नोटबंदी के समय घट गया सरकार का कर राजस्व
मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल में उठाए गए दो सबसे अहम क़दमों, नोटबंदी और वस्तु और सेवा कर को अक्सर इस तर्क से जायज ठहराया है कि इन दोनों क़दमों से सरकार के कर राजस्व में बढ़ोत्तरी होगी. हालांकि इस आधार पर उसका रिकॉर्ड पूर्ववर्ती सरकारों से कोई बहुत बेहतर नजर नहीं आता.
बल्कि वित्त मंत्रालय और सेंटर फ़ॉर मानिटरिंग इंडियन इकानॉमी के आंकड़ें बताते हैं कि इन दोनों क़दमों से कर राजस्व में अब तक मामूली बढ़ोत्तरी हुई है. मोदी सरकार के कार्यकाल में सकल कर राजस्व की दर 14.4 फीसदी रही है जो कि पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल की कुल कर राजस्व दर 13.7 फीसदी से थोड़ी ही बेहतर है. इतना ही नहीं, यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल की कुल कर राजस्व दर (19.3 फीसदी) के मुकाबले मोदी सरकार में राजस्व दर काफी कम रही है.
ज्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि बीते चार सालों में साल 2016-17 में ही करदाताओं की संख्या सबसे कम रही है. यह वही साल था जब प्रधानमंत्री मोदी ने नोटबंदी की घोषणा की थी. यानी नोटबंदी से करदाताओं की संख्या या कर राजस्व बढ़ा, इस बात को खुद सरकार के आंकड़ें ही झुठला रहे हैं.
हालांकि मोदी सरकार के कार्यकाल में कर और जीडीपी का अनुपात (17.2 फीसदी) यूपीए के दोनों कार्यकाल (16.4 फीसदी और 16.5 फीसदी) के मुकाबले बेहतर नजर आता है, लेकिन ऐसा सिर्फ जीडीपी दर के सुस्त रहने की वजह से है.
वास्तव में, बीजेपी सरकार के कार्यकाल में कर संग्रहण के लक्ष्य बेहद अव्यवहारिक ढंग से बनाए गए हैं. सरकार कर संग्रहण के तौर-तरीकों में पारदर्शिता भी लागू नहीं कर पाई है. सीएजी ने अपनी साल 2017 की आडिट रिपोर्ट में यह स्पष्ट कहा है कि आयकर विभाग ने कर संग्रहण के लक्ष्य बेहद अव्यवहारिक और बढ़ा-चढ़ाकर निर्धारित किए हैं.
जाहिर है कि मोदी सरकार कर राजस्व बढ़ाने के लिए उसी राह पर चलती हुई दिखी है जिसे कभी ‘टैक्स-आतंक’ की संज्ञा दी जाती थी.