मनमोहन को नेता मान दावा ठोकने की तैयारी रखे विपक्ष!


pakistan to invite manmohan singh on kartarpur inaugration

 

विपक्ष से अपील. एग्जिट पोल से नर्वस न हो. लोकतंत्र में, जनता में विश्वास रखें. ईवीएम मशीनों की निगरानी, काउंटिग के वक्त चुस्ती में ढील न आने दे. जान ले विरोधी की शक्ति को हर चरण में मनोवैज्ञानिक दबाव से हराने की रामायण के बाली वाली मोदी-शाह की रणनीति का एग्जिट पोल भी एक हिस्सा है. मोदी-शाह एग्जिट पोल के झूठ से छोटी पार्टियों टीआरएस, जगन कांग्रेस आदि को जाल में फंसाने का दांव चलेगें.

इस सबकों समझते हुए विपक्षी नेताओं -पार्टियों को राष्ट्रपति भवन के सामने अपने नेता को पेश करने की तैयारी पर फोकस रखना चाहिए. अब ज्यादा जरूरी है कि विरोधी पार्टियां, नेता नरेंद्र मोदी के हर सूरत में शपथ के माहौल को बनाने की तैयारी के काउंटर पर फोकस बनाएं. हां, लोकसभा त्रिशंकु आ रही है. अमित शाह के पहले दिन से 300-300 के राग में बने एग्जिट पोल को मीडिया के अधोपतन का महज एक उदाहरण मान उसकी अनदेखी करनी चाहिए. नर्वस हो कर हाथ खड़े नहीं कर देने चाहिए. विपक्ष को तुरंत अपना नेता तय कर 23 मई बाद की मोदी-शाह की चालबाजियों का जवाब बनाना चाहिए.

आज मंशा और साफ हुई कि नतीजों के तुरंत बाद नरेंद्र मोदी राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने मेंरत्ती भर देरी नहीं करेंगे. राष्ट्रपति भवन पूरी तरह नरेंद्र मोदी के बैठाए कारिंदों, वफादार अफसरों के कब्जे में है. नरेंद्र मोदी-अमित शाह ने हर तरह का माइक्रो प्रबंधन किया हुआ है. विपक्ष के लिए न राष्ट्रपति भवन का दरवाजा खुला है और न सुप्रीम कोर्ट का.

सो विपक्षी नेता अपने नेता को चुपचाप एक-दो दिन में तय करें. नेता तय कर उसके समर्थन केपत्र लेकर सभी विरोधी नेता राष्ट्रपति भवन तभी पहुंच जाएं जब नरेंद्र मोदी अपना दांवा करने जाएं. विपक्षी दलों के तमाम नेता इकठ्ठे हो कर समर्थन पत्र तैयार कर राष्ट्रपति से कहें कि शपथ के लिए उनके नेता याकि डॉ. मनमोहन सिंह (या एचडी देवगौड़ा भी हो सकते हैं)को न्योता जाए क्योंकि उनको समर्थन करने वाले बहुमत सांसदों की लिस्ट और दस्तखत दांवे के साथ सलंग्न हैं.

ऐसा तब संभव है जब शरद पवार, चंद्रबाबू नायडू, अखिलेश, शरद यादव आदि अरजेंसी, व्यावहारिकता, मोदी को रोकने के लिए पहले उनकी शपथ नहीं होने देने के विपक्ष के निश्चय को बनवाने के लिए भागदौड़ तुरंत करें. सबमें सहमति बनाएं कि अस्थायी तौर पर, फिलहाल नरेंद्र मोदी के दावे को काउंटर करने के लिए विपक्ष के पास वह नेता है, जिसे नवीन पटनायक, चंद्रशेखर राव, कुमारस्वामी से ले कर लेफ्ट सभी मान लें.

विपक्ष अपने सामूहिक बहुमत का प्रदर्शन कर अस्थायी तौर पर अपना प्रधानमंत्री नियुक्त करा लें. हां, मोदी-शाह ने गोवा से ले कर अरूणाचल तक में साबित कर रखा है कि जैसे तैसे पहले शपथ ले ली तो फिर येन केन प्रकारेण बहुमत साबित कर देंगे.

अपनी थीसिस है कि शपथ के बाद नरेंद्र मोदी नामुमकिन को मुमकिन बनाते हुए लेफ्ट के पांच-छह सांसदों की पूरी संसदीय पार्टी, नवीन पटनायक के चुने गए तमाम सांसदों को तोड़ने, झारखंड में जेवीएम- जेएमएम के सभी सांसदों, मुलायम सिंह से समर्थन पत्र लेने से ले कर तेजस्वी के छह-आठ सांसदों को तोड़ने के वे सब हथकंडे, साम-दाम-दंड-भेद अपनाएंगे, जो आज नामुकिन लग सकता है लेकिन मोदी-शाह लोकसभा सदन में मुमकिन दिखला देंगे. मोदी-शाह व उनके लिए मरने वाले अंबानियों-अदानियों को कम न आंके. तभी तत्काल नेता चुनना, उसे बतौर प्रधानमंत्री पद के दावेदार राष्ट्रपति भवन में पेश करना विपक्ष की पहली जरूरत है.

