उद्घाटनों की आड़ में पीएम मोदी की राजनीति


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फरवरी से लेकर अब तक लगातार प्रधानमंत्री ताबड़तोड़ उद्घाटनों, लोकार्पणों और नए परियोजनाओं के शिलान्यासों में व्यस्त हैं. इतने व्यस्त की पुलवामा आत्मघाती फिदायीन हमले के अगले दिन नई दिल्ली में ‘वंदे भारत’ ट्रेन रवाना करने से लेकर झांसी तक दौड़ते हैं. इतने व्यस्त कि युद्ध के हालात में भी उनके पास सर्वदलीय बैठक में भाग लेने के बजाय महाराष्ट्र में फोटो-ओप शुभारंभ कार्यक्रम भाग लेने चले जाते हैं. इस दरम्यान देश की आवाम से, सेना से, पाकिस्तान प्रधानमंत्री से और दुनिया के दूसरे देशों से बात करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी इन्हीं उद्घाटनों के मंच का इस्तेमाल करते हैं. इस एक अरब 36 करोड़ आबादी वाले जनतांत्रिक देश में प्रधानमंत्री ‘उद्घाटन-मंत्री’ बनकर क्यों रह गए हैं. इस मसले पर हमने आम जन से बात की और उनकी राय जानी.

8 मार्च को विश्व महिला दिवस के दिन प्रधानमंत्री मोदी ने शाम के वक्त एनसीआर गाजियाबाद स्थित हिंडन डोमेस्टिक एयरपोर्ट और दिलशाद गार्डेन से गाजियाबाद पुराना बस अड्डा मेट्रो का उद्घाटन किया. हिंडन एयरपोर्ट का उद्घाटन करते हुए उन्होंने अपने पूरे दिन का हिसाब गिनाया कि यूपी में उन्होंने कहां-कहां उद्घाटन किए. गाजियाबाद के अधिकांश आम लोगों ने कहा कि गाजियाबाद को मेट्रो देने का पूरा श्रेय यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को जाता है.

साहिबाबाद के रहने वाले बिजेंद्र त्रिपाठी बताते हैं, “गाजियाबाद की सड़कों से 7 मार्च की शाम से ही बसें गायब हो गई थीं. परिवहन विभाग द्वारा इन बसों को पकड़कर दूर-दराज के लोगों को उद्घाटन स्थल तक लिवा आने और वापस घर छोड़ने की ड्यूटी में लगा दिया गया था.”

राधा त्रिपाठी कहती हैं, “मोहननगर से लेकर गाजियाबाद तक के सभी मेट्रो स्टेशनों को फूलों से सजाया गया था. बहुत फूल लगे थे. इसके अलावा सुरक्षा के लिहाज से भी बहुत खर्च किया गया होगा. हालांकि मुझे कोई अनुमान नहीं है कि प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री द्वारा एक उद्घाटन करने में कितना पैसा खर्च होता है. फिर भी अगर अनुमान लगाए तो प्रधानमंत्री द्वारा सरकारी खजाने से अब तक जाने कितने अरब रुपए तो उद्घाटनों और शिलान्यासों में ही फूँक दिया गया है. जबकि इन पैसों का इस्तेमाल जनसुविधाओं के लिए किया जा सकता था. राधा त्रिपाठी सवाल उठाते हुए कहती हैं जिन्हें इतने चाक-चौबन्द सुरक्षा की ज़रूरत हो उन्हें उद्घाटन जैसे कामों के लिए पब्लिक डोमेन में जाना ही नहीं चहिए. इससे आम गतिविधियां बहुत बुरी तरह प्रभावित होती हैं.”

कनकलता त्यागी बताती हैं, “मेरी बेटी कॉलेज गई थी. प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिहाज़ से गाजियाबाद से लेकर मोहननगर तक पुलिस और सुरक्षाबल के जवानों ने सड़कों को ब्लॉक कर रखा गया था जिसके चलते सड़कों पर कोई भी पब्लिक वाहन नहीं दिखाई दे रहा था. बेटी को कॉलेज से वापस घर आने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. वो ढाई घंटे की देरी से घर लौटी इस बीच मैं उसे लेकर लगातार चिंतित रही.”

बता दूँ कि प्रधानमंत्री मोदी करीब साढ़े चार घंटे विलंब से गाजियाबाद पहुंचे. जिसके चलते लोगों को सुबह से लेकर रात के आठ बजे उनके वापस दिल्ली जाने तक लगातार परेशानियों का सामना करना पड़ा.

अवधेश मिश्रा नई दिल्ली स्टेशन के अजमेरी गेट साइड टूर एंड ट्रैवेल्स एजेंसी चलाते हैं. वो बताते हैं, “15 फरवरी को प्रधानमंत्री को ‘वंदे भारत’ ट्रेन को हरी झंडी दिखाने उस दिन नई दिल्ली आए थे. स्टेशन के चारों ओर की सभी दुकानों को दिल्ली पुलिस ने डंडे के जोर पर जबरदस्ती बंद करवा दिया था. आम लोगों को आने-जाने नहीं दिया जा रहा था. जिसे उसी समय ट्रेन पकड़ना था उन्हें तो बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. उस दिन हमारा काम बुरी तरह प्रभावित हुआ था. उस रोज आस-पास के लोगों को दोपहर तक चाय नाश्ता नसीब नहीं हुआ था. पहली बार ये एहसास हुआ कि कोई वीआईपी जब हमारी हद में अपने पांव धरता है तो वो हमें हमारी ही हद में संदिग्ध भी बना देता है.”

