कुंभ की स्वच्छता का बीड़ा उठाने वालों की बदहाली


plight of cleaner and laborer in kumbha

 

धर्म का आयोजन हमेशा अधर्म की पीठ पर होता है. कुंभ मेले में विदेशी सैलानियों और देशी धन्नासेठों के लिए सैंकड़ों मलिन बस्तियों को उजाड़कर बसाई गई भव्य ‘टेंट सिटी’ की बात तो अख़बार और टीवी चैनल दिखाते नहीं अघा रहे हैं, पर आपको छोटा बघाड़ा में बसाई गई वाल्मीकि बस्तियों और इनमें रहने वालों के बारे में कुछ नहीं बताया और दिखाया जा रहा है. तो आपको बता दें कि छोटा बघाड़ा मेला क्षेत्र में मानव मलों के बीच छोटी छोटी टेंटनुमा झुग्गी बस्तियां हैं. इसके बगल से ही एक नाला बहता है. जहाँ आस-पास भटकते सुअरों के बीच जाति समुदाय विशेष के लोग परिवार समेत 14 दिसंबर से ही डेरा डाले हुए हैं.

ये कुंभ का सबसे गंदा और वर्जित क्षेत्र है जहाँ सफाईकर्मियों के रहने की व्यवस्था की गई है. हर टेंट के मुहाने पर आपको एक-दो लकड़ी का गट्ठर रखा मिल जाएगा जो ये अपने गांव से लेकर आए हैं. मेला क्षेत्र में झाड़ू लगाने से लेकर मल उठाने और और शौचालयों की साफ सफाई करने के लिए फतेहपुर, बांदा, और सतना से हजारों की संख्या में परिवार समेत ये लोग आए हुए हैं. ये लोग 5-6 हजार किराया चुकाकर लॉरी से अपनी पूरी गृहस्थी लादकर ले आए हैं. जिसमें नून, तेल लकड़ी से लेकर आटा, चावल, चूल्हा बर्तन सब शामिल है.

नए साल के पहले दिन हमने छोटा बघाड़ा क्षेत्र के इन बस्तियों में रह रहे लोगों से बात की. बांदा से अपने चार बच्चों संग आई कुंती और दुधमुँहे बच्चे की माँ सुधा बताती हैं कि उन लोगों को आए हफ्ते भर हो गए पर अभी कोई काम नहीं मिला. मेले में औरतें भी सफाई का काम करती हैं जिन्हें महीने भर में औसतन 5-6 हजार रुपये मिलता है.

सतना के इटमा गांव से आए दरबारी लाल, प्यारे लाल राजेंद्र और मालती अपने-अपने परिवार को लेकर मेला क्षेत्र में 14 दिसंबर को ही आ गए थे. उन्हें यहाँ लल्लू ठेकेदार लेकर आया है जोकि उन्हीं की बिरादरी का है. प्यारे लाल बताते हैं कि वो लोग अपने खाने पीने के लिए नून, तेल, लकड़ी, अनाज सब ले लादकर आए हैं. उन्हें मेले में आए पंद्रह दिन हुए हैं लेकिन अब तक कोई काम नहीं मिला.

कुंभ मेला क्षेत्र में करीब 30-32 हजार सफाईकर्मी और जमादार लाए गए हैं जिनके मत्थे कुम्भ की साफ-सफाई का काम है. छोटा बघाड़ा में हमें जितनी झुग्गियाँ दिखीं उतने में 30-32 हजार लोग नहीं समा सकते. जाहिर है वो लोग मेले में जगह-जगह अस्थायी टेंट लगाकर रह रहे हैं.

स्वास्थ्य विभाग के बगल में टेंट लगाकर रहने वाले भोला बताते हैं कि अब तक वो लोग चार जगह टेंट लगा चुके हैं और हर बार मेला प्रशासन उन्हें उजाड़कर दूसरी जगह टेंट लगाने को कह देता है. वो कहते हैं कि हम कुम्भ में काम करें कि रोज रहने का ठिकाना खोजे?

शास्त्री पुल के नीचे के क्षेत्र में साफ सफाई का जिम्मा संभाले दर्जनों सफाईकर्मी बताते हैं कि वो लोग फतेहपुर के गाजीपुर से आए हैं. वो ये भी बताते हैं कि फतेहपुर से लगभग एक हजार से ज्यादा वाल्मीकि समुदाय के लोग कुम्भ मेला क्षेत्र में काम करने आए हैं. इन सबको यहां भभेरू बांदा का मोहन जमादार ले आया है. वही इनका ठेकेदार है और दूर की रिश्तेदारी में आता है.

