदन के अंदर और बाहर जमकर हंगामा किया. लेकिन इन तमाम बातों के उसे अध्यक्ष का एक अंदाज भी तीखा चुभ गया. असल में उपाध्यक्ष चुनाव के दौरान बीजेपी विधायकों के आरोप को विलोपित करवाने के लिए अध्यक्ष ने क्रॉस का साइन बनाया. यह निशान बनाना बीजेपी विधायकों को नागवार गुजरा. उन्होंने अध्यक्ष को तानाशाह की संज्ञा दे दी. बहुत देर तक जब इस पर हंगामा होता रहा तो अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने यह कह कर चौका मार दिया कि यह तो अपना अपना अंदाज है. बीजेपी के शासनकाल में तत्कालीन अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी कोई बात विलोपित करवाने के लिए हाथ से शून्य का निशान बनाते थे, मैंने क्रॉस का साइन बना दिया. इसमें क्या गलत है. अध्यक्ष का यह कहना विपक्ष को तिलमिला गया.

क्या से क्या हो गए देखते ही देखते
बीजेपी के शासनकाल में संसदीय कार्यमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा की तूती बोलती थी. उन्हें सरकार का ‘डैमेज कंट्रोलर’ कहा जाता था. सत्ता पक्ष में रहने के बावजूद आक्रामक रहने वाले नरोत्तम ने ही कांग्रेस के उपनेता प्रतिपक्ष को बीजेपी में शामिल करवा कर शिवराज के खिलाफ लाये गए अविश्वास प्रस्ताव को औंधे मुंह गिराने में मुख्य भूमिका निभाई थी. लेकिन, बीजेपी के विपक्ष में आते ही सबसे ज्यादा इन्हीं नरोत्तम का व्यवहार बदला-बदला सा है. जब साथी विधायक हंगामा कर रहे थे तब नरोत्तम अपनी सीट पर बैठे रहे या अपनी जगह पर ही खड़े रहे. यह सदन में गुजरे उनके सबसे शांत दिनों में से चार दिन थे. उनकी इस चुप्पी को नेता प्रतिपक्ष के निर्णय से जोड़ कर देखा जा रहा है. वे नेता प्रतिपक्ष के लिए केंद्रीय नेतृत्व की पहली पसंद थे, लेकिन स्थानीय नेतृत्व ने गोपाल भार्गव को चुना. माना गया कि ‘संकटमोचक’ कहे जाने वाले नरोत्तम की राह खुद शिवराज ने रोकी और इसी कसक में नरोत्तम ने चुप्पी ओढ़ ली.

अफसरों में खिल रहा नाथ कॉन्फिडेंस
मध्य प्रदेश में 15 साल के बीजेपी शासन के बाद कांग्रेस सत्ता में आई तो सबसे ज्यादा ब्यूरोक्रेसी दहशत में दिखाई दी. चुनाव के दौरान प्रशासन की भूमिका पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने चेताया भी था कि अधिकारी न भूले कि सरकार बदल सकती है. और जब सरकार बदली तो अफसरों में भय छा गया कि अब तो बदले की कार्रवाई होगी मगर ऐसा हुआ नहीं. बल्कि मुख्यमंत्री ने अफसरों पर यकीन दिखाया. सरकार का एक माह गुजरते-गुजरते ब्यूरोक्रेसी में छाया असमंजस का कुहासा छंटने लगा है और यह संदेश गहरे तक पहुंच गया कि आकलन तो काम से होगा, बदले का भाव न होगा. खुद को ‘डाकू’ कहे जाने के बाद भी कमलनाथ द्वारा जबलपुर के एक हेडमास्टर का निलंबन रद्द करवा देने से भी यही संदेश गया.

राजनीति का यह इंदौरी तड़का है खास
मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र का इंदौर अपने नमकीन और भोजन के अपने खास अंदाज के कारण लोकप्रिय है. इस क्षेत्र की राजनीति की भी यहां के खाने की ही तरह तड़के वाली है. इन दिनों बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री सज्जन वर्मा की जुबानी जंग के कारण इंदौरी राजनीति की चर्चा है. कैलाश विजयवर्गीय ने कार्यकर्ताओं की सभा में कहा कि अगर ‘दिल्ली’ आदेश करे तो मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार 15 दिन में गिरा देंगे. कैलाश के जवाब में मंत्री वर्मा ने कहा कि कैलाश विजयवर्गीय कॉलेज में हमारा जूनियर था. पहले उनकी संपत्ति की जांच कराई जाए कि टूटे स्कूटर पर चलने वाले कि इतनी बड़ी-बड़ी बातें, इतनी बड़ी-बड़ी उड़ान कैसे? विजयवर्गीय और वर्मा की यह जंग पुरानी है उसमें तड़का ताज़ा ताज़ा है और इस वाकयुद्ध पर नित नए वीडियो वायरल हो रहे हैं.


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