अब खेल नहीं एक उद्योग है क्रिकेट


Now the game cricket is an industry

 

नब्बे के दशक की शुरुआत से पहले तक भारत में जो खेल घाटे का सौदा हुआ करता था अचानक देश का धर्म कहलाने लगा और देश में उसको नियन्त्रित करने वाला खेल बोर्ड दुनिया का सबसे अमीर खेल बोर्ड बन गया है. उद्योगपतियों से लेकर राजनेताओं तक की इस खेल में कूदने की बेताबी यह रेखांकित करती है कि यह खेल अब कितने बड़े कारोबार में बदल चुका है. देश, टीम और टीम भावना की परिभाषाएं बदल चुकी हैं. अब यहां खेल की जगह है आय बढ़ाने के गणित और पेशेवर अंदाज और साथ ही मुनाफा बढ़ाने के लिए मोल भाव के व्यवहार की व्यवसायिक संस्कृति.

भारत में क्रिकेट सामाजिक परिवर्तन का प्रेरक रहा है. क्रिकेट की इस भूमिका की पृष्ठभूमि असल में भारत की औपनिवेशिक गुलामी से जुड़ी है. ब्रिटेन का गुलाम रहे एक देश के आमजन गोरो और अभिजात्यों के खेल में दक्षता हासिल करते हुए बार-बार फिरंगियों को न केवल हराया बल्कि खेल पर एकाधिकारिक नियंत्रण भी कायम किया. आम आदमी की जीत और गुलामी की वेदना का इससे शांतिपूर्ण और जनवादी प्रत्युत्तर क्या होगा. गुलामी की पीड़ा से प्रतिकार की भावना के इस ऐतिहासिक उच्चारण को हम हिन्दी सिनेमा की लगान जैसी फिल्म में देख सकते हैं.

इस अभिव्यक्ति की सफलता की गूंज भारतीय सिनेमा की दुनिया से लेकर पश्चिम के ऑस्कर अवार्ड समारोह तक में सुनाई दी. लेकिन वर्तमान दौर में सामाजिक परिवर्तन का प्रेरक यह खेल अपनी मूल प्रेरणा बदल चुका है. कभी राष्ट्रीय टीम में खेलने के सम्मान की भावना से प्रेरित हाने वाले खिलाड़ी आज क्रिकेट में पैसे की अधिकता से प्रेरित हो रहे हैं और पैसे की यह अधिकता देशीय सीमाओं को भी तोड़ रही है.

भारतीय क्रिकेट में इस बदलाव का मोड़ 1983 के विश्व कप में भारत की जीत और उसके बाद 1987 के विश्व कप की भारतीय उप महाद्वीप में मेजबानी था. जिसने ना केवल भारत बल्कि पूरे भारतीय उप महाद्वीप में क्रिकेट को नया मुकाम दिया. लेकिन क्रिकेट के इस व्यवसायिकरण का सबसे ज्यादा श्रेय बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष जगमोहन डालमिया को जाता है.
नब्बे के दशक की शुरुआत में इन्ही जगमोहन डालमिया और आई एस बिन्द्रा की व्यवसायिक दृष्टि के कारण बीसीसीआई दुनिया का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड बन सका और बीसीसीआई की यह अमीरी हर साल के साथ बढ़ती ही जाती है. याद रहे क्रिकेट की अंतरराष्ट्रीय संस्था आईसीसी की आमदनी का 70 प्रतिशत बीसीसीआई से ही आता है. एक आंकड़े के अनुसार 2007-08 में बोर्ड की कुल अनुमानित दौलत 1000.41 करोड़ रुपये थी जबकि 2006-07 में 651.81 करोड़ रुपये और 2005-06 में 303.15 करोड़ रुपये थी.

