न्यूनतम आय योजना: गरीबी से मुक्ति का कारगर विकल्प


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भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 के चुनाव के समय अपनी पार्टी की सरकार आने पर दो करोड़ रोजगार हर साल देने का वादा किया था. 2019 में देश के बेरोजगारों के हाथ उससे भी ज्यादा खाली हैं, जितने की वे 2014 में थे.

इसका कारण यह है कि इतनी बड़ी तादाद में रोजगार उपलब्ध कराना संभव ही नहीं है. भारत 126 करोड़ से भी ज्यादा की आबादी वाला देश है और आबादी लगातार बढ़ती ही जा रही है. यूनाईटेड नेशंस पापुलेशन फंड की 2019 की रपट के अनुसार भारत की जनसंख्या 1.2 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है. इसलिए आबादी के अनुपात में रोजगार पैदा होने की संभावना को आनुपातिक रूप से निरंतर घटते जाना है. तब सवाल यह उठता है कि सरकारों के पास रोजगार संबंधी इस विकराल चुनौती से जूझने का आखिर विकल्प क्या है?

इसका एक आत्मघाती तरीका तो यही है कि आंधी के भय से डरे हुए शुतुरमुर्ग की तरह रेत में अपना सिर गड़ा लिया जाए, जैसा कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे हैं. दूसरा तरीका यह हो सकता है कि चुनौती को ही नज़रअंदाज करते हुए रोजगार के मुद्दे को भूला दिया जाए और तीसरा तरीका यह है कि बीजेपी सरकार की तरह युवाओं के साथ छलावा करने के घोखेबाज खेल को जारी रखा जाए. स्वाभाविक है कि इन तीनों तरीकों को किसी भी लोकतांत्रिक देश की कोई भी जनाभिमुखी पार्टी नहीं अपना सकती, क्योंकि इस तरह तो वह अपने ही देश के साथ विश्वासघात कर रही होगी.

इसके बरक्स कांग्रेस ने एक ज्यादा वैज्ञानिक, आर्थिक तथा व्यवहारिक स्तर पर कहीं ज्यादा संभावनाशील योजना के तौर पर ‘न्यूनतम आय योजना’ को देश के सामने प्रस्तुत करने में कोई कोताही नहीं की. निर्धनों के भविष्य के लिए यही एक मात्र यथार्थवादी विकल्प भी है. सच्चा और खरा.

गौर करने वाली बात यह है कि जैसे ही कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में न्यूनतम आय योजना को घोषित किया, प्रधानमंत्री सहित सत्ताधारी दल के तमाम नेताओं की फौज इसकी मुखालफत करने टूट पड़ी. इतना ही नहीं, पत्रकारों और विश्लेषणकर्ताओं की एक पूरी जमात ही इसे असंभव करार देने के लिए अपने अस्त्र-शस्त्रों सहित मैदान में आ गयी. जिस बीजेपी ने 2014 के अपने घोषणा पत्र में दो करोड़ रोजगार हर साल उपलब्ध कराने का वादा करके उसे भुला रखा है, वही बेशर्मी के साथ योजना को अव्यवहारिक बता रही है. खास तरह के वीर-पत्रकारों की एक जमात बीजेपी के दो करोड़ रोज़गार उपलब्ध कराने, अच्छे दिन लाने, विदेशों में जमा काला धन वापस लाने और हर नागरिक के खाते में 15 लाख जमा कराने के वादों की असफलता पर अपने होंठ सिले हुए है, पर न्यूनतम आय योजना ने उसके पेट में मरोड़ें पैदा कर दी हैं.

‘न्याय’ की परख

बेहतर होगा कि न्यूनतम आय योजना के व्यवहारिक और सफलतापूर्वक लागू किए जाने की संभावना को परख लिया जाए. इसके लिए सबसे पहले इसी साल ‘ऑक्सफॉम इंटरनेशनल’ नामक संस्थान द्वारा ‘वर्ल्ड इकॉनामिक फोरम’ में पेश की गयी एक रिपोर्ट पर नज़र डालना आवश्यक होगा. इसके अनुसार भारत में अरबपतियों की संपदा पिछले साल प्रति दिन 2200 करोड़ रुपये की रफ्तार से बढ़ी है. 2017 के साल में हमारे देश में कुल 101 अरबपति थे, पर उनकी संख्या बढ़कर एक साल बाद ही 119 हो चुकी है. रिपोर्ट बताती है कि जो सबसे ऊपर की श्रेणी वाले एक प्रतिशत अमीर हैं, उनकी संपदा में 39 फीसदी का इजाफा हुआ है, जबकि देश की 65 करोड़ आबादी यानी आधी जनसंख्या की संपत्ति मात्र तीन प्रतिशत ही बढ़ पायी है.

