क्यों हो रहा है पीएम मोदी के पलामू बांध शिलान्यास का विरोध?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आने वाली पांच जनवरी को झारखंड के पलामू में ‘मंडल बांध’ का शिलान्यास करने वाले हैं. लेकिन स्थानीय निवासियों ने इस कार्यक्रम का विरोध करने का ऐलान किया है. ये लोग कोयल नदी पर बनने वाले इस बांध को लेकर खुश नहीं हैं. विरोध करने वाले लोग बांध के डूब क्षेत्र में आने वाली जमीन के अधिग्रहण के बदले में मिले मुआवजे को लेकर नाखुश हैं.
इस बांध की नींव 1972 में ही पड़ चुकी थी, लेकिन वन विभाग ने पर्यावरणीय चिंताओं के चलते 1993 में इस पर रोक लगा दी. तब से इसका निर्माण कार्य रुका हुआ था. साल 2017 में केंद्र सरकार ने इसे एक बार फिर से हरी झंडी दिखा दी. जिसके बाद अब झारखंड की बीजेपी सरकार अपने चार साल पूरे होने पर इसे फिर से शुरू करने जा रही है.
राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास इस मौके पर डैम का शिलान्यास करने की घोषणा पहले ही कर चुके हैं.
बांध के निर्माण के लिए 1972 में ही औने-पौने दामों में जमीन का अधिग्रहण कर लिया गया था. अब ग्रामीणों को उसी मुआवजे के बल पर उनकी जमीन से बेदखल किया जा रहा है. करम दयाल सिंह इसी इलाके के निवासी हैं. इनकी जमीन बांध के डूब क्षेत्र में आती है. करम दयाल सरकारी मुआवजे से खुश नहीं हैं.
वे कहते हैं कि हम जान दे देंगे, लेकिन काम नहीं होने देंगे. सरकार हमें वाजिब मुआवजा दे इसके बाद बांध बनाए. मुआवजे को लेकर निराश लोगों में करम दयाल अकेले नहीं हैं, मनोज सिंह, सिकुरिया देवी, अंति देवी जैसे तमाम स्थानीय लोग इस बांध के विरोध में खड़े हैं.
चेमो-सान्या, कुटकू, टोटकी, भजिना, चंपिया सहित इस इलाके के दर्जनों गांव मंडल बांध के डूब क्षेत्र में आते हैं. एक बार इस डैम के शुरू हो जाने के बाद इन गांवों के हजारों ग्रामीणों की जमीन पानी में डूब जाने से इनके आस्तित्व पर खतरा पैदा हो जाएगा.
चार दशक से भी ज्यादा पहले मिले नाममात्र मुआवजे के सहारे अब ये लोग नई जमीन खरीदने और नए सिरे से जीवनयापन करने की हालत में नहीं हैं. ग्रामीण कुछ पैसे लेकर शहर जाकर मजदूरी नहीं करना चाहते. उनकी मांग है कि उन्हें जमीन के बदले जमीन चाहिए.
गुलू, चेमो-सान्या गांव के ग्राम प्रधान हैं. गुलू कहते हैं कि उनके पिता को मुआवजे के कुछ पैसे मिले थे. वे अपने पिता की अकेली संतान थे, उनके तीन बेटे हैं. उनके पास सिर्फ पैतृक जमीन है. जिसके पानी में डूब जाने के बाद उनके पास कुछ नहीं रह जाएगा. गुलू कहते हैं कि उन्हें जमीन के बदले जमीन चाहिए, वे अपने जल, जंगल और जमीन को छोड़कर कहीं नहीं जाना चाहते.
प्रशासन इन ग्रामीणों की चिंताओं से अनजान नजर आता है. जब हमने ग्रामीणों के विरोध को लेकर प्रशासनिक अधिकारियों से बात की तो उनका जवाब हीलाहवाली वाला रहा.
क्षेत्र के एसडीओ संजय पांडेय से जब इस विषय में बात की गई तो वे ग्रामीणों के विरोध की बात से ही मुकर गए. उन्होंने कहा कि ग्रामीणों को उनकी जमीनों का मुआवजा बहुत पहले ही मिल चुका है, अगर अब कोई किसी तरह की मांग करता है तो जांच होनी चाहिए.
कहा जा रहा है कि ढाई हजार करोड़ से ज्यादा की लागत से बनने वाले इस बांध के पूरा होने के बाद बिहार और झारखंड राज्य की एक लाख हेक्टेयर भूमि सींची जा सकेगी. साथ ही 24 मेगावाट बिजली भी पैदा की जाएगी.
इस बांध को लेकर विरोध कोई नई बात नहीं है. इसके निर्माण के शुरुआती दौर से ही स्थानीय लोग इसका विरोध कर रहे हैं. इससे पहले इस बांध में काम कर रहे एक इंजीनियर की हत्या भी हो चुकी है, जिसके बाद काम रोक दिया गया था.
अब जबकि लोकसभा चुनाव नजदीक हैं और झारखंड की रघुवर सरकार भी अपने चार साल गुजार चुकी है, ऐसे में बांध के नए सिरे से शिलान्यास को राजनीति के चश्मे से भी देखा जा रहा है.