नब्बे के दशक की शुरुआत में जहां बोर्ड ने घाटे से निकल कर लाभ कमाने की राह पकड़ी वहीं 2008 में आईपीएल की नई संस्कृति के साथ ही क्रिकेट बोर्ड केवल पैसा कमाने की होड़ का ठिकाना बन कर रह गया है. हालांकि इस आईपीएल के शुरू होने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है. 2007 में अगले दो विश्व कपों के प्रसारण अधिकारों की दौड़ से बाहर होने के बाद जी टीवी के मालिक सुभाष चन्द्रा ने देश में 100 करोड़ के निवेश के साथ क्रिकेट के नए फॉरमेट 20-20 के लिए बीसीसीआई के सामानांतर आईसीएल के नाम से एक नई क्रिकेट लीग बनाने की घोषणा कर डाली. इस घोषणा से भी रोचक बात यह है कि इस नई लीग का मुखिया बनाने के लिए उन्होंने भारतीय क्रिकेट इतिहास के लीजेंड कपिल देव को चुन लिया. बड़ी मुश्किलों से घाटे से निकले बीसीसीआई के लिए यह एक खतरे की घंटी थी. इसीलिए बीसीसीआई ने इंगलिश प्रीमियर लीग की तर्ज पर एक क्रिकेट लीग आईपीएल की घोषणा कर डाली और उस पर सफलता की गारंटी यह कि क्रिकेट की दुनिया के सभी प्रचलित एवं स्थापित बड़े नाम इस नई लीग की नीलामी में शामिल हो गए.

सचिन तेंदुलकर की उस दौर की आमदनी का लेखा जोखा देखें तो देश के उद्योगपतियों से लेकर स्थापित राजनेताओं तक सबकी आय उनके सामने बौनी नजर आ रही थी. जहां आईपीएल की शुरुआत के समय सचिन की आय 30 डॉलर प्रति मिनट थी तो वहीं मुकेश अंबानी 10 डॉलर प्रति मिनट और अमिताभ बच्चन आठ डॉलर प्रति मिनट के साथ सचिन से बहुत पीछे थे.

सचिन की यह आमदनी उनकी प्रतिभा का मूल्य था और मिलने वाले इस मूल्य के लिए वह सरकार को बड़ी संजीदगी से उचित कर भी अदा करते रहे थे. परन्तु क्रिकेट के तथाकथित प्रचार प्रसार के लिए काम करने वाली बीसीसीआई अधिकारिक तौर पर एक गैर सरकारी संगठन है जो बड़ी कर छूट का फायदा उठाती है. इसके अलावा क्रिकेट को दौलत और ग्लैमर की नई चकाचौंध में धकेल देने वाली बीसीसीआई द्वारा गठित आईपीएल तो कोई पंजीकृत संस्था भी नहीं थी.

आईपीएल को शुरू करते हुए इससे होने वाली अनुमानित आय को साढ़े चार हजार करोड़ माना गया था. तो वहीं पिछले सीजन 2018 में एक अनुमान के अनुसार अब आईपीएल का ब्रांड मूल्य 6.3 अरब अमेरिकी डॉलर है. इसके अलावा सभी टीमों का भी अपना एक अलग ब्रांड मूल्य है जैसे नीता और मुकेश अंबानी की मुम्बई इंडियन्स और शाहरुख खान और जूही चावला की कोलकत्ता नाइट राइडर्स दोनों 10 करोड़ डॉलर की कीमत वाले क्लब में हैं तो वहीं एन श्रीनिवासन के स्वामित्व वाली चैन्नई सुपर किंग्स भी उनके बेहद करीब 9.8 करोड़ डॉलर की वैल्यू वाले क्लब में शामिल टीमें हैं.

इसके बाद सन टीवी वाले कलानिधि मारन की हैदराबाद सनराईजर्स 7 करोड़, सज्जन जिंदल और जी मल्लिकार्जुन राव की दिल्ली कैपिटल्स 5.2 करोड़ और प्रीति जिंटा, नेस वाडिया, मोहित बर्मन, पृथ्वीराज सिंह ओबेराय और करन पॉल की पंजाब इलेवन 5.2 करोड़ और मनोज बडाले की राजस्थान रॉयल्स 4.3 करोड़ डॉलर मूल्य की टीमें हैं.
इसके अलावा आईपीएल के प्रसारण अधिकारों का भी अपना एक बड़ा व्यवसाय है. 2018 के लिए आईपीएल के ग्लोबल प्रसारण अधिकार 255 करोड़ में स्टार इंडिया ने खरीदे तो वहीं डिजिटल ग्लोबल मीडिया प्रसारण अधिकार 60 करोड़ रुपये में फेसबुक के पास हैं, आईपीएल का यह ग्लोबल प्रसारण दुनिया के लगभग बीस देशों में देखा जाता है. अब स्टार इंडिया अपने मुनाफे को बढ़ाने के लिए देश की विभिन्न भाषाओं में प्रसारण की योजना पर काम कर रहा है.

