‘धर्मनिरपेक्षता के बिना लोकतंत्र का अस्तित्व असंभव’


need to preserve secular structure of india is more than ever

 

“आज हमारे ऊपर वो राजनीतिक नेतृत्व शासन कर रहा है, जिसकी विचारधारा में 1923 के बाद से कोई बदलाव नहीं आया है. ये नेतृत्व अभी भी उस औपनिवेशिक विचार पर चल रहा है, जिसके अनुसार हिंदू और मुसलमान एक साथ नहीं रह सकते. एक सेक्युलर और लोकतांत्रिक समाज के रूप में आज हमें इस विचार से लड़ने की जरूरत है.” यह बात प्रोफेसर नीरा चंडोक ने समृद्ध भारत फाउंडेशन द्वारा मंथन लेक्चर सीरीज के तहत नई दिल्ली के इंडिया इस्लामिक कल्चर सेंटर में ‘रीथिंकिंग प्लूरलिज्म इन इंडिया’ शीर्षक से आयोजित कार्यक्रम में कही.

कार्यक्रम में पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी और माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी ने प्रोफेसर नीरा चंडोक के साथ चर्चा की. कार्यक्रम में एक देश के रूप में भारत के विचार पर चर्चा हुई. इस चर्चा में पता लगाने की कोशिश की गई कि एक देश के रूप में भारत के जिस धर्मनिरपेक्ष और बहुसांस्कृतिक ढांचे पर आज हमला किया जा रहा है, उसका किस प्रकार मुकाबला किया जा सकता है.

भारतीय समाज के बहुसांस्कृतिक और धर्मनिरपेक्ष ढांचे पर बोलते हुए सीताराम येचुरी ने कहा कि आजादी के समय से ही एक देश के रूप में भारत के तीन विचारों में लड़ाई चल रही है. यह लड़ाई भारत के लिए इस्लामिक राष्ट्र, हिंदू राष्ट्र और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की परिकल्पना रखने वालों के बीच चल रही है. आज हमें संघ और भाजपा के हिंदू राष्ट्र के विचार से लड़ना है. इसके लिए जरूरी है कि हम ना सिर्फ भारत के बहुसांस्कृतिक विचार पर दोबारा से विचार करें, बल्कि इसके लिए काम भी करें.

उन्होंने कहा कि आज संघ और बीजेपी ने देश के भीतर एक काल्पनिक दुश्मन को खड़ा करके देश को एकरूप बनाने की कोशिश तेज कर दी है, ऐसे में जरूरी है कि हम भारत के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को बचाए रखने के लिए एक हो जाएं.

वहीं, पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा कि भारत में धर्मनिरपेक्षता और बहुसंस्कृतिवाद रोजमर्रा की सच्चाई है, यह किसी प्रकार का अविष्कार नहीं है. सामान्य तौर पर इसे खत्म नहीं किया जा सकता. हां, बंदूक की नोक पर इसे जरूर तोड़ा जा सकता है. कई लोग ऐसा करने के लिए तैयार भी हैं.

उन्होंने आगे कहा कि आज हमारे सामने यही चुनौती है कि उन लोगों का डटकर सामना करें जो भारत के धर्मनिरपेक्ष और बहुसांस्कृतिक ढांचे को तोड़ना चाहते हैं.

हामिद अंसारी ने कहा कि ऐसा करने के लिए हमें फिर से धर्मनिरपेक्षता पर विचार करने की जरूरत है, नई शब्दावली और मुहावरे गढ़ने की जरूरत है.

एक उदाहरण देते हुए हामिद अंसारी ने समझाया कि हमें सहनशीलता और स्वीकार्यता में अंतर समझना होगा. सहनशीलता एक नकारात्मक शब्द है, जबकि स्वीकार्यता सकारात्मक शब्द. एक धर्मनिरपेक्ष समाज में लोगों को एक दूसरी की विभिन्नताओं को समझने और स्वीकार करने की जरूरत है, ना कि सहने की.

धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा को भारतीय संदर्भ में समझाते हुए प्रोफेसर नीरा चंडोक ने जवाहरलाल नेहरू के वक्तव्य का उदाहरण दिया.

उन्होंने कहा, “जवाहरलाल नेहरू ने भारत की धर्मनिरपेक्षता को तीन बिंदुओं में बांटा है. पहला, धर्म की स्वतंत्रता. दूसरा, धर्म की बराबरी. तीसरा, राज्य का किसी भी धर्म के प्रति झुकाव ना होना. उनके अनुसार भारत की धर्मनिरपेक्षता धर्म से अछूती नहीं थी.”

उन्होंने आगे कहा कि इन्हीं तीनों मायनों में भारत की धर्मनिरपेक्षता यूरोप की धर्मनिरपेक्षता से अलग है.

प्रोफेसर नीरा चंडोक ने कहा कि हमारे पास भारत की धर्मनिरपेक्षता का यह विचार है और इसी विचार के साथ हमें लड़ना होगा.

कार्यक्रम को रोम विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय फेलो प्रोफेसर आकाश राठोर ने मॉडरेट किया.


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