मध्य प्रदेश डायरी: संघ हैरान, बीजेपी में गहराया परिवारवाद


MP diary: Union surprised, BJP's deepened familyism

 

लोकसभा चुनाव की तारीखों के एलान के साथ ही बीजेपी में टिकट को लेकर खींचतान शुरू हो गई है. खास बात यह है कि बीजेपी का मातृ संंगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(आरएसएस) अधिकांश सांसदों के टिकट काटने की पैरवी कर रहा है. संघ पदाधिकारी पार्टी में गहराते परिवारवाद से हैरान भी हैं.

संघ में बरसों से सेवाएं दे रहे स्वयंसेवक यह समझ नहीं पा रहे हैं कि राजनीति में जिस परिवारवाद का वे विरोध करते रहे हैं उसी की जड़े अब बीजेपी में जम चुकी हैं. बीजेपी में इस समय बड़े नेता अपने बेटे-बेटियों, भाई, पत्नी या नाते-रिश्तेदारों को मैदान में उतारना चाहते हैं और वे इस मांग में खुलकर एक दूसरे का साथ दे रहे हैं.

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने बीते दिनों कहा कि जब किसान का बेटा किसानी करता है, अधिकारी का बेटा सरकारी नौकरी करता है, सेठ का बेटा व्यापार करता है तो फिर क्या नेता के बेटे को भीख मांगनी चाहिए?

भार्गव को इस तर्क में अन्य नेताओं का साथ मिला. भार्गव दमोह लोकसभा क्षेत्र से अपने बेटे अभिषेक भार्गव के लिये टिकट की दावेदारी कर रहे हैं. पूर्व मंत्री जालम सिंह पटेल अपने भाई प्रहलाद पटेल के लिए होशंगाबाद से टिकट मांग रहे हैं. इसी क्षेत्र से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और बीजेपी विधायक डॉ सीतासरन शर्मा अपने भाई गिरिजा शंकर शर्मा या भतीजे पीयूष शर्मा को टिकट देने की मांग कर रहे हैं.

पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन भी अपनी बेटी मौसम के लिए टिकट चाहते हैं तो पूर्व वित्तमंत्री राघवजी भाई अपनी बेटी ज्योति शाह के लिए लोकसभा के लिए टिकट मांग रहे हैं. संघ पदाधिकारियों की चिंता यह भी है कि कद्दावर नेता यदि अपने परिवार को टिकट दिलवाने के लिए ऐसी ही जोड़-तोड़ और दबाव की राजनीति करते रहे तो कार्यकर्ता उपेक्षित होता रहेगा और बीजेपी भी उस राह पर चल पड़ेगी जिसकी वे निरंतर आलोचना करते रहे हैं.

टफ डिसीजन हो रहा और टफ

मध्य प्रदेश  में 29 में से 26 लोकसभा सीटों पर बीजेपी काबिज है. केंद्रीय नेतृत्व ने तय कर दिया है कि एक-एक सीट पर ताकत लगाई जाए. कमलनाथ हों या ज्योतिरादित्य सिंधिया, किसी भी सीट पर वॉक ओवर जैसी स्थिति नहीं बननी चाहिए. प्रदेश संगठन के पास फीडबैक है कि कुछ सांसदों के टिकट न काटे तो हार पक्की है.

उलझन यह है कि विधानसभा हारे कुछ बड़े नेता और पूर्व में टिकट से वंचित रहे नेता भी टिकट मांग रहे हैं. जिनके टिकट काटे जाने हैं वे अपने परिजन की पैरवी कर रहे हैं. इस मांग के पक्ष में जातिगत समीकरण, शीर्ष नेताओं से सम्पर्क जैसे सभी पैंतरे आजमाए जा रहे हैं. जैसे, विदिशा जैसी परम्परागत सीट पर कई दावेदारों की नजर है. अब समर्थकों ने एकजुट होकर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पत्नी साधना सिंह को टिकट देने की मांग कर दी. पूर्व मंत्री और शिवराज के खास रामपाल सिंह भी कह रहे हैं कि विदिशा के कार्यकर्ता चाहते हैं कि साधना सिंह मैदान में उतरें.

बुराहनपुर में वर्तमान सांसद नन्दकुमार सिंह चौहान से नाराजी है तो यहां पूर्व मंत्री अर्चना चिटनीस दावेदार हैं. दोनों के समर्थक कई बार आमने-सामने आ चुके हैं. बीजेपी में यह सवाल उठ रहा है कि जब छत्तीसगढ़ में रमन सिंह के बेटे, राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया के बेटे, उनके मुख्यमंत्री रहते लोकसभा सदस्य बन सकते हैं तो पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पत्नी साधना सिंह विदिशा से उम्मीदवार क्यों नहीं हो सकतीं? बीजेपी मुश्किलों से घिरी है और सम्भव हो है कि इस बार वह कांग्रेस के प्रत्याशियों की घोषणा के बाद अपने पत्ते खोले.

साल 2014 की तुलना में सुविधाजनक स्थिति में है कांग्रेस

लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस कुछ सुविधाजनक स्थिति में है. आम चुनाव 2014 में उसे दो सीटों छिंदवाड़ा और गुना में सफलता मिली थी. कांग्रेस ने उपचुनाव में झबुआ सीट पर जीत हासिल की थी. पार्टी इस बार के चुनाव में तीन से अधिक सीट जीतने को लेकर आश्वस्त है.

लेकिन जबलपुर, भोपाल, इंदौर,रीवा, विदिशा, खरगोन, धार, देवास, उज्जैन सहित लगभग डेढ़ दर्जन ऐसे क्षेत्र हैं जहां जीतने वाले दमदार चेहरे कांग्रेस के पास नहीं हैं. यहां उसे उम्मीदवारों के चयन में ज्यादा मशक्कत करनी पड़ रही है.

मुख्यमंत्री कमलनाथ मध्य प्रदेश में 22 से 23 सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं.

कांग्रेस विधानसभा चुनाव की तरह टिकट वितरण, प्रचार समीकरणों और अंदरूनी खींचतान पर काम कर लिया तो दो अंकों में पहुंचने का सपना हकीकत में बदल सकता है.


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