कुंभ: दिव्यता और भव्यता के पीछे का अंधेरा


plight condition of monks in kumbha mela

  Pic Credit- सुशील मानव

‘दिव्य कुम्भ भव्य कुम्भ’ जी हाँ इसी टैगलाइन के साथ आस्था के आंगन में बाज़ार सजा है. पर अखिल भारतीय सर्वब्राह्मण महासभा के अध्यक्ष पंडा कृष्ण बहादुर शर्मा मननगुरु के मुताबिक ये भव्यता, ये दिव्यता सिर्फ संगम स्थल से अरैल पुल तक है. सारा वीआईपी इंतजाम उधर ही है. जिसे सजाने-संवारने में अरबों रुपये पानी की तरह बहा दिए गए.

पंडा मननगुरु कहते हैं कि देश दुनिया के सारी मीडिया उस भव्यता और दिव्यता पर इतनी मंत्रमुग्ध है कि उसे कल्पवासियों की खोज-खबर तक लेने की ज़रूरत ही नहीं जान पड़ती, आप ही जाने कहां से भूल-भटककर आ गए हैं.

अपनी उपेक्षा के चलते सरकार से नाराज़ हैं कुम्भ के पंडे

पंडा मननगुरु जी आगे कहते हैं कि योगी-मोदी सिर्फ बड़े बड़े मठाधीशों को वरीयता दे रहे हैं. जबकि हम जैसों को अपने सामान्य जनों को दो-दो दिन तक लाइन लगाने के बाद भी रहने का सामान नहीं मिला है. वो बताते हैं कि 23 जनवरी की रात भारी बारिश के चलते उन लोगों का सारा ओढ़ना-बिछौना भीग गया. पंडाजी केंद्र और राज्य सरकार पर गुस्सा जताते हुए कहते हैं हमारी संस्था के एक लाख 35 हजार लोग माघ-मेला से लौटने के बाद बीजेपी से सामूहिक इस्तीफा दे देंगे.

मननगुरू कहते हैं कि ये सरकार सिर्फ बड़े बड़े मठाधीशों और पूंजीपतियों का हित साधनें में लगी हुई है.

अखिल भारतीय सर्वब्राह्मण महासभा के अध्यक्ष पंडा कृष्ण बहादुर शर्मा मननगुरु Pic Credit- सुशील मानव

परेशान हैं कल्पवासी

कल्पवासी (संगम के तट पर रहकर ध्यान करने वाले) माघमेला की जान हैं. जो सालों-साल से लगातार बज्जर ठंड और पाथर-पानी में भी अपना घर-बार छोड़ गंगा किनारे महीने भर के लिए कल्पवास करने चले आते हैं. बिना शासन प्रशासन से कोई भारी उम्मीद या शिकवा शिकायत के. लेकिन दिव्यता और भव्यता के तमाम वादों के बावजूद कल्पवासियों को कोई सुविधा नहीं मिल पा रही है.

10-12 टेंट के बीच सिर्फ दो शौचालय उपलब्ध करवाए गए हैं. इन शौचालयों में पर्दे तक नहीं हैं. लोग लड़-झगड़कर चिरौरी-विनती करके किसी तरह जुगाड़ कर करके रह रहे हैं. कई कल्पवासियों ने तो अपनी साड़ी या चादर लपेटकर इन शौचालयों के इस्तेमाल करने लायक बनाया है. कल्पवासियों का ये भी आरोप है कि ठंड से बचने के लिए अलाव जलाने के लिए लकड़ी तक नहीं उपलब्ध कराई गई है. जबकि बाजार में लकड़ियां महंगे दाम में बिक रही हैं.

वीरभानपुर प्रतापगढ़ से कल्पवास करने आई रंजन मिश्रा जी कहती हैं कि सरकार किसी की भी हो मेला का ठेका लल्लू लाल एंड संस को ही मिलता है. बता दें कि रंजन मेला क्षेत्र में पति संग कल्पवास कर रही हैं. ठेकेदार लल्लू लाल की ओर से जो टेंट मुहैया करवाया गया है वो बेहद जर्जर और जगह जगह से फटा हुआ है. इन्हीं कटे-फटे टेंट में चोर-उचक्के हाथ डालकर कई टेंटों के भीतर से कल्पवासियों के मोबाइल जैसे कीमती सामान और रुपया पैसा साफ कर चुके हैं.

वहीं बगल के ही टेंट में रंजन मिश्रा के बूढ़े-माता भी कल्पवास कर रहे हैं. प्रयागराज में आज सुबह भी बारिश हुई है, ओले गिरे हैं. कई टेंटों के भीतर तक पानी गया है. कछार क्षेत्र में चिकनी मिट्टी होने की वजह से जगह जगह टेंट के आस पास और चकर प्लेटयुक्त रास्तों पर कीचड़ लगने से रास्तों में फिसलन हो रही है. जिससे फिसल फिसल कर लोग चोटिल हो रहे हैं. बारिश के बाद से तो बूढ़े-बुजुर्गों का टेंट के बाहर निकलना दूभर हो गया है. लोग कह रहे हैं गर यही टेंट बलुवार माटी में लगा होता तो इतनी परेशानी न होती हर चीज का दाम दोगुना बढ़ गया है.

