किसानों के खिलाफ है मोदी सरकार का बजट: राष्ट्रीय किसान समिति
राष्ट्रीय किसान समन्वय समिति ने मोदी सरकार के बजट को गांव, गरीब, किसान और आदिवासी विरोधी बताते हुए ये प्रेस विज्ञप्ति जारी की है:
जनता की जानकारी के अभाव का लाभ उठाकर किसानों के हितों के विरुद्ध बजट को प्रधानमंत्री और सत्तापक्ष द्वारा गांव, गरीब, किसान के लिए बजट कहना और उसे प्रचारित करना देश के लिए बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है. बजट में फसलों के दाम के लिए कोई प्रावधान ना करके किसान को पूरी तरह से बाजार भरोसे छोड़ा गया है. बजट में इंन्फ्रास्ट्रक्चर और कॉरपोरेट खेती के लिए किसान, आदिवासियों की जमीन और अन्य प्राकृतिक संसाधन तेज गति से छीनने के लिए प्रावधान किए गए हैं. यह बजट और उसकी दिशा किसान को खेती छोड़ने के लिए मजबूर करने की दिशा में बढ़ाया गया कदम है. जो किसानों की दुर्दशा, आत्महत्याओं और आर्थिक विषमता को बढ़ाने वाला साबित होगा.
भारत का 2019 का वार्षिक बजट में कुल व्यय 27 लाख 86 हजार 349 करोड़ रुपए का है. जिसमें से कृषि प्रधान कहे जानेवाले देश में खेती पर निर्भर 60 फीसदी किसानों लिए वार्षिक बजट व्यय में मात्र 1 लाख 13 हजार 800 करोड़ रुपए याने की कुल बजट की मात्र 4 फीसदी यानी कि प्रति किसान परिवार सालाना केवल 8000 रुपए आवंटित किए गए हैं. इसमें से किसान सन्मान राशि को वजा किया जाए तो बजट राशि केवल 38800 करोड़ रुपए यानी कि कुल बजट के मात्र 1.4 फीसदी है.
किसान सन्मान योजना में किसान परिवार को प्रतिमाह 500 रुपए देने के लिए 75000 करोड़ रुपए, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिए 14000 करोड़ रुपए, किसानों को अल्पावधि ऋण ब्याज सब्सिडी के लिए 18000 करोड़ रुपए, प्रधानमंत्री किसान पेंशन योजना के लिए 900 करोड़ रुपए, प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण योजना के लिए 1500 करोड़ रुपए, प्रधानमंत्री कृषि सिंचन योजना के लिए 3500 करोड़ रुपए और अन्य मिलाकर कुल मात्र 1 लाख 13 हजार 800 करोड़ रुपए आवंटित किए गए है. किसान सन्मान योजना की राशि वजा करने के बाद किसानों के विविध योजनाओं के लिए मात्र 38 हजार 800 करोड़ रुपए रखे गए है. इसका अर्थ स्पष्ट है कि सरकार ने किसान के दूसरी योजना में से कम करके किसान सन्मान योजना में राशि दी है. इस राशि में भी किसानों से ज्यादा लाभ बीमा कंपनियों और बैंको को मिल रहा है. किसान सन्मान योजना के द्वारा किसानों की मासिक आय में केवल 500 रुपए की वृद्धि होगी जो किसान की आय दोगुनी करने की घोषणा से काफी दूर है.
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसानों को नही बल्कि बीमा कंपनियों को लाभ पहुंचा रही है. किसानों को अल्पावधि ऋण के लिए ब्याज सब्सिडी योजना में बैंक अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए आवंटित राशि का किसानों से ज्यादा गैर-किसानों के लिए उपयोग करती पाई गई है. प्रधानमंत्री किसान पेंशन योजना में 5 करोड़ किसानों के लिए मात्र 900 करोड़ रुपए रखे गए हैं. दूसरी योजनाओं का भी किसानों को कोई सीधा लाभ नही है. किसान को फसलों के दाम के लिए बाजार भरोसे छोड़ दिया गया है. फसलों को एमएसपी की गारंटी देने के लिए कोई प्रावधान नही है. वित्त मंत्री ने बजट भाषण में कहा कि किसान की आय दोगुनी करने के लिए अलग से बजट रखने जरुरत नही है. किसान की आय दोगुनी करने के लिए जिस जीरो बजट खेती की घोषणा की गई उसके लिए भी बजट में जीरो बजट रखा गया है लेकिन रासायनिक खाद निर्माण कंपनियों के लिए 79996 करोड़ रुपयों की सब्सिडी का प्रावधान किया गया है.
बजट और उसकी दिशा से स्पष्ट है कि सरकार की नीति किसान को खेती छोड़ने के लिए मजबूर करना है ताकि इंफ्रास्ट्रक्चर और कॉरपोरेट खेती के लिए गांव, गरीब, किसान, आदिवासियों से उनकी जमीन और प्राकृतिक संसाधन छीनना आसान हो सके. सरकार ने प्रतिवर्ष इन्फ्रास्ट्रक्चर पर 20 लाख करोड़ रुपए के हिसाब से पांच साल के लिए 100 लाख करोड़ रुपयों का उद्दिष्ट निर्धारित किया है. यह राशि रियल इस्टेट, औद्योगिक गलियारे, व्यापारिक गलियारे, रेल गलियारे, सड़कमार्ग, जलमार्ग और पोर्ट के निर्माण के लिए किया जाएगा. यह सब गांव, गरीब, किसान, आदिवासियों के लिए नहीं है बल्कि इसके लिए आज से कई गुना अधिक गति से उनसे जमीन, जंगल, पानी, खनिज आदि छीन लिए जाएंगे. नीति आयोग ने कहा था की अगर किसानों की संख्या आधी होगी तो बचे हुए किसानों की आय अपने आप दोगुनी होगी. सरकार का बजट इसी तरफ इशारा कर रहा है.
आठवां वेतन आयोग बनाने की तैयारी के साथ 1 करोड़ केंद्रीय कर्मचारीयों के लिए प्रतिवर्ष 54,6296 करोड़ रुपयों का प्रावधान है. देश के रक्षा के लिए 3 लाख करोड़ रुपयों का बजट रखा गया है लेकिन जिस जनता से देश बनता है, उन्हें गरीबी का जीवन जीने के लिए या मरने के लिए छोड़ दिया गया है.
महात्मा गांधी ने आजाद भारत को शोषण मुक्त समाज व्यवस्था बनाने के लिए स्वदेशी जीवन मार्ग बताया था. लेकिन आज मेक इन इंडिया के रास्ते यहां के सस्ते श्रम, प्राकृतिक संसाधन और पर्यावरण का उपयोग दुनिया के अमीरों और कारपोरेट्स के लिए करने के लिए नीतियां बनाकर गांधीजी के विचारों को हमेशा के लिए तिलांजलि दी गई है.