उस नाते डॉ. मनमोहन सिंह इसलिए उपयुक्त हैं क्योंकि उनसे जनता का भरोसा बनेगा. वैश्विक स्तर पर मोदी विरोधियों की समझदारी, पक्के निश्चय की वह पॉजिटिव हवा बनेगी, जिसे राष्ट्रपति और संस्थाओं को भी गंभीरता से लेना होगा. नतीजों के तुरंत बाद का पहला संकट आर्थिकी का है. आर्थिकी रसातल में जाने वाली है.

उस नाते शेयर बाजार से ले कर वैश्विक राजधानियों में सभी तरफ भारत में स्थिरता, हालात सुधरने, संजीदा विपक्षी मंशा का मैसेज बनेगा. यह संभव नहीं कि नतीजे के एक-दो दिन के भीतर राहुल गांधी, मायावती, शरद पवार, चंद्रबाबू नायडू या ममता बनर्जी या चंद्रशेखर राव जैसे किसी नाम पर प्रधानमंत्री पद की सभी पार्टियों में सर्वानुमति बन जाए. विपक्ष में अनिश्चितता, खींचतान, मारामारी की बातों का मोदी-शाह तुरंत लाभ ले कर सकते हैं. विपक्ष को ऐसी नौबत बनने ही नहीं देनी चाहिए.

सवाल डॉ. मनमोहन सिंह की उम्र और सेहत का है. अपना तर्क है कि जब मलेशिया में सालों प्रधानमंत्री पद का अनुभव लिए और रिटायर हो गए 92 वर्ष की उम्र के डॉ. महातीर मोहम्मद की विपक्ष व पार्टी ने चुनाव बाद शपथ करवाई और उससे मलेशिया पटरी पर लौटा तो कांग्रेस या राहुल गांधी क्यों न नरेंद्र मोदी के मूर्खतापूर्ण राज से मुक्ति के लिए ऐसी अस्थायी व्यवस्था सोचें?

जो तीन-चार प्रधानमंत्री पद के दावेदार है उन्हें डॉ. मनमोहन सिंह के साथ अहम मंत्रालय या दो उप प्रधानमंत्रियों की शपथ जैसे फार्मूले से भी रास्ता निकाला जा सकता है. प्रधानमंत्री पद के दावेदार नेता भी डॉ. मनमोहन सिंह के भरोसे से आश्वस्त हो सकते हैं कि वे सिर्फ नरेंद्र मोदी से मुक्ति दिलवाने वाली अंतरिम व्यवस्था में अस्थायी तौर पर नेता पद संभाल रहे हैं.

विपक्ष के तमाम तरह के महत्वाकांक्षी नेताओं के गले में भी यह बात उतरी हुई होगी कि डॉ. मनमोहन सिंह सत्ता से चिपकने वाले नहीं हैं. उनमें सत्ता की ललक, भूख नहीं है. वे सामूहिकता में फैसला लेने, सबकी सुनने का स्वभाव लिए हुए हैं. और उनकी आर्थिक समझ से आर्थिकी की तात्कालिक गंभीर समस्याओं में जो भी फैसले होंगे वे दो-तीन महीने में ही परिवर्तन की ऐसी हवा बना देंगे, जिससे संयुक्त मोर्चा सरकार के अगले प्रधानमंत्री के लिए काम आसान बनेगा.

लब्बोलुआब कि राहुल गांधी, शरद पवार, मायावती, अखिलेश, ममता बनर्जी, शरद यादव, चंद्रबाबू नायडू फटाफट अपना सर्वमान्य नेता बनाएं. फिर उस नेता के नाम पर अधबीच खड़े नवीन पटनायक, चंद्रशेखर राव, जगन रेड्डी और लेफ्ट से बात करें. इतने पर ही नहीं रूकना चाहिए. साथ में नीतीश कुमार और उद्धव ठाकरे, बादल से भी बात करनी चाहिए. हां, चुनाव नतीजों के बाद एनडीए के ये नेता अपने को घायल हुआ महसूस कर सकते हैं. शरद पवार को इनसे भी तुंरत बात करनी चाहिए.

इस पूरे मामले में अखिलेश, शरद पवार और अहमद पटेल, शरद यादव को कमान संभाल सभी विपक्षी पार्टियों में फटाफट राय बनवानी चाहिए. अखिलेश यादव को यदि एम (मतलब मायावती, मुलायम सिंह) को भी प्रधानमंत्री बनाना है तो उससे पहले अनुभवी एम (मनमोहन सिंह) को अंतरिम प्रधानमंत्री बनवा लेना अधिक फायदेमंद होगा. उनके लिए या मायावती के लिए भी पहली जरूरत नरेंद्र मोदी-अमित शाह की राष्ट्रपति भवन, साम-दाम-दंड-भेद की व्यवस्थाओं सेशपथ लेने की योजना को पंक्चर करने की है.

हां, विपक्ष को यह सोच कर रणनीति बनानी चाहिए कि नरेंद्र मोदी ने दोबारा शपथ लेने के तमाम तरह के चाक चौबंद प्रबंध किए हुए हैं. उनमें पंक्चर तभी संभव है कि इधर नतीजे आएं और उधर विपक्ष की तैयारी हो कि नरेंद्र मोदी राष्ट्रपति भवन जाएं तो साथ-साथ वह भी अपना नेता चुन उसे बहुमत के आंकड़ों के साथ राष्ट्रपति के सामने पेश करे.

नया इंडिया से साभार


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