अब नयनतारा सहगल के समर्थन में नितिन गडकरी?


 

ऐसा लगता है कि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी बीजेपी में अपनी ‘अलग’ और ‘स्वीकार्य’ छवि बनाने की कोशिशों में ढीला पड़ना नहीं चाहते. महाराष्ट्र के यवतमाल में 92वें वार्षिक मराठी साहित्य सम्मेलन के समापन समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि राजनेताओं को साहित्य और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए.

अपनी इस बात से उन्होंने निश्चय ही अंग्रेजी लेखिका नयनतारा सहगल को इस समारोह में निमंत्रण के बावजूद नहीं शामिल किए जाने पर इशारा किया है. महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने मराठी साहित्य सम्मेलन में नयनतारा सहगल को बुलाए जाने का विरोध किया था. इसके बाद आयोजकों ने उन्हें इस समारोह का हिस्सा नहीं बनाया.

गडकरी ने जोड़ा कि राजनीति की अपनी सीमाएं होती हैं और राजनेताओं को साहित्य और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. उन्होंने कहा कि इन क्षेत्रों में हस्तक्षेप नहीं करने का मतलब ये नहीं कि आप साहित्य और शिक्षा की बड़ी शख्सियतों से कोई रिश्ता ही न रखें.

अपनी बात के लिए उन्होंने दुर्गा भागवत और पी एल देशपांडे जैसे लेखकों का सन्दर्भ लिया और कहा कि आपातकाल के दौरान उन्होंने लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए संघर्ष किया. इन लेखकों को इस बात से फर्क नहीं पड़ता था कि सत्ता में कौन आने वाला है. उनके अन्दर राज्यसभा का सदस्य बन जाने जैसी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं थी.

साफ है कि गडकरी का इशारा नयनतारा सहगल को इस समारोह में बुलाए जाने की वजह से पैदा हुए विवाद की ओर था. गडकरी के इस बयान की अहमियत इसलिए भी है क्योंकि नयनतारा सहगल लेखिका होने के साथ-साथ अपनी विशिष्ट राजनीतिक और पारिवारिक पृष्ठभूमि के लिए भी जानी जाती हैं.

वे भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की भांजी हैं और कुछ ही साल पहले उन्होंने भारत में बढ़ रही सांस्कृतिक कट्टरता के विरोध में अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिया था.

वहीं, कुछ दिन पहले नितिन गडकरी ने भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की भी प्रशंसा की थी.


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