नरेंद्र मोदी के राज में घट गया सरकारी और निजी निवेश


industrial output decline by 1.1 percent in august

 

पिछले चार साल में सरकारी और निजी कंपनियों के निवेश में गिरावट आयी है. यह बात सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) की एक रिपोर्ट में सामने आई है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 के बाद सरकारी कंपनियों के निवेश में 1 % जबकि निजी कंपनियों के निवेश में पौने तीन प्रतिशत की कमी हुई है.

रिपोर्ट में बताया गया है कि 1998-99 से 2004-05 के दौरान धीमी वृद्धि दर होने के बावजूद मनमोहन सिंह सरकार के पहले कार्यकाल में निजी कंपनियों के निवेश यानि नेट फिक्स्ड असेट्स में 19.1 प्रतिशत का ज़बरदस्त इज़ाफ़ा हुआ था, जबकि सरकारी कंपनियों में ये वृद्धि मात्र 8 प्रतिशत की थी. हालांकि 2008 के विश्व आर्थिक संकट के बाद निजी कंपनियों के निवेश में लगभग 6 प्रतिशत की कमी आई, लेकिन सरकारी कंपनियों के निवेश में इसी दर से इज़ाफ़ा हुआ था. इतना ही नहीं, यूपीए के दूसरे कार्यकाल में सरकारी कंपनियों का निवेश 14.3 प्रतिशत रहा जबकि निजी कम्पनियो का 13.7 प्रतिशत.

लेकिन रिपोर्ट बताती है कि मोदी सरकार के कार्यकाल में सरकारी कंपनियों का निवेश घट कर 13.3 प्रतिशत जबकि निजी कंपनियों का 11.0 प्रतिशत रह गया है.

रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि साल 2014-15 से 2017-18 के बीच कॉर्पोरेट क्षेत्र में अधिकतर निवेश सरकारी कंपनियों से आया. उनकी नेट फिक्स्ड असेट्स 14 % सालाना की दर से बढ़ी जिसके मुकाबले निजी क्षेत्र की ग्रोथ 12 प्रतिशत ही रही. इस अवधि में सरकारी और निजी क्षेत्र के विस्तार में ये अंतर 5.4 प्रतिशत का रहा.

ये आंकड़े साफ़ बताते हैं कि निजी क्षेत्र को अर्थव्यवस्था और उपभोक्ता मांग बढ़ने का कोई भरोसा नहीं है इसलिए यह क्षेत्र अपने बिज़नेस की ग्रोथ के लिए निवेश करने को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं है.

यहां तक कि इस अवधि में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) भी कम हो गया है जिसके बारे में 2 दिन पहले गुजरात वाइब्रेंट समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया था कि देश में निवेश का वातावरण बेहतर होने से पिछले चार साल में रिकॉर्ड विदेशी पूंजी आई है. प्रधानमंत्री ने कहा था कि पहले के 18 साल में जितना प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ, उसकी लगभग आधा निवेश पिछले साल ही हुआ है.

लेकिन सीएमआईई की रिपोर्ट कहती है कि एफडीआई और घरेलू निवेश के बीच का अंतर बढ़ गया है. रिपोर्ट में बताया गया है कि आम तौर पर विदेशी कंपनियां नेट फिक्स्ड असेट्स बढ़ाने में कम रूचि रखती हैं. ये अंतर सामान्यतः 3 प्रतिशत रहता है, लेकिन विगत चार साल में बढ़कर 5 प्रतिशत हो गया है. उनकी नेट फिक्स्ड असेट्स 2016-17 में मात्र 1.1 और 2017-18 में 2.3 प्रतिशत बढ़ी. इसके समानांतर विदेशी निवेश में गिरावट और भी तेज हो गई. 2016 -17 में 1 प्रतिशत की गिरावट 2017-18 में बढ़कर 13 प्रतिशत हो गई.


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