नई शिक्षा नीति: सरकार, संशय और सवाल


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1948 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानव अधिकारों को स्वीकृति देकर एक ऐतिहासिक निर्णय लिया था. तब उसने अपनी सार्वभौमिक घोषणा में कहा था कि सभी को शिक्षा का अधिकार है, कम से कम आरंभिक और मौलिक चरण में शिक्षा मुक्त होनी चाहिए, आरंभिक शिक्षा अनिवार्य होगी और यह भी कि शिक्षा मानव व्यक्तित्व के पूर्ण विकास और मानवाधिकार की मौलिक स्वतंत्रता के सम्मान को प्रोत्साहित और मजबूत करने के लिये निर्देशित की जाएगी.

यही लोकतंत्र में शिक्षा और शिक्षा में लोकतंत्र का बीज-विचार है. यदि कोई राष्ट्र मनुष्य को सर्वोच्च महत्व देने और उसके प्रति अपने दायित्वों का निर्वहन करने के प्रति प्रतिबद्ध है, तो वह शिक्षा की उदात्ता और लोकतांत्रिकता से एक कदम भी पीछे नहीं हट सकता. भारत में शिक्षा के दर्शन की ही प्राचीनता नहीं है, बल्कि शिक्षा व्यवस्था और शिक्षा के आधारभूत तत्वों की एक सूदीर्घ परंपरा भी है. मनुष्यता के गुणों का परिमार्जन और उनके प्रति समाज में आदरभाव की स्थापना के लक्ष्य से वह प्रेरित है. नैतिकता, उदारता, समन्वय, सद्भाव, सहयोग, समरसता, करुणा, प्रेम, त्याग और आत्मा की उच्चता शुरु से ही भारतीय शिक्षा के आधार तत्व रहे हैं.

नरेंद्र मोदी सरकार ने कस्तूरीरंगन कमेटी को नई शिक्षा नीति का प्रारूप तैयार करने का काम दिया था. उसने 31 मई, 2019 को अपनी रपट सरकार को सौंपी. इसमें कहा गया है कि ‘‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 एक भारत केंद्रित शिक्षा प्रणाली की कल्पना करती है, जो सभी को उच्च गुणवत्ता की शिक्षा प्रदान करके हमारे राष्ट्र को एक न्यायसंगत और जीवंत ज्ञान से समाज में लगातार बदलाव के लिये योगदान देती है.’’

प्रारंभिक बाल्यावस्था में देखभाल और शिक्षा

शैक्षिक घटक को मजबूत बनाने के लिए आंगनवाड़ी प्रणाली का सुद्ढ़ीकरण, आंगनवाड़ियों को पूर्व प्राथमिक स्कूल के साथ और पूर्व प्राथमिक शालाओं को प्राथमिक स्कूलों के साथ स्थापित करने की योजना है. आवश्यक गुणवत्ता मानक को सुनिश्चित करने के लिए एक नियामक प्रणाली का प्रस्ताव है, जो सभी पूर्व प्राथमिक स्कूलों, सार्वजनिक, निजी और अनुदान प्राप्त स्कूलों को नियमित करेगी.

कई सरकारी और गैर सरकारी सर्वेक्षणों से पता चलता है कि वर्तमान समय में सीखने से संबंधित कई बुनियादी कौशलों से 5 करोड़ बच्चे वंचित हैं. इस दिशा में जल्दी ही कोई कार्रवाई नहीं की गई तो यह संख्या 10 करोड़ हो जाएगी. इसके लिये समुदाय का एक साक्षर सदस्य किसी एक छात्र अथवा व्यक्ति को पढ़ाने के लिये प्रतिबद्ध हो, यह मंतव्य प्रकट किया गया है.

शिक्षकों के रिक्त पदों को जल्दी भरे जाने के लिये कहा गया है. महिला शिक्षकों को नियुक्त करने पर विशेष जोर है. लेकिन सवाल यह है कि क्या प्राथमिक स्तर पर सरकार द्वारा उपयुक्त भवनों और उपयुक्त वेतनमान पर विद्वान शिक्षकों की व्यवस्था करने का कर्तव्य अभी तक पूरा किया गया? एक छात्र एक और छात्र या व्यक्ति को पढ़ाये यह संकल्पना अच्छी है, लेकिन इसी की ओट में सरकारें कहीं शिक्षकों की पर्याप्त भरती करने से बच निकलने का रास्ता न खोज लें.

नवाचारों को प्रोत्साहन

कक्षा-कक्ष अध्ययन के साथ बाहर की दुनिया से संपर्क और अध्ययन को रोचक बनाने के लिए अनेक नवाचारों का जिक्र है. जैसे साल में कई बार भाषा और गणित सप्ताह और भाषा और गणित मेले का आयोजन. पुस्तकालय के आसपास की साप्ताहिक गतिविधियां, जैसे कहानी, रंगमंच, समूह में लिखना-पढ़ना आदि. इससे विद्यालय अपनी नीरसता से मुक्त होंगे और बच्चों के लिये आकर्षण का केंद्र भी बनेंगे. खेलते-खेलते सीखना ही सीखने की सबसे उत्तम प्रविधि भी है.