भारत के सबसे ऊपर के नौ अमीरों के पास आज जितनी संपत्ति है, वह देश की 50 प्रतिशत आबादी की संपत्ति के बराबर है. 10 फीसदी अमीरों के पास देश की कुल संपत्ति का 77.4 प्रतिशत हिस्सा पहुंच गया है, जबकि 60 प्रतिशत आबादी के पास मात्र 4.8 प्रतिशत संपत्ति ही है. इसके अलावा यह भी एक तथ्य है कि देश की 10 प्रतिशत आबादी 2003 से ही लगातार कर्जदार बनी हुई है, अर्थात् उसके पास अपने जीने-खाने के लिए भी आमदनी के पर्याप्त स्रोत नहीं हैं.

अर्थशास्त्रियों द्वारा पिछले दस सालों के अरसे को आर्थिक विकास के लिए विश्व में सबसे प्रतिकूल समय करार दिया गया है, परंतु अचरज वाली बात तो यह है कि इस प्रतिकूल समय में भी अरबपतियों की संख्या बढ़कर दोगुनी हो गयी. 2008 में दुनिया में 1100 अरबपति हुआ करते थे, परंतु 2018 तक उनकी संख्या बढ़कर 2208 हो गयी है. इसका तात्पर्य है कि आर्थिक बदहाली के सालों में गरीब और मध्यवर्ग ही बरबाद हुआ करता है, जबकि अमीर वर्ग तब भी मजे में रहता है.

दुनिया के अरबपतियों की संपदा तो 12 प्रतिशत बढ़ गयी, पर संसार की आधी आबादी की संपदा बढ़ने की बजाय, 11 प्रतिशत घट गयी. इससे भी ज्यादा चौंकाने वाला तथ्य तो यह है कि जिनके पास सबसे कम संपत्ति है, ऐसे मात्र 10 प्रतिशत लोग कुल टैक्स का 49 फीसदी हिस्सा सरकार को चुकाते हैं, जबकि 10 प्रतिशत अरबपतियों से मात्र 34 प्रतिशत टैक्स ही देश को मिलता है. मुकेश अंबानी के पास जितनी संपत्ति है, उतना तो केंद्र सरकार और देश की समस्त राज्य सरकारों का मिला-जुला स्वास्थ्य, जल आपूर्ति और स्वच्छता का बजट होता है.

न्यूनतम आय योजना को ऐसे जानिए

देश के लिए यह बेहद संतोष और सुख की बात है कि भारत के कॉर्पोरेट जगत की नागरिक विरोधी एकजुटता से कांग्रेस डर नहीं गयी, बल्कि और ज्यादा निडरता के साथ वह आम आदमी के पक्ष में अपने को पेश करते हुए न्यूनतम आय योजना लेकर आयी. यह पिछले जन-हितैषी कानूनों के क्रम में ही सबसे ज्यादा क्रांतिकारी और युवाओं की पक्षधरता वाला एक और अगला कदम है. इस तरह कांग्रेस ज्यादा मुस्तैदी के साथ जनता के पक्ष में अपने को प्रस्तुत करने में कामयाब हुई है.

कांग्रेस इसके पहले 2004 में संसार की सबसे बड़ी रोजगार योजना ‘मनरेगा’ का सफलतापूर्वक क्रियान्वयन करके एक अनोखा उदाहरण पेश कर चुकी है. इसीलिए उसकी न्याय योजना पर भी आम लोगों को पूरा भरोसा है. इसके तहत प्रत्येक गरीब के खाते में हर महीने छह हजार की रकम जमा की जाएगी. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस योजना के बारे में जनता को बताते हुए स्पष्ट किया है कि देश के 20 प्रतिशत सबसे ज्यादा गरीब परिवारों को सालाना 72 हजार रुपये न्यूनतम आय के तौर पर दिए जाएंगे. इससे पांच करोड़ परिवारों के 25 करोड़ लोगों को लाभ मिलेगा. यह योजना तब तक जारी रहेगी, जब तक वह परिवार 12 हजार रुपया महीना कमाने नहीं लग जाता.

उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस ने मनरेगा लाकर गरीबी पर पहला प्रहार किया था और वह देश के 14 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में सफल रही. यह योजना निर्धनता पर दूसरा बड़ा प्रहार है, जिससे 25 करोड़ लोगों को गरीबी से छुटकारा दिलाया जा सकेगा.