करोलबाग़ में सिविल सर्विस की तैयारी करने वाली छात्रा साक्षी कहती हैं, “जिसका जो काम है उसे वही करना चाहिए. ट्रेन को झंडी दिखाने का काम गार्ड का होता है, कितना बेहतर होता कि ‘वंदे भारत’ ट्रेन को हरी झंडी दिखाने का काम किसी बुजुर्ग गार्ड से करवाया जाता. हिंडन एयरपोर्ट का उद्घाटन वहां के किसी बुजुर्ग सफाईकर्मी से करवाया जाना चाहिए था.”

साक्षी आगे कहती हैं, “दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने वर्ष 2014 में एक रिक्शाचालक से अस्पताल का उद्घाटन करवाया था. लेकिन सही मायने में वो भी रिक्शाचालक से उद्घाटन करवाना नहीं थी. उसमें भी पब्लिसिटी के लिए एक्टिंग की गई थी. उसमें भी उद्घाटन के लिए उतना ही खर्च किया गया था. मुख्यमंत्री के उद्घाटन स्थल तक आने से पब्लिक को दिक्कतें हुई थीं. साथ ही केजरीवाल ने भी मीडिया की पूरी फुटेज भी खाई थी. ये एक ऐसी चीजें है जो बाताती हैं कि जनतंत्र किस हद तक राजतंत्र में तब्दील कर दिया गया है.”

दिल्ली में ई-रिक्शा चलानेवाले बाबूलाल अपनी तकलीफ़ को याद करते हुए बताते हैं, “उस रोज जब मोदी आए थे उस दिन उनकी सुरक्षा के लिए लोगों की आवाजाही ही बंद कर दी गई थी. उस दिन दोपहर तक तो कोई सवारी ही नहीं मिली दोपहर बाद जगह जगह जाम में बीता. सही कहूं तो उस दिन तो रिक्शे का किराया तक वसूलना दूभर हो गया था साहब. बहुत पछताया कि आज रिक्शा किराए पर ना लिया होता तो अच्छा रहता.”

मुंबई से दिल्ली एक शादी अटेंड करने आई शैल कुमारी कहती हैं, “यूपी के विधानसभा चुनाव से पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जब मथुरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे का उद्घाटन किया था तो मीडिया ने अधूरे काम का उद्घाटन करके क्रेडिट लेने वाला मुख्यमंत्री कहकर उनका मखौल उड़ाया था जबकि इस मामले में प्रधानमंत्री मोदी ने ज्यादा असंवेदनशीलता और अपरिपक्वता दिखाई है. जिस तरह वे पुलवामा हमले के दूसरे दिन, दिन भर उद्घाटन करते रहे और रात को शहीद जवानों को लाइव श्रद्धांजली देते दिखे, सबकुछ एक इवेंट की तरह लगा. उन्होंने देश की सुरक्षा और 42 जवानों की मौत के सामूहिक व राष्ट्रीय शोक पर भी उद्घाटनों को वरीयता दिया और उद्घाटन मंचों पर हँसते खिलखिलाते दिखे. ये शर्मनाक है. हम इतने बड़े लोकतांत्रिक देश के प्रधानमंत्री से संवेदनशीलता, मानवीयता और परिपक्वता की उम्मीद करते हैं.”

‘भारत स्वाभिमान’ से जुड़े हुए रजनीश प्रयाग कहते हैं, “बेशक़ मोदी जी ने सरकारी पैसे और अपने पद का उपयोग करके जनमत को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन आज राजनीति में नौतिकता और आदर्श है कहां. न ये व्यक्तिगत स्तर पर है न पार्टी के स्तर पर.”

2019 लोकसभा चुनाव में पहली बार वोटर देने जा रही इलाहाबाद स्टेट यूनिवर्सिटी की छात्रा काजल कहती हैं, “मोदी ने डेवलपमेंट किया है तभी तो उनका उद्घाटन कर रहे हैं. या फिर कोई नया काम करने जा रहे हैं तभी तो शिलान्यास कर रहे हैं. इन्हीं उद्घाटनों से ही तो लोगों को पता चलेगा कि देश में कुछ हुआ है. सत्ता तो सबको चाहिए होती है, किसको नहीं चाहिए. लेकिन देश का डेवलपमेंट हुआ है, देश में कुछ हुआ है तभी तो वो उद्घाटन कर रहे हैं.”

वो आगे कहती हैं कि मोदी ने इलाहाबाद को चमका दिया है. कुंभ का उद्घाटन जब उन्होंने किया था तब चुनाव नहीं थे. दुनिया के सबसे बड़ी मूर्ति ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ और सरदार सरोवर बांध का उद्घाटन करने के वक़्त कौन सा चुनाव था.


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