वहीं इस आधिकारिक व्यवसाय के अलवा अथवा कहें तो इससे भी बड़ा आईपीएल पर सट्टे का बाजार है. सट्टे का यह बाजार और इसमें होने वाली आधिकारिक कमाई से कईं गुणा ज्यादा है. माना जाता है कि मौजूदा दौर में प्रत्येक मैच में 15 से 20 हजार करोड़ का सट्टा लगाया जा रहा है. कितने रन बनेंगे, कौन टीम जीतेगी और हार जीत का अंतर कितना होगा से लेकर बल्लेबाजों, गेंदबाजों से लेकर फिल्डर्स के व्यक्तिगत प्रदर्शन तक सभी सटोरियों के भाव के दायरे में होते हैं. इस सट्टे के बाजार की आमदनी का अंदजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सट्टे के लालच से टीम प्रबंधन के लोगों से लेकर बड़े-बडे सेलिब्रिटीज तक भी नहीं बच पाए हैं. जहां एक तरफ चैन्नई सुपर किंग और राजस्थान रॉयल्स जैसी टीमों को दो सीजन के लिए निलंबन की सजा का सामना करना पड़ा तो वहीं श्रीसंत जैसे गेंदबाज और चैन्नई सुपर किंग के मालिक श्रीनिवासन के दामाद मय्यपन्न और विंदू दारा सिंह को सट्टेबाजी में लिप्त रहने के लिए सजा भोगनी पड़ी और वहीं सलमान खान के भाई अरबाज खान, राजस्थान रॉयल्स के मालिक राज कुन्द्रा को भी जांच का सामना करना पड़ा था.

बहरहाल, क्रिकेट के इस तरह कारोबार बन जाने से क्रिकेट का कितना फायदा हो पायेगा यह तो कहना मुश्किल है परंतु कभी देश में सामाजिक-राजनीतिक प्रेरक की तरह काम करने वाला खेल और उसके खिलाड़ी महज कॉरपोरेट उत्पादों के विज्ञापन बनकर रह गए हैं.

खेल किस तरह कॉरपोरेट के मुनाफे का साधन बन सकता है और मुनाफे के लिए कॉरपोरेट किस तरह खेल का स्वरूप बदलता है वह आईपीएल के खिलाड़ियों की हर साल बदलती पोशाक से जाहिर हो जाता है. यदि आप आईपीएल-2019 के लिए मैदान में खेलने वाले खिलाड़ियों की जर्सी को देखेंगे तो आपको खिलाड़ी की पीठ पर लिखा उसका नाम ढूंढने के लिए एक क्विज जीतने के बाराबर कसरत करना पड़ेगी. पिछले सालों में खिलाड़ी का नाम जर्सी पर नीचे और नीचे सरकता गया है और उसके नाम की जगह विभिन्न कॉरपोरेट के ब्रांड ने ले ली है और अब खिलाड़ी का नाम उसकी जर्सी पर दिखाई देना मुश्किल है परंतु उसकी पोशाक पर हेलमेट पर, बैट पर, दस्तानों पर, पैड पर और जर्सी पर सामने लिखे विभिन्न ब्रांडों के नाम आसानी से पढ़े जा सकते हैं.

खिलाड़ियों के पहनने के कपड़े से लेकर खाने, पीने तक सभी सामान किसी ना किसी कंपनी द्वारा प्रायोजित अथवा कहें तो वह किसी ना किसी उत्पाद का विज्ञापन भर होते हैं. क्रिकेट के इस आईपीएल संस्करण को देखकर लगता है कि मानो कभी गुलामी से आजादी का प्रतीक एक खेल आज कॉरपोरेट गुलामी की मिसाल भर बनकर रह गया है.


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