राष्ट्रीय ट्यूटर्स और रेमेडियल इंसट्रक्शन ऐड्स प्रोग्राम

इसके तहत बड़ी कक्षाओं के समझदार बच्चे छोटी कक्षाओं को ट्यूशन देंगे. शुरुआती दस सालों के लिए यह एक अस्थाई दस वर्षीय परियोजना होगी. इसमें स्थानीय समुदायों में से ही अनुदेशकों, खासकर महिलाओं की पहचान की जाएगी. ऐसा करने के लिये सेवानिवृत्त शिक्षक, सेना के अधिकारी, पड़ोसी स्कूलों के योग्य छात्र, कालेजों के जागरूक स्नातक आदि को शामिल करने का प्रयास होगा. लेकिन इसमें खतरा यह है कि सरकारें या स्कूल प्रधान कहीं खास विचार वालों को लाकर स्कूल की सवतंत्रता और स्वायत्ता को ही न नष्ट कर दें?

स्कूल तैयारी माड्यूल

2019 में ही पहली कक्षा में तीन महीने के ‘स्कूल तैयारी माड्यूल’ से शुरुआत होगी. इससे पता चलेगा कि छात्रों के पास पहले से क्या है, वे क्या जानते हैं. एनसीईआरटी इसके लिए एक फ्रेमवर्क और पाठ्यक्रम और शैक्षिक रणनीति विकसित करेगा और शिक्षकों को वितरित करेगा.

शिक्षक छात्र अनुपात

प्रारूप में सलाह दी गई है कि छात्र और शिक्षक अनुपात 30:1 के नीचे सुनिश्चित हो. इसके लिए रिक्तियां शीघ्र भरी जाएंगी. स्थानीय क्षेत्रों के शिक्षकों को प्राथमिकता दी जाएगी. लेकिन इसके लिए जो सुझाव प्रारूप में बताया गया है, वह टालमटोल भरा प्रतीत होता है कि समाजिक कार्यकर्ताओं और परामर्शदाताओं को स्कूल में लिया जाएगा. इससे सरकार शिक्षकों की भर्ती के मामले में शिथिल पड़ सकती है और किसी खास किस्म के लोगों की स्कूल में पैठ बनाई जा सकती है.

स्कूलों में शिक्षाक्रम और शिक्षणशास्त्र

इसका उद्देष्य है 2022 तक शिक्षाक्रम और शिक्षणशास्त्र में आमूल चूल बदलाव करना, ताकि रटने का प्रचलन खत्म किया जा सके और इसकी जगह 21 वीं सदी में आवश्यक ज्ञान, मूल्य, रुझान, हुनर और तार्किक चिंतन, सृजनात्मकता, वैज्ञानिक सोच, संवाद और सहयोग की क्षमता, बहुभाषिकता, समस्या समाधान, नैतिक चिंतन और कर्म, सामाजिक जिम्मेदारी और सरोकार और डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा दिया जा सके.

इसके लिए एक नया शिक्षाक्रमीय और शिक्षणशास्त्रीय ढांचा सुझाया गया है. इसे इस तरह व्यवस्थित किया गया है- 3 वर्ष का प्री-प्रायमरी स्कूल और ग्रेड 1,2 फिर 3 वर्षों की प्राथमिक अवस्था ग्रेड 3,4,5 और इसके बाद 3 वर्षों की माध्यमिक अवस्था- ग्रेड 6,7,8 अंत में 4 वर्षों की उन्नत अवस्था- ग्रेड 9,10,11,12.

मोड्यूलर बोर्ड परीक्षा

ऐसे मोड्यूलर बोर्ड परीक्षा की कल्पना की गई है, जिससे तार्किक चिंतन की क्षमताओं, केंद्रीय संकल्पनाओं और सिद्धांत की समझ और उच्चस्तरीय कौशल और हुनर को जांचा जा सके. हायर सेकेण्डरी या जूनियर कॉलेज सिस्टम खत्म हो जाएगा. करीकुलर, एक्स्ट्रा करीकुलर या को-करीकुलर के नाम पर विषय वस्तु का कड़ा विभाजन नहीं होगा. खेल, योग, संगीत, ड्राइंग, पेंटिंग, शिल्प, मिट्टी के बरतन बनाना, लकड़ी का काम, बागवानी, बिजली का काम आदि शिक्षाक्रम का हिस्सा होंगे. सभी छात्रों को कलाओं, मानविकी, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान के गहरे अध्ययन के अवसर मिलेंगे. बस संदेह यही है कि क्या स्कूलों में इंफ्रास्ट्रक्चर और पर्याप्त संसाधन मुहैया कराये जायेंगे?