शिवराम, शंकर और राकेश और कल्लू बांदा के परनई गांव से आए हैं. चारों की उम्र 18-21 वर्ष के बीच है. वो बताते हैं उन्हें ड्रेस के नाम पर झन्नीदार लाल कपड़ा और एक ‘स्वच्छ भारत’ लिखी टोपी मिली है. लेकिन उन्हें दस्ताने, जूते और मास्क जैसे बेहद ज़रूरी सामान नहीं दिए गए हैं. मोहन बताते हैं कि पिछले मेले में 275 रुपये प्रतिदिन की दिहाड़ी थी, जबकि इस साल के कुम्भ मेले में दिहाड़ी में महज 10 रुपये का इजाफा हुआ है.

पिछले साल के कुंभ में काम का पैसा नहीं मिला

बेर्राय गांव फतेहपुर से आए महेश प्रसाद बताते हैं कि हम लोगों के पिछले साल के पैसे अभी तक नहीं मिले हैं. किसी के 15 दिन के तो किसी के 20 दिन के तो किसी के पूरे महीने के पैसे नहीं मिले हैं.

24 वर्षीय मोहन बताते हैं कि उनका पिछला साल का पूरे डेढ़ महीने का पैसा नहीं मिला. वो आगे कहते हैं कि जब हाथों हाथ पैसे मिलते थे तो पूरे पैसे मिल जाते थे जबसे ये खाते में पैसा भेजने वाली व्यवस्था लागू हुई है हम लोगों की परेशानी बढ़ गई है. अभी 2-3 दिन का पैसा तो आमतौर पर गायब ही हो जाता है.

ठंड से सफाईकर्मियों की मौत

कुंभ मेला क्षेत्र में ‘स्वच्छ भारत’ अभियान को आगे बढ़ाने का जिम्मा जिन लोगों के कंधों पर है उनके पास ना तो गर्म कपड़े हैं न ही ओढ़ने बिछाने के लिए कुछ. यहां तक की अलाव जलाने के लिए लकड़ियां और बिछाने के लिए पुआल तक इन्हें नहीं दिया गया है.

इन लोगों के मुताबिक अब तक मेला क्षेत्र में ठंड लगने से उनके चार साथियों की मौत हो चुकी है. 23 दिसंबर की रात 21 वर्षीय ननकई पुत्र तोलाराम की ठंड लगने से मौत हो गई थी. वो फतेहपुर जनपद के गाजीपुर थाना क्षेत्र अंतर्गत आनेवाले बरूआ गांव निवासी थे और कुम्भ मेला में स्वास्थ्य विभाग द्वारा कराए जा रहे सफाई कार्य के लिए दिहाड़ी मजदूर के तौर पर अपने माता-पिता और भाई के साथ मेला क्षेत्र में रह रहे थे.

कुंभ मेला क्षेत्र मे काम करने आए चाचा-भतीजे संदीप और श्रवण बताते हैं कि ननकई उनके बुआ और बहिन का देवर था. उनके मुताबिक 23 तारीख की शाम साढ़े छह-सात बजे के बीच ननकई को चुनाई (मैला साफ करने) के काम में लगाया गया था. काम से फारिग होने के बाद शरीर पर लगी गंदगी को साफ करने के लिए उसे नहला दिया गया था उसी रात ठंड लगने से उसकी मौत हो गई. इसी हफ्ते ठंड लगने से 58 वर्षीय जगदेव की भी मौत हो गई. जगदेव के बेटे हरिलाल के मुताबिक उन्हें मेला क्षेत्र में रहने के लिए पर्याप्त और ज़रूरी सुविधाएं नहीं दी गई हैं. एक एक टेंट में दस से ज्यादा लोग रह रहे हैं. टेंट में जगह न होने के कारण जगदेव रात को ठंड में बाहर ही सो गए थे जिससे उनको ठंड लग गई और उनकी मृत्यु हो गई.

इन लोगों पर शासन, प्रशासन और मौसम की ही नहीं बल्कि ब्राह्मणवाद का कहर भी जारी है. सनातन हिंदू धर्म के ध्वजवाहक एक साधु द्वारा एक बुजुर्ग सफाई कर्मी आशादीन द्वारा गलती से बाल्टी छू जाने पर मार-मारकर उसका हाथ तोड़ दिया गया.

अर्द्धकुंभ बदलकर कुम्भ हो गया और इलाहाबाद बदलकर प्रयागराज. सौन्दर्यीकरण और विकास के नाम पर जनता के खजाने से 4200 करोड़ रुपये कुंभ को मुनाफ़े का बाज़ार बनाने पर लुटा दिए गए. सरकारी, अर्द्ध सरकारी इमारतों की दीवारों, पेड़ों, पुलों और कॉलेजों सबका रंगरोदन कर दिया गया पर मन की कलुषिता और गंदगी को ज्यों का त्यों रहने दिया गया. यही एक चीज ऐसी है जिसे शासन, प्रशासन और एक वर्ग समुदाय के लोग बचाए रखना चाहते हैं. ऐसे ही लोगों के लिए किसी ने कहा था, “मन मैला और तन को धोए.”


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