न्याय के लिए यहां से आएगा धन

जो लोग बड़े भोलेपन के साथ यह सवाल करते हैं कि इस योजना के लिये आखिर धन कहां से आयेगा, तो उन्हें जान लेना चाहिये कि 5 करोड़ परिवारों के लिये हर साल लगभग 3.6 लाख करोड़ रुपयों की ही ज़रूरत होगी. इसके लिए

– देश के शीर्ष नौ अमीरों पर ही यदि एक प्रतिशत टैक्स बढ़ा दिया जाए, तो उनकी 11.66 लाख करोड़ की संपत्ति से देश को 0.1166 हजार करोड़ रुपये मिलेंगे.

– अर्थशास्त्री भरत झुनझुनवाला बताते हैं कि अकेले खाद पर ही 500 लाख करोड़ रुपये की सब्सिडी दी जा रही है. नकद धन देने पर इस तरह की अनेक सब्सिडियों की आवश्यकता नहीं रहेगी.

– अमीर घरानों के नये वारिसों को तो सारी संपत्ति बिना मेहनत और जोखम के ही उत्तराधिकार में प्राप्त होती है. यदि उन पर 5 प्रतिशत उत्तराधिकार टैक्स लगा दिया जाए, तो 0.583 लाख करोड़ रुपये देश को हासिल होंगे.

‘न्याय’ के बारे में दुनिया के मशहूर अर्थशास्त्री थॉमस पिकेट्टी का कहना है, “यह सबसे बढ़िया समय है जब जाति-संघर्ष वाली राजनीति को आय और धन वितरण वाली राजनीति में बदला जा सकता है. हम कांग्रेस और अभिजीत बैनर्जी के साथ विमर्श कर रहे हैं कि इसमें कितना व्यय होगा और इसे कैसे अमल में लाया जाएगा. मेरा मत है कि न्याय योजना का भव्य स्वागत होगा.

वहीं आरबीआई के पूर्व गर्वनर रघुराम राजन का मानना है, “यदि न्यूनतम आय गरंटी योजना को ठीक तरीके से क्रियान्वित किया गया तो, वह चीजों को क्रांतिकारी तरीके से बदल देगी. इस योजना में यह संभावना है कि वह सूक्ष्म स्तर पर आय वृद्धि के रास्ते बना देगी. हमारे सामने अवसर है कि हम गरीबी को प्रभावी तरीके से मिटा सकें.

गरीब विरोधियों के कुतर्क

जो लोग गरीबों को मिलने वाले लाभों से बिदकने की बीमारी से ग्रस्त हैं, परंतु अमीरों की जेबों में हजारों करोड़ रुपयों के चले जाने पर भी उनके माथे पर शिकन तक नहीं आती, ऐसे लोगों ने इस योजना पर जो कुतर्क दिए हैं, उन्हें जानकर आप को उन पर दया आएगी. दया इसलिए, क्योंकि ये बेचारे गरीब विरोधी कुंठा से ग्रस्त हैं. खुद को लाखों रुपये महीने चाहिए, परंतु निर्धन को छह हजार यानी 200 रुपया रोज मिल जाएगा, तो उनके संसार में कयामत आ जाएगी.

एक टीवी न्यूज चैनल के एडीटर इन चीफ फरमाते हैं कि राजनीतिक दल गरीबों को मुफ्त में धन मुहैया कराकर उनका स्वाभिमान ख़त्म कर रहे हैं. एक और पत्रकार महोदय बचकाना तर्क देते हुए कहते है कि इससे लोग आलसी हो जाएंगे.

एक समाचार पत्र ने कांग्रेस मेनिफेस्टो रियलटी टेस्ट ही कर डाला. यही अखबार प्रत्येक भारतीय के खाते में 15 लाख जमा कराने और हर साल दो करोड़ नौकरियों का वादा करने वाली पार्टी का रियलटी टेस्ट करना भूल जाता है. पांच सर्वे संस्थाएं मिलकर एक प्री-पोल सर्वे करती हैं और बताती हैं कि न्यूनतम आय योजना के बारे में 52 प्रतिशत लोगों को जानकारी नहीं है.

केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली का कहना है कि ‘कांग्रेस कभी भी गरीबी हटाने के लिए कोई ठोस नीति नहीं ला पायी.’ जेटली जैसे लोगों के लिए ही गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है- “मूंदहु आंख कतहुं कछु नाहीं.” आंख मूंद लेने वाले के लिए कहीं कुछ नहीं होता. सच तो यह है कि न्यूनतम आय योजना ही आज इतनी बड़ी आबादी वाले हमारे देश भारत के लिए एक व्यवहारिक और बदलाव लाने वाली योजना है.


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