बहु भाषिकता

मातृ भाषा या घर की भाषा ही सीखने की बेहतर भाषा होती है. बड़ी संख्या में बच्चे ऐसे स्कूलों में जा रहे हैं, जहां उस भाषा में शिक्षा दी जाती है, जिसे वे नहीं समझते. इसलिये वे सीखना शुरु करने के दौर में ही पिछड़ जाते हैं. ऐसी प्रादेशिक भाषाएं भी जो बड़े स्तर पर बच्चों के घर की भाषा हैं, शिक्षा का माध्यम बनेंगी. संवाद और सीखने की सामग्री दोनों ही द्विभाषी होंगी.

बहु-भाषिकता भारत के लिए एक अनिवार्यता है. वह बच्चों को बौद्धिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनाती है. संवैधानिक प्रावधानों, भारतीय जन और संघ की आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए त्रिभाषा फार्मूला की निरंतरता को बनाए रखना होगा. ग्रेड 8 या उससे पहले विज्ञान को स्थानीय भाषा और अंग्रेजी भाषा दोनों ही भाषाओं में सिखाया जाएगा. यदि रुचि हो तो विदेशी भाषाएं सिखाने के अवसर भी मुहैया कराए जाएंगे. यह त्रिभाषा से अतिरिक्त होगी. इसके अलावा राज्य की भाषा और आंचलिक भाषाओं के साहित्य को भी शामिल किया जाएगा, जैसे खड़ी बोली, अवधी, ब्रज, मैथिल और उर्दू. प्रसंगवश उल्लेखनीय है कि हमने हिंदी भाषी क्षेत्र में दक्षिण की किसी भाषा को अब तक आने नहीं दिया, इसीलिए दक्षिण में हिंदी का विरोध होता है.

वैज्ञानिक सोच वाली शिक्षा

शिक्षाक्रम के सभी दायरों में, विज्ञान और परंपरागत गैर विज्ञान विषयों में भी प्रमाण आधारित चिंतन और वैज्ञानिक विधियों को शामिल किया जाएगा ताकि विश्लेषणात्मक, तार्किक, तर्कसंगत और मात्रात्मक चिंतन को बढ़ावा मिले. यह सही है कि वैज्ञानिक सोच वाली शिक्षा की अनिवार्यता है, लेकिन जिस सरकार को इसपर काम करना है, उसके बहुत से मंत्रियों ने समय-समय पर विज्ञान विरोधी मानसिकता प्रकट की है.

नीतिपरक और नैतिक चिंतन

नीतिपरक और नैतिक चिंतन एक अच्छा इंसान बनने अच्छा चरित्र विकसित करने, एक उत्पादक जीवन जीने और समाज को सकारात्मक योगदान देने के लिये तैयार करता है. इसके लिए बच्चों को धोखा, हिंसा, विचारों की चोरी, असहिष्णुता, सहनशीलता, आदि मुद्दों के संदर्भ में नैतिक शिक्षा दी जाएगी. क्षमा, शांति, ईमानदारी, सत्य, अहिंसा, राष्ट्रप्रेम जैसे मूल्य और नीतिपरक सिद्धांतों पर केंद्रित विषय वस्तु को भाषा, साहित्य, इतिहास और सामाजिक विज्ञान विषयों में शामिल किया जाएगा. ये सभी गुण मनुष्यता और शिक्षा के अनवार्य गुण हैं, लेकिन जिस तरह की सरकार है, वह इनमें कितनी दिलचस्पी लेगी, यह देखना दिलचस्प होगा.

संवैधानिक मूल्यों का विकास

नई शिक्षा नीति का उद्देश्य है लोकतांत्रिक सोच, स्वतंत्रता, समानता, न्याय, निष्पक्षता के प्रति प्रतिबद्धता, विभिन्नता, बहुलता और समावेश जैसे मूल्यों को अपनाना. मानवता और भाईचारे का भाव, सार्वजनिक संवाद के प्रति प्रतिबद्धता, शांति, संवैधानिक तरीकों से सामाजिक कर्म करना. यहां भी संदेह ही पैदा होता है कि सरकार की सोच के साथ इसकी पटरी कैसे बैठेगी? सरकार की सोच लोकतांत्रिक कहां है? समानता की भावना होती तो दलितों पर अत्याचार क्यों होते? न्याय भावना होती तो महान लेखकों और विचारकों के हत्यारों को सजा मिल गई होती. मॉब लिचिंग के प्रकरण नहीं होते. विभिन्नता और भाईचारे के प्रति आदर होता तो अल्पसंख्यकों के खिलाफ घृणा नहीं फैलाई जाती.

इस तरह प्रत्येक शिक्षा नीति के आदर्श प्रारूपों की तरह ही इसका प्रारूप भी है. समस्याएं और संदेह भी. आशा की जानी चाहिए कि एक बेहतर शिक्षा व्यवस्था हमारे मुहाने पर खड़ी है.


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