रंजन मिश्राPic Credit- सुशील मानव

गोरखपुर से आई मालती कहतीं है कि आग लगे ऐसी दिव्यता और भव्यता को जिससे सुविधा तो कुछ नहीं मिली उल्टे महंगाई दोगुनी बढ़ गई है. वहीं पिछले 15 वर्षों से लगातार कल्पवास करनेवाली रामकली बताती हैं कि अबकी बार टेंट का किराया पिछली बार से दोगुना ज्यादा लिया गया है. पिछली बार जहां एपी (मझोले) टेंट का किराया 5000 रुपये था वहीं अबकी बार दस हजार रुपये कर दिया गया है. जबकि छोलदारी टेंट (एकदम छोटे टेंट) का किराया पिछली बार 1000 रुपये था जिसे बढ़ाकर 3000 रुपये कर दिया गया है. पिछली बार शौचालय का किराया 1000 रुपये था जिसे इस साल बढ़ाकर 2000 रुपये कर दिया गया है. बिजली प्रति यूनिट 225 रुपये ली जा रही है. प्रति यूनिट का आशय यहां टेंट में जलने वाले प्रति बल्ब से है.

6-11 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है संगम नहाने के लिए

कल्पवासियों को इस बार मेला क्षेत्र से बहुत दूर रहने की जगह दी गई है. उन्हें संगम नहाने के लिए चार से 11 किलोमीटर तक पैदल चलकर जाना पड़ता है. लेकिन पर्व के दिन उन्हें प्रशासन संगम नहाने नहीं जाने देता. पिछले कई वर्षों से गोरखपुर के सहजनवा से बस बुक करके दर्जनों कल्पवासियों के साथ कल्पवास करने आने वाली कमला देवी कहती हैं कि उन्हें गठिया की बीमारी है. संगम नहाने के लिए इतनी दूर वो पैदल नहीं चल पाती है.

वो शिकायत करती हैं कि उतनी दूर से आने के बाद भी संगम नहीं नहा पाती हूँ क्योंकि उनका टेंट संगम तट से छह किलोमीटर दूर गंगा के कछार में मिला है. सीतादेवी अपने गुस्से का इजहार करती हुई कहती हैं कि अबकि बार सिज्जादान करके गंगा मैय्या से हाथ जोड़ लूंगी. सैंकड़ों किलोमीटर दूर से आने के बाद भी जब उन्हें संगम नहाने के को नहीं मिल रहा है तो अब यहां आने से क्या फायदा?

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कई दिनों तक पड़ा रहता है कूड़ा

14 नंबर पुल के पास के टेंट में रहकर कल्पवास कर रहे गजोधर सुकुल बताते हैं कि तीन-तीन दिन कूड़े पड़े रहते हैं कोई कूड़ा उठाने नहीं आता. आस-पास झाड़ू भी नहीं लगती है कई दिन. हेमा देवी बताती हैं कि दो-तीन दिन बाद गर कोई सफाईकर्मी आता है और हम उससे शिकायत करते हैं तो वो कहता है कि इतना बड़ा मेलाक्षेत्र है कहां कहां हम अंटे.

कई साल से लगातार कल्पवास करते आ रहे नैनी के 76 वर्षीय कमला कांत मिश्रा 76 बताते हैं कि जो भी वजह हो इस बार सफाईकर्मियों में एक तरह की हताशा साफ दिखती है पहले हम इन्हें कुछ खाने-पीने को देकर ये काम करवा लेते थे. लेकिन इस साल ये इतने बेदम और हताश दिखते हैं कि लालच देने पर भी खुश नहीं लगते.

राशन के लिए दिन भर के लिए लगना पड़ता है लाइन में

योगी सरकार ने कल्पवासियों को आटा, चावल चीनी और मिट्टी का तेल देने के लिए पूरे मेला परिसर में खाद्य और रसद विभाग के छह डिपो और 160 सस्ते दाम की राशन की दुकानें खोलने का दावा किया था. इसे कई अख़बारों ने बढ़ा-चढ़ाकर पेश भी किया था. पर जमीनी हकीकत ये है कि लोगों को राशन के लिए अपने टेंट से कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. साथ ही राशन पाने के लिए दिन भर लाइन में लगना पड़ता है.

सुनीता देवी बताती हैं कि हमारा कार्ड ही नहीं बन पाया है. दरअसल कल्पवासियों को राशन कार्ड बनवाने के लिए अपने पंडों को लिवाकर जाना पड़ता है. कई बार पंडे दुकान पर बहुत भीड़ होने के चलते कल्पवासियों से टाइम न होने का भी बहाना बनाकर टाल देते हैं.

पंडा रामनारायण बताते हैं कि मैं अब उम्रदराज हो चला हूं फिर भी दो दिन पहले तीन लोगों का कार्ड बनवाकर आया हूँ. अब हर टेंटवाले के साथ बार-बार दुकान पर जाना संभव नहीं है.


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